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मदद करो सरकार... यहां हाथों से गलीचे बनाते है कारीगर , लेकिन उद्योग अब तोड़ रहा दम

नैनवां क्षेत्र में बनने वाले गलीचों ने देश ही नहीं विदेशों में भी एक अलग ही छाप छोड़ी है. किसी समय क्षेत्र में करीब 400 से ज्यादा गलीचे बनाने के उद्योग लगे हुए थे. जिन पर 1600 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता था. एक गलीचा बनाने में तकरीबन 2 से 3 महीने का समय लगता है. जिससे गलीचा बनाने वाले कारीगरों को तीन महीनों का रोजगार मिलता है, लेकिन अब बिना सरकारी सहायता के धीरे-धीरे दम तोड़ रहा यह गलीचा उद्योग क्षेत्र में गिने चुने ही नजर आते है. देखिए बूंदी से स्पेशल रिपोर्ट..

special story on carpet industry, Nanwan carpet industry
नैनवां में दम तोड़ रहा कालीन उद्योग
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Published : Jan 11, 2020, 11:43 PM IST

नैनवा (बूंदी). जिले के नैनवां उपखंड में कभी रोजगार का मुख्य जरिया गलीचा (कालीन) हुआ करता था. जो वक्त की मार और आधुनिकता की चमक के चलते नैनवां का गलीचा निर्माण उद्योग खत्म होने की कगार पर है. अब इस गलीचा उद्योग को सरकारी संरक्षण नहीं मिला, तो धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगा. कभी जिन गांवों मे 300 से 400 गलीचा बनाने के उद्योग लगे हुये थे. वहां आज केवल गलीचा बनाने के अवशेष ही नजर आ रहे है. गलीचा बनाने वाले कारीगरों के हाथों में ऐसा जादू है की गलीचे में बनाए गए डिजाइन देखकर ही लोग आश्चर्यचक्ति हो जाते है.

नैनवां में दम तोड़ रहा कालीन उद्योग

पढ़ें- दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योगः विदेशों में बिकने वाले कालीन और गलीचे अब झेल रहे बेरूखी

बूंदी जिले में वर्षों पहले सिर्फ नैनवां कस्बे में ही नहीं बल्कि यहां की कई पंचायतों में ये गलीचा उद्योग फलफूल रहा था, लेकिन अब आधुनिकता के चलते देश ही नहीं विदेशों में भी लाखों रुपयों की कीमत रखने वाले ये गलीचे अब हाड़ौती क्षेत्र को भी पार करने में सक्षम नहीं है. आज हाथों से बने गलीचों की कीमत विश्वव बाजार में लाखों में है. वहीं विदेशों में इसकी आवश्यकता काफी ज्यादा है, लेकिन राजकीय अनुदान नहीं मिलने से नैनवा उपखंड का ये रोजगार, अब क्षेत्र से लुप्त होता जा रहा है.

पढ़ें- Special: बालोतरा पहुंचीं नीतू चोपड़ा का स्वागत, स्कूटी पर भारत यात्रा कर राजस्थान बुुक में रिकॉर्ड दर्ज कराया

ईटीवी भारत ने जब इन गलीचा कारीगरों से बात की उन्होंने बताया कि उनकी तीन पीढ़ियां गलीचा बनाने के कार्य को कर रही है. सन 1970 के पहले से नैनवां क्षेत्र का मुख्य रोजगार बना ये गलीचा उद्योग समय की मार से उबरने की कोशिश भले ही करें, लेकिन अब जब तक सीधे बाजार से इनका संपर्क नहीं होगा तो ये उद्योग बहुत जल्द खत्म हो जाएगा. वर्तमान में ये उद्योग जयपुर के कुछ एजेंट के भरोसे ही चल रहा है. जहां से अब इन कारीगरों को केवल मेहनताने के रूप में मात्र जीवनयापन करने जितनी ही आमदनी प्राप्त होती है. ऐसे में यदि सरकार की ओर से कुछ सहायता इनको मिल जाये तो शायद नैनवां उपखंड के गलीचे पूरे विशव में अपनी पहचान बना कर क्षेत्र नाम रोशन कर सकता है.

पढ़ें- टिड्डी प्रभावित किसानों को राहत देने पर राजनीति, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्य सरकार के पाले में डाली गेंद

कारीगर ने बताया कि राजकीय सहायता से यदि व्यावसायिक बाजार सीधे तौर पर यहां से जुड़ जाए, तो शायद यहां का नजारा ही बदल जाए. साथ ही धीरे-धीरे काम से मुंह मोड़ चुके कारीगर और क्षेत्र के बेरोजगारों को रोजगार मिल जाएगा.

नैनवा (बूंदी). जिले के नैनवां उपखंड में कभी रोजगार का मुख्य जरिया गलीचा (कालीन) हुआ करता था. जो वक्त की मार और आधुनिकता की चमक के चलते नैनवां का गलीचा निर्माण उद्योग खत्म होने की कगार पर है. अब इस गलीचा उद्योग को सरकारी संरक्षण नहीं मिला, तो धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगा. कभी जिन गांवों मे 300 से 400 गलीचा बनाने के उद्योग लगे हुये थे. वहां आज केवल गलीचा बनाने के अवशेष ही नजर आ रहे है. गलीचा बनाने वाले कारीगरों के हाथों में ऐसा जादू है की गलीचे में बनाए गए डिजाइन देखकर ही लोग आश्चर्यचक्ति हो जाते है.

नैनवां में दम तोड़ रहा कालीन उद्योग

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बूंदी जिले में वर्षों पहले सिर्फ नैनवां कस्बे में ही नहीं बल्कि यहां की कई पंचायतों में ये गलीचा उद्योग फलफूल रहा था, लेकिन अब आधुनिकता के चलते देश ही नहीं विदेशों में भी लाखों रुपयों की कीमत रखने वाले ये गलीचे अब हाड़ौती क्षेत्र को भी पार करने में सक्षम नहीं है. आज हाथों से बने गलीचों की कीमत विश्वव बाजार में लाखों में है. वहीं विदेशों में इसकी आवश्यकता काफी ज्यादा है, लेकिन राजकीय अनुदान नहीं मिलने से नैनवा उपखंड का ये रोजगार, अब क्षेत्र से लुप्त होता जा रहा है.

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ईटीवी भारत ने जब इन गलीचा कारीगरों से बात की उन्होंने बताया कि उनकी तीन पीढ़ियां गलीचा बनाने के कार्य को कर रही है. सन 1970 के पहले से नैनवां क्षेत्र का मुख्य रोजगार बना ये गलीचा उद्योग समय की मार से उबरने की कोशिश भले ही करें, लेकिन अब जब तक सीधे बाजार से इनका संपर्क नहीं होगा तो ये उद्योग बहुत जल्द खत्म हो जाएगा. वर्तमान में ये उद्योग जयपुर के कुछ एजेंट के भरोसे ही चल रहा है. जहां से अब इन कारीगरों को केवल मेहनताने के रूप में मात्र जीवनयापन करने जितनी ही आमदनी प्राप्त होती है. ऐसे में यदि सरकार की ओर से कुछ सहायता इनको मिल जाये तो शायद नैनवां उपखंड के गलीचे पूरे विशव में अपनी पहचान बना कर क्षेत्र नाम रोशन कर सकता है.

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कारीगर ने बताया कि राजकीय सहायता से यदि व्यावसायिक बाजार सीधे तौर पर यहां से जुड़ जाए, तो शायद यहां का नजारा ही बदल जाए. साथ ही धीरे-धीरे काम से मुंह मोड़ चुके कारीगर और क्षेत्र के बेरोजगारों को रोजगार मिल जाएगा.

Intro: बूंदी जिले के नैनवा उपखंड मे कभी रोजगार का मुख्य जरिया गलीचा (कालीन) ।आज समय की मार ओर आधुनिकता की चमक के चलते नैनवा का गलीचा निर्माण उद्योग । अब राजकीय संरक्षण नही मिलने से धीरे धीरे विलुप्त हो रहा है। कभी जिन गावों मे 300- से 400 गलीचा बनाने के उद्योग लगे हुये थे । वहा आज केवल गलीचा बनाने के अवषेश ही नजर आ रहे है। गलीचा बनाने वाले कारीगरों के हाथो मे ऐसा जादू है की गलीचे मे बनाई गई डिजाइन देखकर ही लोग आश्चर्यचक्ति हो जाते है। Body:

बूंदी जिले के नैनवां उपखंड मे वर्षो पूर्व सिर्फ नैनवा कस्बे में ही नही बल्कि यहा की कई पंचायतों में ये गलीचा उद्योग फल फूल रहा था ।लेकिन अब आधुनिकता के चलते देश ही नही विदेशों में भी लाखों रुपयों की कीमत रखने वाले ये गलीचे अब हाड़ौती क्षेत्र को भी पार करने में सक्षम नही है । आज हाथो से बने गलीचों की कीमत विश्वव बाजार में लाखों में है वही विदेशों इसकी आवश्यकता काफी ज्यादा है ।लेकिन राजकीय अनुदान नही मिलने से नैनवा उपखंड का ये रोजगार । अब नैनवा क्षेत्र से लुप्त होता जा रहा है । ईटीवी की टीम ने जब इन गलीचा कारीगरों से बात की तो पैरो तले जमीन हिल सी गई । गलीचे के एक मास्टर कारीगर से जब हमारी टीम ने इस बारे मे जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि उनकी तीन पीढियां गलीचा बनाने के कार्य को कर रही है । सन 1970 के पहले से नैनवा क्षेत्र का मुख्य रोजगार बना ये गलीचा उद्योग समय की मार से उबरने की कोशिश भले ही करे । लेकिन अब जब तक सीधे बाजार से इनका संपर्क नही हुआ तो ये उद्योग बहुत जल्द खत्म हो जाएगा। वर्तमान में ये उद्योग जयपुर के कुछ दलालो व एजेंट के भरोसे ही चल रहा है । जहाँ से अब इन कारीगरों को केवल मेहनताने के रूप में मात्र जीवनयापन करने जितनी ही आमदनी प्राप्त होती है । ऐसे में यदि सरकार की ओर से कुछ सहायता इनको.मिल जाये तो शायद नैनवा उपखंड के गलीचे पूरे विशव में अपनी पहचान बना कर क्षेत्र नाम रोशन कर सकता है । उन्होंने बताया कि राजकीय सहायता से यदि व्यसायिक बाजार सीधे तौर पर यहा से जुड़ जाए तो शायद यहा का नजारा ही बदल जाये ।साथ ही धीरे धीरे काम से मुह मोड़ चुके कारीगर व क्षेत्र के बेरोजगारो को रोजगार मिल जायेगा

विजलल - गलीचा बुनते कारीगर
विजवल- कम्प्यूटर से बने नक्से के आधार पर बन रहा गलीचा

बाईट -, रामप्रकाश योगी गलीचा कारीगरConclusion: नैनवां क्षेत्र मे बनने वाले गलीचों ने देश ही नही विदेशों मे भी एक अलग.ही छाप छोड़ी है। किसी समय क्षेत्र मे करीब 400से ज्यादा गलीचे बनाने के उद्योग लगे हुए थे । जिन पर 1600 से ज्यादा लोगो रोजगार मिलता था। एक गलीचा बनाने मे तकरीबन 2से 3 महीने का समय लगता है। जिससे गलीचा बनाने वाले कारीगरों को तीन महीनों का रोजगार मिलता है। लेकिन अब बीना सरकारी सहायता के धीरे धीरे दम तोड़ रहा यह गलीचा उद्योग क्षेत्र मे गिने चुने ही नजर आते है।
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