बीकानेर. राजनीतिक पार्टियों के लिए गाय हमेशा चुनावी मुद्दा रही है. लेकिन गाय की सेवा किसी सरकार के भरोसे नहीं है. व्यक्ति के मन की भावना है. हालांकि सरकारी स्तर पर गौशालाओं को अनुदान दिया जाता है लेकिन अनुदान राशि के मुकाबले वास्तविक खर्च बहुत ज्यादा है. गौशालाओं के संचालन में अपनी भावनाओं से लोग सहयोग करते हैं. बीकानेर में कुछ गौ भक्तों ने एक ऐसा नवाचार किया जिसमें आर्थिक सहयोग की बजाय व्यक्तिगत उपस्थिति के साथ गौसेवा का पुण्य कमाने का जरिया है. बीकानेर की गंगा जुबली पिंजरा पिरोल गौशाला में 9 महीने पहले एक शख्स ने नवाचार करते हुए कुछ लोगों को साथ जोड़ा और अपने वैवाहिक वर्षगांठ का आयोजन गौशाला में किया. गौशाला में गायों को लापसी भोजन के साथ ही शुरू किया गया यह नवाचार अब और लोगों को भी रास आ रहा है. अब रोजाना लोग इस नवाचार पहल की सराहना करते हुए इससे जुड़ते जा रहे हैं.
भजन कीर्तन पूजन : आमतौर पर लोग गायों को हरा चारा खिलाकर गौ सेवा का पुण्य प्रकल्प पूरा हुआ मान लेते हैं लेकिन इस गौशाला में इस नवाचार में पहले भजन कीर्तन और उसके बाद अपने हाथों से गायों के लिए लापसी वितरण करवाया जाता है। गायों की आरती भजन कीर्तन के साथ कुछ होने वाला यह आयोजन महज 20 से 25 मिनट का होता है। आयोजन का नवाचार करने वाली देवकिशन चांडक कहते हैं कि हमारे पूर्वज परंपरा में गाय को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और घर में पहली रोटी गाय की बनती है. हम सही मायने में देखें तो यहां बनने वाली लापसी में भी उतना ही खर्च आता है और सहयोग राशि के लिए लोग सामने तत्पर रहते हैं इसलिए हमें किसी भी तरह की कोई आर्थिक समस्या नहीं है लेकिन हमारा प्रयास था कि लोग साथ जुड़े और हमारी यह मुहिम रंग ला रही है.
संस्कारों से जोड़ने की कोशिश : देवकिशन चांडक कहते हैं कि घर के किसी सदस्य का जन्मदिन या फिर वैवाहिक वर्षगांठ और या अपने पूर्वज परिजन की पुण्यतिथि का मौका हो तो गौसेवा का पुण्य कमा सकते हैं. वे कहते हैं कि यहां सहयोग राशि का महत्व नहीं बल्कि खुद की मौजूदगी का महत्व है. यहां एक बार आने के बाद बार-बार आने का मन करेगा. यह लोगों को उन संस्कारों से जोड़ने का प्रयास है जो हमने छोड़ दिए हैं जिनको हम भूलते जा रहे हैं. जिस व्यक्ति का जन्मदिन या वैवाहिक वर्षगांठ होती है उस दिन यहां सबकी मौजूदगी में उनका माल्यार्पण कर सम्मान भी किया जाता है. साथ ही गौसेवा के लिए आभार भी प्रकट किया जाता है.
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वृंदावन सा अहसास : देश में पर्यावरण संरक्षण और गौ सेवा का संदेश प्रसारित करने वाले बाल संत छैल बिहारी कहते हैं कि अपने संस्कारों से जुड़कर हम वापिस वहीं चले. जहां जिस पथ पर पूर्वज चलते थे. यहां गौशाला में जिस तरह का भक्तिमय वातावरण होता है वह गौसेवा के साथ प्रभु सेवा का भी अवसर देता है. यह अब महज एक गौशाला नहीं बल्कि साक्षात कृष्ण की गोकुल नगरी बन गई है.
पाश्चात्य की तरफ बढ़ने से रोकने की कोशिश : गौशाला में आने वाली विजय उपाध्याय कहते हैं कि बदलते समय में हम अपने संस्कारों को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ बढ़ रहे हैं. लेकिन धीरे-धीरे अगर यही हाल रहा तो हमारा आने वाला भविष्य अपनी संस्कृति से पूरी तरह से विमुख हो जाएगा और वह भूल जाएगा. लेकिन जिस तरह नवाचार हुआ है और लोगों का समर्थन मिल रहा है. उससे यह मुहिम भविष्य में मील का पत्थर साबित होगा. हम लोगों की मुहिम पाश्चात्य की बजाय हमारी खुद की संस्कृति जो कि खुशी और मांगलिक आयोजन के मौके पर केक काटने की बजाय संस्कृति से जोड़ने की है. वे कहते हैं कि हमारा प्रयास है कि यहां युवा यह बच्चे जब आएंगे तब वे इस संस्कृति से हुए रूबरू होंगे तभी उन्हें इसका महत्व मालूम होगा और जब उनमें इस तरह के संस्कार पड़ेंगे तो आने वाली पीढ़ी भी इन संस्कारों के साथ आगे बढ़ेगी.
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₹100 से ₹11000 तक सहयोग : देवकिशन पांडे कहते हैं कि गौशाला में ₹100 से लेकर ₹11000 तक कोई भी व्यक्ति कितना भी सहयोग दे सकता है. उसके लिए कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन उस दिन गौमाता की बनने वाली महाप्रसादी लापसी भोजन उसी व्यक्ति के नाम से ही होता है. सब लोगों का सामूहिक रूप से जुड़ाव निश्चित रूप से इस मुहिम को आगे बढ़ा रहा है.
22 मिनट में पुण्य प्रकल्प : यहां रोजाना 9:55 पर गौशाला में भजन कीर्तन का दौर शुरू होता है. उसके बाद गायों के लिए बनाई गई कढ़ाई में तैयार लापसी भोजन हर व्यक्ति अपने हाथों से गायों को परोसता है. उसके बाद गायों के भोजन पश्चात परिक्रमा और गायों की आरती और फिर पूर्णाहुति कीर्तन होता है. गौशाला से जुड़े नंदकिशोर सोमानी कहते हैं कि यह नवाचार केवल बीकानेर ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग प्रांतों में बैठे प्रवासी लोगों को भी लाया जा रहा है. हर रोज लोग यहां आकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक सहयोग भी करते हैं. मौका मिलने और बीकानेर आने पर इस आयोजन में भी शिरकत करते हैं.