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चित्तौड़गढ़ में मरके से होती है मां लक्ष्मी की पूजा, महाराष्ट्र से गुजरात तक भारी मांग...जानें इसके पीछे का इतिहास - Rajasthan hindi news

चित्तौड़गढ़ में दीपावली पर मरके की मांग का आलम (Marka sweets of Chittorgarh) यह होता है कि इसे बनाने वाले कारीगरों को दिन-रात काम करना होता है. यहां ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी को चावल से बनी इस मिठाई का भोग लगाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वहीं, आज इस मिठाई की मांग केवल चित्तौड़गढ़ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात से लेकर मध्यप्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों में भी इसकी भारी मांग है.

marka sweets in Chittorgarh
चित्तौड़गढ़ में मरके से होती है मां लक्ष्मी की पूजा
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Published : Oct 24, 2022, 7:19 AM IST

चित्तौड़गढ़. जिस प्रकार जोधपुर की कचौड़ी अपने स्वाद को देशभर में खास पहचान (Marka sweets of Chittorgarh) रखती है, ठीक उसी प्रकार चित्तौड़गढ़ के मरके की महक अब महाराष्ट्र और गुजरात तक जा पहुंची है. दीपावली पर इस मिठाई का धार्मिक दृष्टि से भी खासा (Maraka sweet made from rice) महत्व है, क्योंकि धनतेरस पर चावल से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. वहीं, चित्तौड़गढ़ में मरके के रूप में चावल की मिठाई बनाने की परंपरा है, जो पिछले 100 सालों से चल रही है. धीरे-धीरे इस मिठाई की पहचान मुंबई, सूरत के साथ ही अब मध्यप्रदेश से लगे इलाकों में भी तेजी बढ़ी है.

दीपावली पर इस मिठाई की विशेष मांग रहती है. यह मिठाई पूरी तरह से चावल से बनी होती है, लिहाजा इस मिठाई से ही मां लक्ष्मी की पूजा होने लगी, जो आज एक परंपरा का रूप धारण कर चुकी है. चित्तौड़गढ़ के गांधी चौक के निकट स्थित मिठाई गली में पिछले एक महीने से मरके की महक वहां से गुजरने वालों को मोह रही है. इधर, भारी मात्रा में बाहरी ऑर्डर मिलने से दुकानदार रात-दिन मिठाई बनाने में जुटे रहे.

चित्तौड़गढ़ में मरके से होती है मां लक्ष्मी की पूजा

इसे भी पढ़ें - दुल्हन की तरह सजी Pink City, तिरंगे की रोशनी से जगमगाया त्रिपोलिया बाजार...छोटी चौपड़ पर उतरा डिज्नीलैंड

मरका व्यवसाय से जुड़े योगेश पांड्या ने बताया कि 100 साल पहले शहर में किसी ने चावल की जगह मिठाई के रूप में मरके से मां लक्ष्मी की पूजा की थी, जो धीरे-धीरे यहां की परंपरा बन गई. वहीं, उन्होंने बताया कि यहां दो दर्जन से अधिक दुकानों पर दीपावली से पहले ही मरका बनाने का काम शुरू हो जाता है. इसे बनाने में केवल चावल और घी का इस्तेमाल होता है. ऐसे में इसमें मिलावट की भी आशंका नहीं रहती है.

यही कारण है कि यहां दीपावली पर मां लक्ष्मी को भोग लगाने के लिए लोग मिठाई के रूप में मरके को अधिक पसंद करते हैं. आज इसकी मुंबई, सूरत, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, भीलवाड़ा और उदयपुर में भारी मात्रा में सप्लाई होती है. रमेश सिंह नाम के एक अन्य दुकानदार ने बताया कि रात को चावल के आटे को पानी में डाल दिया जाता है और उसे अगले दिन देसी घी में टिकिया बनाकर फ्राई किया जाता है. इसके उपरांत उसे शक्कर की चासनी में डाला जाता है और फिर मरका बनकर तैयार होता है.

चित्तौड़गढ़. जिस प्रकार जोधपुर की कचौड़ी अपने स्वाद को देशभर में खास पहचान (Marka sweets of Chittorgarh) रखती है, ठीक उसी प्रकार चित्तौड़गढ़ के मरके की महक अब महाराष्ट्र और गुजरात तक जा पहुंची है. दीपावली पर इस मिठाई का धार्मिक दृष्टि से भी खासा (Maraka sweet made from rice) महत्व है, क्योंकि धनतेरस पर चावल से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. वहीं, चित्तौड़गढ़ में मरके के रूप में चावल की मिठाई बनाने की परंपरा है, जो पिछले 100 सालों से चल रही है. धीरे-धीरे इस मिठाई की पहचान मुंबई, सूरत के साथ ही अब मध्यप्रदेश से लगे इलाकों में भी तेजी बढ़ी है.

दीपावली पर इस मिठाई की विशेष मांग रहती है. यह मिठाई पूरी तरह से चावल से बनी होती है, लिहाजा इस मिठाई से ही मां लक्ष्मी की पूजा होने लगी, जो आज एक परंपरा का रूप धारण कर चुकी है. चित्तौड़गढ़ के गांधी चौक के निकट स्थित मिठाई गली में पिछले एक महीने से मरके की महक वहां से गुजरने वालों को मोह रही है. इधर, भारी मात्रा में बाहरी ऑर्डर मिलने से दुकानदार रात-दिन मिठाई बनाने में जुटे रहे.

चित्तौड़गढ़ में मरके से होती है मां लक्ष्मी की पूजा

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मरका व्यवसाय से जुड़े योगेश पांड्या ने बताया कि 100 साल पहले शहर में किसी ने चावल की जगह मिठाई के रूप में मरके से मां लक्ष्मी की पूजा की थी, जो धीरे-धीरे यहां की परंपरा बन गई. वहीं, उन्होंने बताया कि यहां दो दर्जन से अधिक दुकानों पर दीपावली से पहले ही मरका बनाने का काम शुरू हो जाता है. इसे बनाने में केवल चावल और घी का इस्तेमाल होता है. ऐसे में इसमें मिलावट की भी आशंका नहीं रहती है.

यही कारण है कि यहां दीपावली पर मां लक्ष्मी को भोग लगाने के लिए लोग मिठाई के रूप में मरके को अधिक पसंद करते हैं. आज इसकी मुंबई, सूरत, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, भीलवाड़ा और उदयपुर में भारी मात्रा में सप्लाई होती है. रमेश सिंह नाम के एक अन्य दुकानदार ने बताया कि रात को चावल के आटे को पानी में डाल दिया जाता है और उसे अगले दिन देसी घी में टिकिया बनाकर फ्राई किया जाता है. इसके उपरांत उसे शक्कर की चासनी में डाला जाता है और फिर मरका बनकर तैयार होता है.

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