जयपुर. आचार संहिता खत्म होने के साथ ही सरकार मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत कराए गए निर्माण कार्यों को पंचायतों को सुपुर्द कर देगी. गांव में वर्षा का पानी बहकर बाहर जाने की बजाय गांव में ही निवासियों पशु और खेतों के काम आए इस सोच के साथ पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2016 से मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान की शुरुआत की.
बता दें कि इस अभियान में विभिन्न गांव का चयन कर सरकार और आम जनता के सहयोग से पारंपरिक जल संरक्षण के तरीके जैसे तालाब कुंड, बावरिया आदि की मरम्मत कार्य करवाया गया. बारिश के पानी की एक-एक बूंद को सहेज कर गांव को जल आत्मनिर्भर की ओर बढ़ाने के उद्देश्य से अभियान शुरू किया गया था लेकिन अब प्रदेश में सत्ता बदलने के साथ ही इस अभियान को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी की जा रही है. पूर्व सरकार के समय हुए कामकाज को अब पंचायत स्तर पर दिया जाएगा.
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का पहला चरण 27 जनवरी 2016 से 30 जून 2016 तक चला, दूसरा चरण 9 दिसंबर 2016 से शुरू हुआ, तीसरा चरण 9 दिसंबर 2017 से शुरू हुआ. मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत तीन चरणों में 19810 गांव को कवर किया गया. जिसमें 549140 काम कराए गए. अब राज्य सरकार एमजेएस के तहत कराए गए जल स्त्रोतों को ग्राम पंचायतों को सौंपा जाएगा.इसके लिए ग्रामीण विकास विभाग ने पूरा प्लान तैयार कर लिया है.
बता दें कि पहले फेज में करीब एक लाख जल स्त्रोतों को पंचायत को सौंपा जाएगा. इसके बाद इनकी देखरेख और पानी की उपयोगिता के बारे में पंचायत अपने हिसाब से फैसला ले सकेगी. सरकार का मानना है कि इससे पंचायतों की जरूरत के अनुसार पानी का उपयोग कर सकेगी. साथ ही सरकार इनके डेवलपमेंट के लिए पैसा भी पंचायत को देगी. जिससे साफ है कि पूर्व सरकार के समय इस जल स्वावलंबन अभियान को ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में पूरे प्रदेश में पूरे जोश के साथ चला गया था .सत्ता परिवर्तन के साथ ही अभियान भी ठंडे बस्ते में जाता हुआ नजर आ रहा है.