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हरा-भरा राजस्थान : राजस्थान का यह गांव पौधारोपण में देश ही नहीं विदेशों के लिए भी है आदर्श...यहां बेटियों के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पौधे

कहते हैं कि कुछ कर गुजरने की इरादे अगर मजबूत हो तो हर मुश्किल भी आसान हो जाती है. जी हां, ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में

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Published : Jul 9, 2019, 1:06 PM IST

पिपलांत्री गांव में बेटियों के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पौधे

राजसमंद. साल 2005 राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर पिपलांत्री गांव जहां भूमिगत जलस्तर कम होने से और चारों तरफ मार्बल के बचे हुए अवशिष्ट पदार्थों से इस गांव की हवा भी प्रदूषित होने लगी थी. तभी इस गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बच्ची की अल्पआयु में मौत हो गई. जिसको लेकर उन्हें इस बात का इतना दुख हुआ कि उन्होंने अपनी बेटी की याद में एक पेड़ लगाया और उसे पाल पोस कर बड़ा किया. तभी श्याम सुंदर के मन में विचार आया क्यों ना पूरे गांव के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि किसी के घर में लड़की पैदा होगी तो 111 पौधे लगाए जाएंगे.

इस तरह से गांव में जब किसी की मृत्यु होती है. तो उस परिवार के लोग उसकी याद में 11 पेड़ लगाते हैं. और हमेशा के लिए उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेते हैं. तो वहीं सबसे अच्छी बात है जब किसी घर में किसी बच्चे का जन्म होता है.तो उसके नाम से उसके परिवार वालों के द्वारा 111 पेड़ लगवाए जाते हैं. और उस पेड़ का नाम भी बच्ची के नाम से मिलता हुआ रखा जाता है.

वहीं इसके अलावा जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है.तो ग्राम पंचायत द्वारा उस लड़की के नाम से ₹21000 की धनराशि जमा की जाती है.तो वही लड़की के परिवार वालों से ₹10000 लेकर बच्ची के नाम ₹31000 की एफडी करवाई जाती है. जब वह 18 साल की होती है.तो उसकी शादी में या फिर उसकी पढ़ाई के काम में यह पैसा यूज लिया जाता है.

वहीं इस गांव में पेड़ों की बचाने के लिए गांव के लोगों ने एक अनोखी मुहिम चलाई. जिसमें रक्षाबंधन के 1 दिन पूर्व महिलाएं पेड़ों को अपना भाई मानकर उन्हें राखी बांधती हैं.और उनकी सुरक्षा का वचन लेती हैं.

ये सारे तस्वीरें जो आप देख रहे हैं वो कभी ऐसे नहीं थे...यह गांव संगमरमर की पहाड़ियों पर बसा है. इसके चारों ओर बड़े पैमाने पर संगमरमर की खनन का काम होता है.खनन के दौरान निकलने वाले मलबे का गांव में ही डाला जाता था. जिससे यहां न केवल पत्थरों के मलबे के पहाड़ बन रहे थे. बल्कि गांव की जमीन और आबोहवा भी खराब हो रही थी. जिसको लेकर पूरे गांव वालों ने पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल का साथ दिया और आज एक गांव मार्बल के मलबे के कारण नहीं जाना जाता बल्कि हरियाली के लिए जाना जाता है.

यहां पर 2006 से लेकर अब तक करीब साढे तीन लाख पौधे भी लगवाए गए हैं. जिसके कारण एक तरफ जलस्तर भी गांव में ऊपर आया और गांव की आबोहवा भी परिवर्तन आया. यही कारण है कि आज इस गांव की चर्चा भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में पिपलांत्री मॉडल के नाम से हो रही है. जहां एक तरफ हमारे देश के कई हिस्सों में आज भी लड़कियों के जन्म को लेकर परिवार के लोक उन्हें बोढ समझते हैं. लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में समाज की इस रूढ़िवादी परंपरा से काफी आगे निकल चुका है. इस गांव में पैदा होने वाली लड़कियों को बोझ नहीं बल्कि उन्हें सौभाग्य के रूप में समझा जाता है. और यही कारण है.कि डेनमार्क की सरकार ने इस गांव को अपनी स्कूली सेलेबस में शामिल किया है.

राजस्थान का यह गांव पौधारोपण में देश ही नहीं विदेशों के लिए भी है आदर्श

यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज खानापूर्ति नहीं बल्कि पेड़ों से रिश्ता बनाया गया. यहां पर्यावरण बचाने की मुहिम के लिए एक प्रेरक मिसाल भी है. अब तक गांव वालों ने करीब साढे तीन लाख पेड़ लगा चुके है. और उनकी देखभाल भी कर रहे हैं. इसी का कारण है कि आज यह पूरा गांव हरा भरा दिखाई देता है. तो वही इस गांव के मॉडल को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं. तो वही ईटीवी भारत भी इस गांव की कहानी को इसलिए आपको दिखाना चाह रहा था .क्योंकि जहां एक तरफ बदलते दौर में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के कारण कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की स्थितियां सामने आ रही है. इससे एक और जल संकट पैदा हो रहा है. तो दूसरी और पानी की कमी से खेती का रकबा घट रहा है.

इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निजात पाने के लिए इस गांव से पेड़ पौधे लगाने की सीख लेकर क्यों ना हम अपने आसपास पेड़ लगाएं जिसके कारण जलवायु के परिवर्तन के दुष्परिणामों से हम बच सकें और एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें. ईटीवी भारत भी आपसे अपील करता है. कि आप अपने आसपास पेड़ जरूर लगाएं क्योंकि मानसून की बारिश भी शुरू हो चुकी है.

राजसमंद. साल 2005 राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर पिपलांत्री गांव जहां भूमिगत जलस्तर कम होने से और चारों तरफ मार्बल के बचे हुए अवशिष्ट पदार्थों से इस गांव की हवा भी प्रदूषित होने लगी थी. तभी इस गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बच्ची की अल्पआयु में मौत हो गई. जिसको लेकर उन्हें इस बात का इतना दुख हुआ कि उन्होंने अपनी बेटी की याद में एक पेड़ लगाया और उसे पाल पोस कर बड़ा किया. तभी श्याम सुंदर के मन में विचार आया क्यों ना पूरे गांव के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि किसी के घर में लड़की पैदा होगी तो 111 पौधे लगाए जाएंगे.

इस तरह से गांव में जब किसी की मृत्यु होती है. तो उस परिवार के लोग उसकी याद में 11 पेड़ लगाते हैं. और हमेशा के लिए उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेते हैं. तो वहीं सबसे अच्छी बात है जब किसी घर में किसी बच्चे का जन्म होता है.तो उसके नाम से उसके परिवार वालों के द्वारा 111 पेड़ लगवाए जाते हैं. और उस पेड़ का नाम भी बच्ची के नाम से मिलता हुआ रखा जाता है.

वहीं इसके अलावा जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है.तो ग्राम पंचायत द्वारा उस लड़की के नाम से ₹21000 की धनराशि जमा की जाती है.तो वही लड़की के परिवार वालों से ₹10000 लेकर बच्ची के नाम ₹31000 की एफडी करवाई जाती है. जब वह 18 साल की होती है.तो उसकी शादी में या फिर उसकी पढ़ाई के काम में यह पैसा यूज लिया जाता है.

वहीं इस गांव में पेड़ों की बचाने के लिए गांव के लोगों ने एक अनोखी मुहिम चलाई. जिसमें रक्षाबंधन के 1 दिन पूर्व महिलाएं पेड़ों को अपना भाई मानकर उन्हें राखी बांधती हैं.और उनकी सुरक्षा का वचन लेती हैं.

ये सारे तस्वीरें जो आप देख रहे हैं वो कभी ऐसे नहीं थे...यह गांव संगमरमर की पहाड़ियों पर बसा है. इसके चारों ओर बड़े पैमाने पर संगमरमर की खनन का काम होता है.खनन के दौरान निकलने वाले मलबे का गांव में ही डाला जाता था. जिससे यहां न केवल पत्थरों के मलबे के पहाड़ बन रहे थे. बल्कि गांव की जमीन और आबोहवा भी खराब हो रही थी. जिसको लेकर पूरे गांव वालों ने पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल का साथ दिया और आज एक गांव मार्बल के मलबे के कारण नहीं जाना जाता बल्कि हरियाली के लिए जाना जाता है.

यहां पर 2006 से लेकर अब तक करीब साढे तीन लाख पौधे भी लगवाए गए हैं. जिसके कारण एक तरफ जलस्तर भी गांव में ऊपर आया और गांव की आबोहवा भी परिवर्तन आया. यही कारण है कि आज इस गांव की चर्चा भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में पिपलांत्री मॉडल के नाम से हो रही है. जहां एक तरफ हमारे देश के कई हिस्सों में आज भी लड़कियों के जन्म को लेकर परिवार के लोक उन्हें बोढ समझते हैं. लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में समाज की इस रूढ़िवादी परंपरा से काफी आगे निकल चुका है. इस गांव में पैदा होने वाली लड़कियों को बोझ नहीं बल्कि उन्हें सौभाग्य के रूप में समझा जाता है. और यही कारण है.कि डेनमार्क की सरकार ने इस गांव को अपनी स्कूली सेलेबस में शामिल किया है.

राजस्थान का यह गांव पौधारोपण में देश ही नहीं विदेशों के लिए भी है आदर्श

यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज खानापूर्ति नहीं बल्कि पेड़ों से रिश्ता बनाया गया. यहां पर्यावरण बचाने की मुहिम के लिए एक प्रेरक मिसाल भी है. अब तक गांव वालों ने करीब साढे तीन लाख पेड़ लगा चुके है. और उनकी देखभाल भी कर रहे हैं. इसी का कारण है कि आज यह पूरा गांव हरा भरा दिखाई देता है. तो वही इस गांव के मॉडल को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं. तो वही ईटीवी भारत भी इस गांव की कहानी को इसलिए आपको दिखाना चाह रहा था .क्योंकि जहां एक तरफ बदलते दौर में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के कारण कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की स्थितियां सामने आ रही है. इससे एक और जल संकट पैदा हो रहा है. तो दूसरी और पानी की कमी से खेती का रकबा घट रहा है.

इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निजात पाने के लिए इस गांव से पेड़ पौधे लगाने की सीख लेकर क्यों ना हम अपने आसपास पेड़ लगाएं जिसके कारण जलवायु के परिवर्तन के दुष्परिणामों से हम बच सकें और एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें. ईटीवी भारत भी आपसे अपील करता है. कि आप अपने आसपास पेड़ जरूर लगाएं क्योंकि मानसून की बारिश भी शुरू हो चुकी है.

Intro:राजसमंद- कहते हैं कि कुछ कर गुजरने की इरादे अगर मजबूत हो तो हर मुश्किल भी आसान हो जाती है. जी हां ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में यहां मार्बल की खदानों से निकलता है. संगमरमर जिसके पीछे छूट जाते हैं. मार्बल वस्टेस्ट ली पहाड़ जो जमीन को बंजर बनाते हैं.
साल 2005 राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर पिपलांत्री गांव जहां भूमिगत जलस्तर कम होने से और चारों तरफ मार्बल के बचे हुए अवशिष्ट पदार्थों से इस गांव की हवा भी प्रदूषित होने लगी थी.



Body:तभी इस गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बच्चे का अल्पआयु में निधन हो गया था. जिसको लेकर उन्हें इस बात का इतना दुख हुआ कि उन्होंने अपनी बेटी की याद में एक पेड़ लगाया और उसे पाल पोस कर बड़ा किया गया.तभी श्याम सुंदर मन में विचार आया क्यों ना पूरे गांव के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए. कि किसी के घर में लड़की पैदा होगी तो 111 पौधे लगाए जाएंगे.इस तरह से गांव में जब किसी की मृत्यु होती है. तो उस परिवार के लोग उसकी याद में 11 पेड़ लगाते हैं.और हमेशा के लिए उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेते हैं. तो वही सबसे अच्छी बात की जब किसी घर में किसी बच्चे का जन्म होता है.तो उसके नाम से उसके परिवार वालों के द्वारा 111 पेड़ लगवाए जाते हैं. और उस पेड़ का नाम भी बच्ची के नाम से मिलता हुआ रखा जाता है. वहीं इसके अलावा जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है.तो ग्राम पंचायत द्वारा उस लड़की के नाम से ₹21000 की धनराशि जमा की जाती है.तो वही लड़की के परिवार वालों से ₹10000 लेकर बच्ची के नाम ₹31000 की एफडी करवाई जाती है. जब वह 18 साल की होती है.तो उसकी शादी में या फिर उसकी पढ़ाई के काम में यह पैसा यूज लिया जाता है. तो वही इस गांव में पेड़ों की बचाने के लिए गांव के लोगों ने एक अनोखी मुहिम चलाई जिसमें रक्षाबंधन के 1 दिन पूर्व महिलाएं पेड़ों को अपना भाई मानकर उन्हें राखी बांधती हैं.और उनकी सुरक्षा का वचन लेती हैं.


Conclusion:यही कारण है.कि यह गांव संगमरमर की पहाड़ियों पर बसा है.इसके चारों ओर बड़े पैमाने पर संगमरमर की खनन का काम होता है.खनन के दौरान निकलने वाले मलबे का गांव में ही डाला जाता था.जिससे यहां न केवल पत्थरों के मलबे के पहाड़ बन रहे थे.बल्कि गांव की जमीन और आबोहवा भी खराब हो रही थी. जिसको लेकर पूरे गांव वालों ने पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल का साथ दिया और आज एक गांव मार्बल के मलबे के कारण नहीं जाना जाता बल्कि हरियाली चादर ओड़ा हुआ है.जिसके कारण 2006 से लेकर अब तक करीब साढे तीन लाख पेड़ भी लगवाए गए हैं.जिसके कारण एक तरफ जलस्तर भी गांव में ऊपर आया और गांव की आबोहवा भी परिवर्तन आया. यही कारण है कि आज इस गांव की चर्चा भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में पिपलांत्री मॉडल के नाम से हो रही है. जहां एक तरफ हमारे देश के कई हिस्सों में आज भी लड़कियों के जन्म को लेकर परिवार के लोक उन्हें भोज समझते हैं. लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में समाज की इस रूढ़िवादी परंपरा से काफी आगे निकल चुका है. इस गांव में पैदा होने वाली लड़कियों को बोझ नहीं बल्कि उन्हें सौभाग्य के रूप में समझा जाता है. और यही कारण है.कि डेनमार्क की सरकार ने इस गांव को अपनी स्कूली सेलेबस में शामिल किया है.यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज खानापूर्ति नहीं बल्कि पेड़ों से रिश्ता बनाया गया.यह पर्यावरण बचाने की मुहिम के लिए एक प्रेरक मिसाल भी है. अब तक गांव वालों ने करीब साढे तीन लाख पेड़ लगा चुके है. और उनकी देखभाल भी कर रहे हैं.इसी का कारण है कि आज यह पूरा गांव हरा भरा दिखाई देता है. तो वही इस गांव के मॉडल को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं. तो वही ईटीवी भारत भी इस गांव की कहानी को इसलिए आपको दिखाना चाह रहा था .क्योंकि जहां एक तरफ बदलते दौर में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के कारण कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की स्थितियां सामने आ रही है. इससे एक और जल संकट पैदा हो रहा है. तो दूसरी और पानी की कमी से खेती का रकबा घट रहा है.इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निजात पाने के लिए इस गांव से पेड़ पौधे लगाने की सीख लेकर क्यों ना हम अपने आसपास पेड़ लगाएं जिसके कारण जलवायु के परिवर्तन के दुष्परिणामों से हम बच सकें और एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें ईटीवी भारत भी आपसे अपील करता है. कि आप अपने आसपास पेड़ जरूर लगाएं क्योंकि मानसून की बारिश भी शुरू हो चुकी है.
बाइट- पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल
अन्य बाइट गांव की बालिकाओं की और महिलाओं की
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