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बूंदी में भाईदूज पर मनाया जाता है अनूठा घास भैरू उत्सव, गांव में निकलती है बैलों की सवारी

बूंदी में भाईदूज के पर्व पर देई कस्बे में अनूठी परंपरा है. परंपरा के तहत बैलों की पूजा कर उन्हें शराब पिलाकर मदमस्त किया जाता है. इसके बाद बैलों को गांवभर में घुमाया जाता है और पटाखे चलाए जाते हैं. इस दौरान बैल चमकते हैं और इधर-उधर भागते हैं. बस इसी भाग-दौड़ में ग्रामवासी आनंद पाते हैं और बैलों को जोतने की कोशिश करते हैं. हालांकि पशुक्रूरता, पटाखे बैन और कोरोना गाइड लाइन को इस पर्व के दौरान ताक पर रख दिया गया.

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बूंदी में परंपरागत घास भैरू उत्सव
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Published : Nov 16, 2020, 6:37 PM IST

बूंदी. जिले के देई कस्बे में भाईदूज के पर्व पर अनूठी परंपरा निभाई जाती है. यहां घास भैरू की सवारी निकाली जाती है. इसमें बैलों को मदिरा पिलाई जाती है और पटाखे फोड़े जाते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव में यह अनोखी परम्परा पिछले 400 साल से निभाई जा रही है.

बूंदी में मनाया जाता है परंपरागत घास भैरूं उत्सव

बैलों को किया जाता है मदमस्त

बैलों को शराब पिलाकर मदमस्त करने के बाद गांव के लोग उन्हें पटाखे फोड़कर चमकाते हैं और इसी दौरान लोग बैलों को जोतने की कोशिश भी करते हैं.पटाखों के शोर से चमकर बैलों का भीड़ को तितर बितर करना, लोगों का गिरना पड़ना इस उत्सव का हिस्सा है और लोगों में रोमांच पैदा करता है. इस हुल्लड़ भरी सवारी को देखने के लिए घरों की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग गलियों के दोनों ओर बरामदों, छतों और चबूतरों पर खड़े होते हैं और उत्सव का आनंद उठाते हैं.

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सभी ग्रामवासी उत्सव में होते हैं शामिल

पढ़ें- बड़ा हादसा टलाः कोटा में घने कोहरे के बीच गायों से टकराकर तालाब में गिरी मिनी बस, 7 लोग घायल

आस-पास के इलाकों से जुटते हैं लोग

सवारी की तैयारी सुबह तड़के ही शुरू हो जाती है. गांव के चौक पर भीड़ जमा होने के बाद बैलों को घास भैरू की प्रतिमा के पास लायाा जाता है. बैल को खूब सजाकर भगवान घास भैरू की पूजा की जाती है. इसके बाद बैलों को शराब पिलाकर उन्हें मदमस्त किया जाता है. गांव के लोग इस दौरान पटाखे चलाना शुरू कर देते हैं. बैल चमककर रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भागते हैं और साथ ही लोग भी भाग-दौड़ करते हैं. इस खेल में कई लोग घायल भी जाते हैं. इन अनूठे खेल को देखने के लिए बूंदी जिले के विभिन्न इलाकों से तो लोग आते ही हैं, साथ ही कोटा, टोंक, सवाईमाधोपुर, नैनवां, करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी सख्यां में लोग सवारी देखने पहुँचते हैं.

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उत्सव के दौरान लोकगीतों का होता है गायन

घास भैरू और बैलों का तमाशा

घास भैरू की प्रतिमा एक गोल पत्थरनुमां है जिसका वजन करीब पांच क्विंटल बताया जाता है. स्थानीय मान्यता है कि घास भैरू की यह प्रतिमा टोंक जिले के घास गांव से लाई जाती है. कुछ वर्षों पहले घास भैरू को बैलों की सहायता से घसीट कर यात्रा निकाली जाती थी. लेकिन अब घास भैरू की पूजा कर बैलों के साथ गांव वाले खेल खेलते हैं.

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सभी ग्रामवासी उत्सव में होते हैं शामिल

बहरहाल, कोरोना का संक्रमण, पटाखे चलाने पर बैन और पशुक्रूरता की बात करें तो यह पर्व जानवरों और इंसानों दोनों के लिए खतरनाक है. लेकिन लोकआस्था और लोकमान्यता के देश भारत में इस तरह के आयोजन होते आए हैं. इस बार भी बूंदी के देई कस्बे में बड़ी तादाद में लोगों ने इस उत्सव में हिस्सा लिया.

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गांव की गलियों में घूमती घास भैरू सवारी
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बैलों को चमकाकर किया जाता है उग्र

बूंदी. जिले के देई कस्बे में भाईदूज के पर्व पर अनूठी परंपरा निभाई जाती है. यहां घास भैरू की सवारी निकाली जाती है. इसमें बैलों को मदिरा पिलाई जाती है और पटाखे फोड़े जाते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव में यह अनोखी परम्परा पिछले 400 साल से निभाई जा रही है.

बूंदी में मनाया जाता है परंपरागत घास भैरूं उत्सव

बैलों को किया जाता है मदमस्त

बैलों को शराब पिलाकर मदमस्त करने के बाद गांव के लोग उन्हें पटाखे फोड़कर चमकाते हैं और इसी दौरान लोग बैलों को जोतने की कोशिश भी करते हैं.पटाखों के शोर से चमकर बैलों का भीड़ को तितर बितर करना, लोगों का गिरना पड़ना इस उत्सव का हिस्सा है और लोगों में रोमांच पैदा करता है. इस हुल्लड़ भरी सवारी को देखने के लिए घरों की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग गलियों के दोनों ओर बरामदों, छतों और चबूतरों पर खड़े होते हैं और उत्सव का आनंद उठाते हैं.

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सभी ग्रामवासी उत्सव में होते हैं शामिल

पढ़ें- बड़ा हादसा टलाः कोटा में घने कोहरे के बीच गायों से टकराकर तालाब में गिरी मिनी बस, 7 लोग घायल

आस-पास के इलाकों से जुटते हैं लोग

सवारी की तैयारी सुबह तड़के ही शुरू हो जाती है. गांव के चौक पर भीड़ जमा होने के बाद बैलों को घास भैरू की प्रतिमा के पास लायाा जाता है. बैल को खूब सजाकर भगवान घास भैरू की पूजा की जाती है. इसके बाद बैलों को शराब पिलाकर उन्हें मदमस्त किया जाता है. गांव के लोग इस दौरान पटाखे चलाना शुरू कर देते हैं. बैल चमककर रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भागते हैं और साथ ही लोग भी भाग-दौड़ करते हैं. इस खेल में कई लोग घायल भी जाते हैं. इन अनूठे खेल को देखने के लिए बूंदी जिले के विभिन्न इलाकों से तो लोग आते ही हैं, साथ ही कोटा, टोंक, सवाईमाधोपुर, नैनवां, करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी सख्यां में लोग सवारी देखने पहुँचते हैं.

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उत्सव के दौरान लोकगीतों का होता है गायन

घास भैरू और बैलों का तमाशा

घास भैरू की प्रतिमा एक गोल पत्थरनुमां है जिसका वजन करीब पांच क्विंटल बताया जाता है. स्थानीय मान्यता है कि घास भैरू की यह प्रतिमा टोंक जिले के घास गांव से लाई जाती है. कुछ वर्षों पहले घास भैरू को बैलों की सहायता से घसीट कर यात्रा निकाली जाती थी. लेकिन अब घास भैरू की पूजा कर बैलों के साथ गांव वाले खेल खेलते हैं.

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सभी ग्रामवासी उत्सव में होते हैं शामिल

बहरहाल, कोरोना का संक्रमण, पटाखे चलाने पर बैन और पशुक्रूरता की बात करें तो यह पर्व जानवरों और इंसानों दोनों के लिए खतरनाक है. लेकिन लोकआस्था और लोकमान्यता के देश भारत में इस तरह के आयोजन होते आए हैं. इस बार भी बूंदी के देई कस्बे में बड़ी तादाद में लोगों ने इस उत्सव में हिस्सा लिया.

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गांव की गलियों में घूमती घास भैरू सवारी
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बैलों को चमकाकर किया जाता है उग्र
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