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Sawan 2023 : आज है सावन का पहला प्रदोष, शुक्र प्रदोष का व्रत करने से धन, वैभव और सुख की होगी प्राप्ति

सनातन धर्म में भगवान शिव को देवाधिदेव कहा जाता है. भगवान शिव की विशेष कृपा के लिए सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा होती है. इसके अलावा साप्ताहिक दिन में सोमवार और तिथि में प्रदोष व्रत का महत्व शिवपुराण में बताया गया है.

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा
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Published : Jul 14, 2023, 8:21 AM IST

बीकानेर. हर महीने की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है. हर महीने में प्रदोष व्रत दो बार त्रयोदशी तिथि को होता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. भगवान शिव की पूजा के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है. प्रदोष व्रत करने से संतान, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है. महिलाएं अखंड सुहाग की कामना के लिए प्रदोष व्रत करती हैं. इस बार सावन का पहला प्रदोष का व्रत आज शुक्रवार को है इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है. हर सप्ताहिक वार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को उसी नाम से जाना जाता है और हर प्रदोष व्रत का अपना एक अलग महत्व है.

प्रदोष का महत्व : प्रदोष काल का मतलब संध्या समय जो कि सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद होता है. उसे प्रदोष काल कहा जाता है लेकिन त्रयोदशी तिथि को प्रदोष तिथि के नाम से जाना जाता है. लेकिन इसका भी अलग-अलग वार के हिसाब से महत्त्व शास्त्रों में बतलाया गया है. इस बार सावन मास का पहला प्रदोष व्रत शुक्रवार को है. यदि कोई सावन के व्रत और प्रदोष दोनों व्रत करता है तो दोनों व्रतों का पुण्य फल करने वाले को प्राप्त होगा.

सावन का प्रदोष : भगवान शिव की आराधना करने का सबसे पवित्र महीना सावन माना जाता है क्योंकि भगवान शिव को यह अति प्रिय है और इस महीने में भगवान शिव की हर रोज आराधना पूजा अभिषेक किया जाता है और प्रदोष तिथि सावन में होना एकबार किए पुण्य का 2 गुना फल प्राप्त करने जैसा है. क्योंकि प्रदोष तिथि भी भगवान शिव के आराधना के लिए होती है.

पढ़ें Shani Pradosh Vrat 2023: शनि प्रदोष व्रत में कैसे करें शिव पूजा, भोलेनाथ की पूजा का शुभ मुहूर्त जानिए

शुक्र प्रदोष का महत्व : फिर तो हर दिन पड़ने वाले प्रदोष का अपना एक अलग महत्व है. शुक्रवार के दिन प्रदोष तिथि आने से इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है. भगवान शिव की पूजा आराधना करने से नौ ग्रहों में किसी भी ग्रह का दोष दूर होता है और उसके शुभ फल की प्राप्ति होती है. शुक्र प्रदोष का व्रत करने से शुक्र ग्रह और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं और जातक के जीवन में किसी भी प्रकार का आर्थिक संकट वैभव और सुख की कमी नहीं रहती है.

ऐसे करें प्रदोष पूजा : ब्रह्म मुहूर्त में शिव पूजा कर व्रत करते हुए प्रदोषकाल भगवान शिवजी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के गायत्री मंत्र, शिवमंत्र का जप और ज्योर्तिलिंग उच्चारण और संभव हो तो रुद्रीपाठ करना चाहिए. भगवान शिव का मंत्र उच्चारण करते हुए अभिषेक करना चाहिए.

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
ॐ नमः शिवाय की माला का जाप करना चाहिए. ज्यादा संभव नहीं हो तो कम से कम 108 बार यानी कि एक माला का जाप करना चाहिए.

इन द्वादश ज्योर्तिलिंग नाम का उच्चारण करें :
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

बीकानेर. हर महीने की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है. हर महीने में प्रदोष व्रत दो बार त्रयोदशी तिथि को होता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. भगवान शिव की पूजा के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है. प्रदोष व्रत करने से संतान, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है. महिलाएं अखंड सुहाग की कामना के लिए प्रदोष व्रत करती हैं. इस बार सावन का पहला प्रदोष का व्रत आज शुक्रवार को है इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है. हर सप्ताहिक वार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को उसी नाम से जाना जाता है और हर प्रदोष व्रत का अपना एक अलग महत्व है.

प्रदोष का महत्व : प्रदोष काल का मतलब संध्या समय जो कि सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद होता है. उसे प्रदोष काल कहा जाता है लेकिन त्रयोदशी तिथि को प्रदोष तिथि के नाम से जाना जाता है. लेकिन इसका भी अलग-अलग वार के हिसाब से महत्त्व शास्त्रों में बतलाया गया है. इस बार सावन मास का पहला प्रदोष व्रत शुक्रवार को है. यदि कोई सावन के व्रत और प्रदोष दोनों व्रत करता है तो दोनों व्रतों का पुण्य फल करने वाले को प्राप्त होगा.

सावन का प्रदोष : भगवान शिव की आराधना करने का सबसे पवित्र महीना सावन माना जाता है क्योंकि भगवान शिव को यह अति प्रिय है और इस महीने में भगवान शिव की हर रोज आराधना पूजा अभिषेक किया जाता है और प्रदोष तिथि सावन में होना एकबार किए पुण्य का 2 गुना फल प्राप्त करने जैसा है. क्योंकि प्रदोष तिथि भी भगवान शिव के आराधना के लिए होती है.

पढ़ें Shani Pradosh Vrat 2023: शनि प्रदोष व्रत में कैसे करें शिव पूजा, भोलेनाथ की पूजा का शुभ मुहूर्त जानिए

शुक्र प्रदोष का महत्व : फिर तो हर दिन पड़ने वाले प्रदोष का अपना एक अलग महत्व है. शुक्रवार के दिन प्रदोष तिथि आने से इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है. भगवान शिव की पूजा आराधना करने से नौ ग्रहों में किसी भी ग्रह का दोष दूर होता है और उसके शुभ फल की प्राप्ति होती है. शुक्र प्रदोष का व्रत करने से शुक्र ग्रह और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं और जातक के जीवन में किसी भी प्रकार का आर्थिक संकट वैभव और सुख की कमी नहीं रहती है.

ऐसे करें प्रदोष पूजा : ब्रह्म मुहूर्त में शिव पूजा कर व्रत करते हुए प्रदोषकाल भगवान शिवजी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के गायत्री मंत्र, शिवमंत्र का जप और ज्योर्तिलिंग उच्चारण और संभव हो तो रुद्रीपाठ करना चाहिए. भगवान शिव का मंत्र उच्चारण करते हुए अभिषेक करना चाहिए.

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
ॐ नमः शिवाय की माला का जाप करना चाहिए. ज्यादा संभव नहीं हो तो कम से कम 108 बार यानी कि एक माला का जाप करना चाहिए.

इन द्वादश ज्योर्तिलिंग नाम का उच्चारण करें :
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

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