चित्तौड़गढ़. मेवाड़ और मालवांचल के अफीम किसानों के लिए खुशखबरी है. इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा एक नई किस्म को ईजाद किया गया है. इसका डोडा न केवल मोटा है बल्कि दाने की उपज भी अपेक्षाकृत ज्यादा है. यही नहीं, मार्फीन सामान्य अफीम के मुकाबले अधिक बैठती है. ऐसे में अफीम काश्तकारों के लिए यह नई किस्म काफी कारगर साबित हो सकती है.
चेतक को प्रमोट करने की अनुशंसाः महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के संगठन राजस्थान कृषि महाविद्यालय द्वारा भारतीय औषधि एवं सुगंधित पौध अनुसंधान परिषद की देखरेख में अफीम की नई वैरायटी तलाश की जा रही थी. परिषद की टीम इसमें काफी हद तक सफल रही और कुछ सालों से एक नई वैरायटी सामने आई जिसे चेतक नाम दिया गया. इसे प्रमोट करने के लिए भारत सरकार के साथ-साथ राजस्थान सरकार को भी परिषद द्वारा अनुशंसा की गई है.
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नई किस्म की विशेषताएंः भारतीय औषधि एवं सुगंधित पौधे अनुसंधान परिषद उदयपुर के तकनीकी सहायक डॉ. नरेंद्र कुमार पाडिवाल के अनुसार काउंसिल के उदयपुर के अलावा मंदसौर और फैजाबाद में सेंटर हैं. जहां इस प्रकार की फसलों की नई वैरायटी तैयार की जाती है. उदयपुर सेंटर द्वारा लंबे समय से अफीम की नई किस्म तैयार करने पर काम किया जा रहा था. इसके परिणामों को पिछले 3-4 साल से बारीकी से देखा जा रहा था. जिसके रिजल्ट बेहतरीन कह जा सकते हैं. इसका डोडा सामान्य वैरायटी के मुकाबले मोटा और बड़ा होता है. इस फसल की ग्रोथ 3:50 फीट से अधिक नहीं रहती. इस कारण आडी पड़ने का भी खतरा नहीं रहता.
काश्तकारों के लिए मुफीद है नई अफीमः इसके चलते प्रति हेक्टेयर डोडा 9 से 10 क्विंटल के बीच बैठ रहा है. जहां तक खसखस की बात की जाए तो 10 से लेकर 12 क्विंटल तक दाने का उत्पादन होता है. अफीम की फसल मुख्यतः मार्फिन के लिए की जाती है. इसका मार्केट लगातार 10 से लेकर 12% के नीचे बैठ रहा है. जबकि सामान्य किस्म की मार्फिन औसत 8 से 9% के बीच रहती है. ऐसे में यह नई किस्म अफीम काश्तकारों के लिए काफी मुफीद साबित हो सकती है. सबसे बड़ी खासियत यह है कि जरूरत के अनुसार ही खाद पानी का इस्तेमाल किया जाता है. इस कारण पेस्टिसाइड यूज करने की भी आवश्यकता नहीं रहती.
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अगले साल मार्केट में आ सकती है नई वैरायटीः लगातार 4 साल से रिसर्च के बाद काउंसिल द्वारा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च को चेतक किस्म को प्रमोट करने की सिफारिश की गई. इसके अलावा राज्य सरकार को भी सिफारिश भेजी गई है. अगले साल तक यह नई वैरायटी मार्केट में आ सकती है.
1980 से चल रहा है अनुसंधानः महाविद्यालय में अफीम की नई वैरायटी तैयार करने के लिए 1980 से इस अफीम की खेती की जा रही है. इसके लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा परिषद को हर साल पौने पांच आरी का पट्टा जारी किया जाता है. परिषद की खुद की लैब है. जिसमें समय-समय पर कबीर और फसल को लेकर जांच पड़ताल की जाती रहती है.
24 साल से ट्रिपल एक्सः अफीम पैदावार के बाद किसानों द्वारा अफीम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो लाई जाती है. जहां क्वालिटी के आधार पर अलग-अलग मार्किंग की जाती है. इसमें सबसे बढ़िया क्वालिटी को ट्रिपल एक्स मार्किंग दी जाती है. जिसका रेट भी अच्छा होने के साथ कटौती भी नहीं होती. काउंसिल द्वारा हर वर्ष तकनीकी आधार पर खेती की जाती है. जिसका नतीजा यह है कि पिछले 24 साल से नारकोटिक्स विभाग द्वारा अफीम को ट्रिपल एक्स मार्क मिल रहा है. परिषद द्वारा पिछले 40 साल से अफीम की काश्त की जा रही है.
अफीम का हब माना जाता है चित्तौड़गढ़ः अफीम उत्पादन के मामले में चित्तौड़गढ़ को देश का हब माना जाता है, क्योंकि यहां बेहतर क्लाइमेट के बूते बड़े पैमाने पर लाइसेंस के आधार पर खेती की जाती है. इस वर्ष अकेले चित्तौड़गढ़ से 118 टन अफीम का उत्पादन हुआ. विभाग द्वारा 15606 लोगों को पट्टे दिए गए थे. जिनमें 12905 लैंसिंग वाले काश्तकार थे. इसी प्रकार प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, उदयपुर के साथ-साथ पड़ोसी मध्य प्रदेश के मंदसौर और नीमच में भी बड़े पैमाने पर अफीम काश्त की जाती है.