बीकानेर. कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बाद हर गतिविधि पूरी तरह से ठप हो गई, और स्कूलों में भी पढ़ाई बंद हो गई और स्कूल में भी पूरी तरह से बंद हैं. ऐसे में बच्चों के लिए पढ़ाई जारी रखने को लेकर स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएं लगानी शुरू कर दी और बच्चे अब लगातार मोबाइल गैजेट और कम्प्यूटर से ऑनलाइन क्लासेस ले रहे हैं.
इसके अलावा हर उम्र और वर्ग से जुड़े लोग भी घरों में रहने के दौरान मोबाइल कम्प्यूटर पर ज्यादा समय व्यतीत करने लग गए. बच्चों में पहले से ही मोबाइल और गैजेट के अलावा कंप्यूटर पर गेम खेलने की आदत से अभिभावक परेशान थे. लेकिन अब खुद पढ़ाई के नाम पर वो खुद बच्चों को यह सब उपलब्ध करवा रहे है. हालांकि बच्चों में लगातार आंखों की इस तरह की शिकायतें आ रही हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते लोग हॉस्पिटल अपने से भी परहेज कर रहे हैं.
दरअसल, हॉस्पिटल में आने वाले मरीज खासतौर पर आंखों के मरीज भी डॉक्टर के एकदम नजदीक से संपर्क में आते हैं. ऐसे में ऐसे मरीजों को पहले कोरोना जांच की सलाह दी जाती है. जिसके चलते कई ऐसे लोग अस्पताल आते ही नहीं हैं, और अपने संपर्क के जरिए डॉक्टर से फोन पर ही दवाई लिखवाने में प्राथमिकता करते हैं.
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बीकानेर की ऑप्टिकल विक्रेता नारायण मोदी कहते हैं कि, कोरोना काल में लोग घरों में रहे और इस दौरान कंप्यूटर मोबाइल ज्यादा उपयोग में लिया. लेकिन बावजूद उसके आंखों के रोगी इतने सामने नहीं आए हैं, और ना ही कोई चश्मों की बिक्री बढ़ी है.
बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जे.एस मुरली मनोहर कहते हैं कि, कोरोनाकाल में लॉकडाउन से पहले बाद में 500 लोगों पर पहले सर्वे किया गया. जिनमें बच्चे भी शामिल थे और इन लोगों में आंखों में लालासी, रड़कपन जैसी शिकायत हुई है.
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इसी के साथ उन्होंने बताया कि मोबाइल और कम्प्यूटर और गेजेट के सामने लगातार पर देखने से आंखों में सूखापन आ जाता है, और आंखों में नमी खत्म हो जाती है और इसके लिए जरूरी है कि लगातार इन पर काम करने के बीच-बीच बीच में पलक को झपकाना जरूरी है. ताकि आंखों पर जोर नहीं पड़े. खुद उन्होंने भी माना कि कोरोना काल में भले ही इन सब चीजों का उपयोग लोगों ने ज्यादा किया हो लेकिन रोगी बढ़ने जैसी बात नहीं है हालांकि इसका एक कारण गुना का संक्रमण प्रसार होना भी है.