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बूंदी के रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में पहुंचा टाइगर, ट्रैकिंग में लगा वन विभाग - Ramgarh Poisonous Wildlife

राजस्थान के चौथे टाइगर रिजर्व के रूप में बनने वाले बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण में एक बार फिर टाइगर पहुंच गया है. यहां टाइगर की दहाड़ रामगढ़ अभ्यारण में सुनाई देने लगी है. अभ्यारण में टाइगर के पहुंचने के बाद वन्यजीव प्रेमियों ने खुशी जाहिर की है. साथ में वन विभाग के अधिकारी टाइगर के पगमार्क लेकर उसकी ट्रैकिंग करने में लगे हुए हैं.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण में पहुंचा टाइगर
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Published : Jul 1, 2020, 9:53 PM IST

बूंदी. राजस्थान में बूंदी जिले का प्रसिद्ध रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य, जो बाघों सहित सभी वन्यजीवों के लिए सदियों से बेहतर आश्रय स्थल रहा है. एक बार फिर से बाघों के स्वागत के लिए तैयार है. यहां का उत्तम प्राकृतिक वातावरण और बीच में बहने वाली सदानीरा मेज नदी और खूबसूरत वादियों में बाघों की दहाड़ ने ही इसे भारत का एक प्रमुख अभयारण्य होने का गौरव प्रदान किया है.

बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण में पहुंचा टाइगर

एक दशक तक बाघ विहीन रहने के बाद अब फिर से यह अभयारण्य बाघों के स्वागत के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो गया है. सोमवार को अभयारण्य में रणथंभौर टाइगर रिजर्व से चलकर एक बाघ के यहां पहुंचने के बाद वन्यजीव प्रेमियों और वन विभाग को उम्मीद जगी है, कि शीघ्र ही यह महत्वपूर्ण वन क्षेत्र फिर से बाघ से आबाद होगा. बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण को प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत की ओर से की थी और 2021 में टाइगर छोड़ने की घोषणा भी की गई थी.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
अभयारण्य में मौजूद वन्यजीव

वन विभाग के कठिन परिश्रम और T-62 के साथ ही T-91 बाघों के यहां आने के बाद अभयारण्य का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है. यहां पर नियमित गश्त और शिकारियों पर प्रभावी नकेल कसने से बाघ के लिए प्रे-बेस बढ़ने लगा है. चीतल और सांभर की तादात में भी बढ़ोतरी हुई है. दिल्ली के राष्ट्रपति भवन से भी सांभर चीतल लाकर यहां छोड़े गए हैं, जिनका कुनबा भी अब बढ़ने लगा है.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य

पढ़ें- डॉक्टरों को सलाम...जिन्होंने अपने प्राणों से पहले कोरोना मरीजों की जान बचाई : अविनाश पांडे

रामगढ़ महल के आसपास के बड़े वन क्षेत्र से विलायती बंबूल को हटा दिया गया है, ताकि बाघों के स्वछंद विचरण में बाधा उत्पन्न नहीं हो. साथ ही यहां पर घास का मैदान विकसित किया जा रहा है. अभयारण्य में भालुओं की बढ़ती तादात को देखते हुए यहां बेर और फलदार पौधे लगाने की भी तैयारी की जा रही है. जिससे भोजन की तलाश में भालुओं को आबादी के निकट आने से रोका जा सके. अब उम्मीद है कि यहां बाघों का कुनबा बढ़ेगा और जंगल में शांत हुई बाघों की दहाड़ फिर से गूंजेगी और बूंदी को इसका खोया हुआ गौरव वापस हासिल हो सकेगा.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
अभयारण्य में जल स्रोत

इससे बूंदी में इको टूरिज्म के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढे़ंगे और युवाओं के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. गौरतलब है कि बूंदी रियासत के हाड़ा वंशीय राजाओं के समय बाघों सहित सभी वन्यजीवों के शिकार पर पूर्ण पाबंदी थी और इसके चलते आम शिकारी जंगल में किसी भी वन्यजीव का शिकार करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. 1880 में बागडोर संभालने वाले राम सिंह हाड़ा बाघ प्रेमी शासक हुए. जिन्होंने मेज नदी किनारे जंगल में एक महल का निर्माण करवाया, जहां से राजा बाघों को निहारा करते थे.

देश की आजादी तक बूंदी सहित हाड़ौती में बाघों सहित सभी प्रजाति के वन्यजीव मौजूद थे. लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद बाघों सहित अन्य वन्यजीवों का धड़ल्ले से शिकार होने लगा और देखते ही देखते जंगल और वन्यजीवों का अस्तित्व संकट में आ गया. अब बूंदी जिले में स्थितियां बदली है और यहां के जंगल फिर से बाघों के अनुकूल हो गए हैं. साथ ही रणथंभौर में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने रामगढ़ और बूंदी के जंगलों को फिर से बाघों से आबाद करने की तैयारी कर ली है.

पढ़ें- Special : स्कूल संचालकों पर कोरोना की मार...80 फीसदी बंद होने के कगार पर

गत बजट सत्र में मुख्यमंत्री की ओर से बूंदी के जंगलों को टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा पर वन विभाग ने अमल शुरू कर दिया हैं. बूंदी के जंगलों को प्रदेश के चौथे टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की तैयारियां शुरू कर दी है. इस क्रम में 800 वर्ग किलोमीटर का विस्तृत प्रस्ताव राज्य सरकार को भिजवाया जा चुका है.

जंगल और पहाड़ों पर भरे हैं जल के भंडार

बूंदी जिले के वन क्षेत्र और पहाड़ी इलाकों में परंपरागत जलस्रोतों पर पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए है. बूंदी जिले में रामगढ़-विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में मेज नदी के अलावा दो दर्जन प्राकृतिक जल-स्रोत हैं, जिनमें 12 माह पानी रहता है. इसी प्रकार जिले के दक्षिण-पश्चिम में देवझर महादेव से भीमलत महादेव के दुर्गम पहाड़ी जंगलों में भी डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी पानी बहता रहता है.

जंगल में जल-स्रोत बना आस्था का केंद्र

जिले के सुदूर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में भी जल उपलब्धता वाले जल स्रोत जैव-विविधता के वाहक होने के साथ-साथ आमजन के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में भी उभरे हैं. इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालंदा माताजी का स्थान प्रमुख है. जहां भीषण अकाल में भी पानी का एक बड़ा दह भरा रहता है. प्राकृतिक रूप से यहां चट्टानों से पानी निकलता है. इसी कारण इसका नाम कालदह पड़ा, जो अब कालंदा वन खंड के रूप में जाना जाता है.

पढ़ें- स्पेशलः अपनी हालत पर आंसू बहा रहे अन्नदाता, पानी-पानी हो रही पसीने की कमाई

इसी पहाड़ी पर उमरथुणा के निकट केकत्या महादेव, सथूर के निकट देवझर महादेव, आम्बा वाला नाला, डाटूंदा के पास दुर्वासा महादेव, पारा का देवनारायण, नारायणपुर के पास धूंधला महादेव, खींया-बसोली के पास आंबारोह, भीमलत महादेव, नीम का खेड़ा के पास झरोली माताजी, खेरूणा के नीलकंठ महादेव सहित अन्य स्थान सदाबहार जलयुक्त होने के कारण सदियों से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहे और आज तक आस्था के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं.

जिले में बाघों के लिए प्रर्याप्त प्रे-बेस

बूंदी में पहाड़ी तलहटियों और पहाड़ों के ऊपर पानी का प्रवाह लगातार एक सा बना रहने के पीछे पहाड़ों पर जल-संचय और सघन वनस्पति प्रमुख कारण है. जिससे यहां की जैव-विविधता समृध बनी हुई है. बूंदी के रामगढ़ अभयारण्य सहित सभी जंगलों में सांभर, चीतल और जंगली सुअरों जैसे शाकाहारी वन्यजीवों की तादात में निरंतर इजाफा हो रहा है, जो बाघों के लिए अच्छा भोजन सिद्ध होंगे. इसके साथ ही जिले में पैंथर और भालुओं की संख्या में भी वृद्धी हुई है.

बूंदी. राजस्थान में बूंदी जिले का प्रसिद्ध रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य, जो बाघों सहित सभी वन्यजीवों के लिए सदियों से बेहतर आश्रय स्थल रहा है. एक बार फिर से बाघों के स्वागत के लिए तैयार है. यहां का उत्तम प्राकृतिक वातावरण और बीच में बहने वाली सदानीरा मेज नदी और खूबसूरत वादियों में बाघों की दहाड़ ने ही इसे भारत का एक प्रमुख अभयारण्य होने का गौरव प्रदान किया है.

बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण में पहुंचा टाइगर

एक दशक तक बाघ विहीन रहने के बाद अब फिर से यह अभयारण्य बाघों के स्वागत के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो गया है. सोमवार को अभयारण्य में रणथंभौर टाइगर रिजर्व से चलकर एक बाघ के यहां पहुंचने के बाद वन्यजीव प्रेमियों और वन विभाग को उम्मीद जगी है, कि शीघ्र ही यह महत्वपूर्ण वन क्षेत्र फिर से बाघ से आबाद होगा. बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण को प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत की ओर से की थी और 2021 में टाइगर छोड़ने की घोषणा भी की गई थी.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
अभयारण्य में मौजूद वन्यजीव

वन विभाग के कठिन परिश्रम और T-62 के साथ ही T-91 बाघों के यहां आने के बाद अभयारण्य का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है. यहां पर नियमित गश्त और शिकारियों पर प्रभावी नकेल कसने से बाघ के लिए प्रे-बेस बढ़ने लगा है. चीतल और सांभर की तादात में भी बढ़ोतरी हुई है. दिल्ली के राष्ट्रपति भवन से भी सांभर चीतल लाकर यहां छोड़े गए हैं, जिनका कुनबा भी अब बढ़ने लगा है.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य

पढ़ें- डॉक्टरों को सलाम...जिन्होंने अपने प्राणों से पहले कोरोना मरीजों की जान बचाई : अविनाश पांडे

रामगढ़ महल के आसपास के बड़े वन क्षेत्र से विलायती बंबूल को हटा दिया गया है, ताकि बाघों के स्वछंद विचरण में बाधा उत्पन्न नहीं हो. साथ ही यहां पर घास का मैदान विकसित किया जा रहा है. अभयारण्य में भालुओं की बढ़ती तादात को देखते हुए यहां बेर और फलदार पौधे लगाने की भी तैयारी की जा रही है. जिससे भोजन की तलाश में भालुओं को आबादी के निकट आने से रोका जा सके. अब उम्मीद है कि यहां बाघों का कुनबा बढ़ेगा और जंगल में शांत हुई बाघों की दहाड़ फिर से गूंजेगी और बूंदी को इसका खोया हुआ गौरव वापस हासिल हो सकेगा.

Fourth Tiger Reserve of Rajasthan, Ramgarh Poisonous Wildlife
अभयारण्य में जल स्रोत

इससे बूंदी में इको टूरिज्म के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढे़ंगे और युवाओं के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. गौरतलब है कि बूंदी रियासत के हाड़ा वंशीय राजाओं के समय बाघों सहित सभी वन्यजीवों के शिकार पर पूर्ण पाबंदी थी और इसके चलते आम शिकारी जंगल में किसी भी वन्यजीव का शिकार करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. 1880 में बागडोर संभालने वाले राम सिंह हाड़ा बाघ प्रेमी शासक हुए. जिन्होंने मेज नदी किनारे जंगल में एक महल का निर्माण करवाया, जहां से राजा बाघों को निहारा करते थे.

देश की आजादी तक बूंदी सहित हाड़ौती में बाघों सहित सभी प्रजाति के वन्यजीव मौजूद थे. लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद बाघों सहित अन्य वन्यजीवों का धड़ल्ले से शिकार होने लगा और देखते ही देखते जंगल और वन्यजीवों का अस्तित्व संकट में आ गया. अब बूंदी जिले में स्थितियां बदली है और यहां के जंगल फिर से बाघों के अनुकूल हो गए हैं. साथ ही रणथंभौर में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने रामगढ़ और बूंदी के जंगलों को फिर से बाघों से आबाद करने की तैयारी कर ली है.

पढ़ें- Special : स्कूल संचालकों पर कोरोना की मार...80 फीसदी बंद होने के कगार पर

गत बजट सत्र में मुख्यमंत्री की ओर से बूंदी के जंगलों को टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा पर वन विभाग ने अमल शुरू कर दिया हैं. बूंदी के जंगलों को प्रदेश के चौथे टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की तैयारियां शुरू कर दी है. इस क्रम में 800 वर्ग किलोमीटर का विस्तृत प्रस्ताव राज्य सरकार को भिजवाया जा चुका है.

जंगल और पहाड़ों पर भरे हैं जल के भंडार

बूंदी जिले के वन क्षेत्र और पहाड़ी इलाकों में परंपरागत जलस्रोतों पर पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए है. बूंदी जिले में रामगढ़-विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में मेज नदी के अलावा दो दर्जन प्राकृतिक जल-स्रोत हैं, जिनमें 12 माह पानी रहता है. इसी प्रकार जिले के दक्षिण-पश्चिम में देवझर महादेव से भीमलत महादेव के दुर्गम पहाड़ी जंगलों में भी डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी पानी बहता रहता है.

जंगल में जल-स्रोत बना आस्था का केंद्र

जिले के सुदूर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में भी जल उपलब्धता वाले जल स्रोत जैव-विविधता के वाहक होने के साथ-साथ आमजन के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में भी उभरे हैं. इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालंदा माताजी का स्थान प्रमुख है. जहां भीषण अकाल में भी पानी का एक बड़ा दह भरा रहता है. प्राकृतिक रूप से यहां चट्टानों से पानी निकलता है. इसी कारण इसका नाम कालदह पड़ा, जो अब कालंदा वन खंड के रूप में जाना जाता है.

पढ़ें- स्पेशलः अपनी हालत पर आंसू बहा रहे अन्नदाता, पानी-पानी हो रही पसीने की कमाई

इसी पहाड़ी पर उमरथुणा के निकट केकत्या महादेव, सथूर के निकट देवझर महादेव, आम्बा वाला नाला, डाटूंदा के पास दुर्वासा महादेव, पारा का देवनारायण, नारायणपुर के पास धूंधला महादेव, खींया-बसोली के पास आंबारोह, भीमलत महादेव, नीम का खेड़ा के पास झरोली माताजी, खेरूणा के नीलकंठ महादेव सहित अन्य स्थान सदाबहार जलयुक्त होने के कारण सदियों से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहे और आज तक आस्था के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं.

जिले में बाघों के लिए प्रर्याप्त प्रे-बेस

बूंदी में पहाड़ी तलहटियों और पहाड़ों के ऊपर पानी का प्रवाह लगातार एक सा बना रहने के पीछे पहाड़ों पर जल-संचय और सघन वनस्पति प्रमुख कारण है. जिससे यहां की जैव-विविधता समृध बनी हुई है. बूंदी के रामगढ़ अभयारण्य सहित सभी जंगलों में सांभर, चीतल और जंगली सुअरों जैसे शाकाहारी वन्यजीवों की तादात में निरंतर इजाफा हो रहा है, जो बाघों के लिए अच्छा भोजन सिद्ध होंगे. इसके साथ ही जिले में पैंथर और भालुओं की संख्या में भी वृद्धी हुई है.

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