ETV Bharat / state

काला सोना : खेत में ही मन रही अफीम किसानों की होली, कालिका पूजा से शुरू हुई लुआई

author img

By

Published : Mar 9, 2020, 12:26 PM IST

काले सोने के नाम से मशहूर अफीम की खेती की उपज लेने के लिए किसानों को दिन-रात एक करने पड़ रहे हैं. इसके साथ ही किसान खेत में स्थापित कालिका माता की पूजा अर्चना करते हैं.

चित्तौड़गढ़ न्यूज, chittorgarh news, rajasthan news
अफीम किसानों की होली भी खेत में और दिवाली भी

कपासन (चित्तौड़गढ़). काले सोने के नाम से मशहूर अफीम की खेती की उपज लेने के लिए किसानों को दिन-रात एक करने पड़ रहे हैं. यहां तक कि इन किसानों की होली भी खेत में ही मन रही है. इन दिनों अफीम की फसलें पककर तैयार हैं और इनके डोडों से लुआई (अफीम को अलग करना) का काम शुरू हो चुका है. सुबह 6 बजे से ही किसान अपने परिवार के साथ खेत में पहुंच जाते हैं और अफीम की लुआई शुरू कर देते हैं.

अफीम किसानों की होली भी खेत में और दिवाली भी

खेत में घुसने से पहले किसान खेत में स्थापित कालिका माता की पूजा अर्चना करते हैं. डोडे से दूध के रूप में निकलने वाली अफीम को किसान विशेष ओजार 'छरपले' के माध्यम से दुध को इक्कठा करते हैं. दुध को एक बर्तन में इक्कठा किया जाता है, उसे भण्डारिया करते है, जिसमें ताजा डोडे से निकले दुध को एकत्रित किया जाता है. इसे साधारण भाषा में लुआई कहा जाता है. लुआई के बाद किसान कुछ देर खेत पर ही विश्राम करने के बाद पुनः अपने परिवार के साथ काम में जुट जाते हैं. अब यह काम अलग प्रकार का होता है.

पढ़ेंः बारांः बिगड़े मौसम ने बर्बाद की काले सोने की फसल, औसत लंबाई के माप को लेकर किसान परेशान

नुक्का औजार का किया जाता है उपयोग...

अब किसानों के हाथ में एक छोटा सा औजार होता है. जिसके लकड़ी के टुकड़े के उपर ब्लेड के छोटे-छोटे चार टुकड़े फिट रहते है. इसे 'नुक्का' कहा जाता है. इस विशेष औजार को बनाने वाले कारीगर भी अलग ही होते हैं. कारीगरों द्वारा ब्लेड के अलावा विशेष पत्ते के भी नुक्के बनाए जाते है. जिसका निर्माण इण्टाली, भीमगढ़ और चित्तौड़गढ़ में होता है. इस औजार के लिए किसानों को एडवांस बुकिंग भी करवानी पड़ती है.

कारीगर प्रति नुक्के की किमत 100 से 150 रुपये तक किसानों से लेता है. यह औजार मेजरमेंट के आधार पर बनाया जाता है. ज्यादा तेज होने के साथ इसमें लगी पत्तियों के टुकड़े एक निश्चित अनुपात में बाहर निकले रहते है. इसका उपयोग डोडे में चीरा लगाने के लिए किया जाता है ताकि उससे दूध बाहर आ सके. लेकिन अगर इसका मेजरमेंट सही नहीं हो तो, इसकी धार से डोडे फट भी सकते हैं और अफीम की शुद्धता में कमी आ सकती है.

पढ़ेंः चित्तौड़गढ़ः बेमौसम बारिश ने बढ़ाई मुसीबत, अफीम किसानों का हाल बेहाल

600 ग्राम सरकार को दिया जाता है अफीम...

किसानों को एक आरी अफीम की खेती में से सरकार को 600 ग्राम देनी पड़ती है. रेवलिया कलां के किसान दुर्गाशंकर व्यास ने बताया, की डोडे से प्राप्त अफीम भूरे दूध के रूप में निकलती है. जिसे एक चौड़े बर्तन में आठ से दस दिन तक धुप में सुखाया जाता है. जिसमें से पानी के सुखने के बाद अफीम का रंग काला हो जाता है और चिकनाई बढ़ जाती है. इसके बाद एक प्लास्टिक की बाल्टी में भर कर एक सूती कपड़े से उसका मुहं बाध कर ढ़क दिया जाता है. ताकि कचरा नहीं गिरे. इसके बाद नियत तिथी पर इस अफीम को तौल के लिये ले जाया जाता है.

कपासन (चित्तौड़गढ़). काले सोने के नाम से मशहूर अफीम की खेती की उपज लेने के लिए किसानों को दिन-रात एक करने पड़ रहे हैं. यहां तक कि इन किसानों की होली भी खेत में ही मन रही है. इन दिनों अफीम की फसलें पककर तैयार हैं और इनके डोडों से लुआई (अफीम को अलग करना) का काम शुरू हो चुका है. सुबह 6 बजे से ही किसान अपने परिवार के साथ खेत में पहुंच जाते हैं और अफीम की लुआई शुरू कर देते हैं.

अफीम किसानों की होली भी खेत में और दिवाली भी

खेत में घुसने से पहले किसान खेत में स्थापित कालिका माता की पूजा अर्चना करते हैं. डोडे से दूध के रूप में निकलने वाली अफीम को किसान विशेष ओजार 'छरपले' के माध्यम से दुध को इक्कठा करते हैं. दुध को एक बर्तन में इक्कठा किया जाता है, उसे भण्डारिया करते है, जिसमें ताजा डोडे से निकले दुध को एकत्रित किया जाता है. इसे साधारण भाषा में लुआई कहा जाता है. लुआई के बाद किसान कुछ देर खेत पर ही विश्राम करने के बाद पुनः अपने परिवार के साथ काम में जुट जाते हैं. अब यह काम अलग प्रकार का होता है.

पढ़ेंः बारांः बिगड़े मौसम ने बर्बाद की काले सोने की फसल, औसत लंबाई के माप को लेकर किसान परेशान

नुक्का औजार का किया जाता है उपयोग...

अब किसानों के हाथ में एक छोटा सा औजार होता है. जिसके लकड़ी के टुकड़े के उपर ब्लेड के छोटे-छोटे चार टुकड़े फिट रहते है. इसे 'नुक्का' कहा जाता है. इस विशेष औजार को बनाने वाले कारीगर भी अलग ही होते हैं. कारीगरों द्वारा ब्लेड के अलावा विशेष पत्ते के भी नुक्के बनाए जाते है. जिसका निर्माण इण्टाली, भीमगढ़ और चित्तौड़गढ़ में होता है. इस औजार के लिए किसानों को एडवांस बुकिंग भी करवानी पड़ती है.

कारीगर प्रति नुक्के की किमत 100 से 150 रुपये तक किसानों से लेता है. यह औजार मेजरमेंट के आधार पर बनाया जाता है. ज्यादा तेज होने के साथ इसमें लगी पत्तियों के टुकड़े एक निश्चित अनुपात में बाहर निकले रहते है. इसका उपयोग डोडे में चीरा लगाने के लिए किया जाता है ताकि उससे दूध बाहर आ सके. लेकिन अगर इसका मेजरमेंट सही नहीं हो तो, इसकी धार से डोडे फट भी सकते हैं और अफीम की शुद्धता में कमी आ सकती है.

पढ़ेंः चित्तौड़गढ़ः बेमौसम बारिश ने बढ़ाई मुसीबत, अफीम किसानों का हाल बेहाल

600 ग्राम सरकार को दिया जाता है अफीम...

किसानों को एक आरी अफीम की खेती में से सरकार को 600 ग्राम देनी पड़ती है. रेवलिया कलां के किसान दुर्गाशंकर व्यास ने बताया, की डोडे से प्राप्त अफीम भूरे दूध के रूप में निकलती है. जिसे एक चौड़े बर्तन में आठ से दस दिन तक धुप में सुखाया जाता है. जिसमें से पानी के सुखने के बाद अफीम का रंग काला हो जाता है और चिकनाई बढ़ जाती है. इसके बाद एक प्लास्टिक की बाल्टी में भर कर एक सूती कपड़े से उसका मुहं बाध कर ढ़क दिया जाता है. ताकि कचरा नहीं गिरे. इसके बाद नियत तिथी पर इस अफीम को तौल के लिये ले जाया जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.