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Workshop on Green Chemistry: विशेषज्ञ बोले- नए शोध में रसायनों की नहीं, ग्रीन केमेस्ट्री की तकनीक की जरूरत - etv bharat Rajasthan news

डूंगर कॉलेज के प्रताप सभागार में 22 से 24 दिसंबर तक ग्रीन केमेस्ट्री पर (International Workshop on Green Chemistry) आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आज से आरंभ हुआ है. इस दौरान जुटे विशेषज्ञों ने पर्यावरण और जल संरक्षण को लेकर ग्रीन केमिस्ट्री पर ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया.

ग्रीन केमेस्ट्री पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला
ग्रीन केमेस्ट्री पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला
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Published : Dec 22, 2022, 6:24 PM IST

Updated : Dec 22, 2022, 11:03 PM IST

विशेषज्ञों की राय

बीकानेर. राजकीय डूंगर महाविद्यालय रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री लंदन एवं ग्रीन केमिस्ट्री नेटवर्क सेंटर दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 22 से 24 दिसंबर तक ग्रीन केमेस्ट्री पर (International Workshop on Green Chemistry) आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला गुरुवार से शुरू हुई. डूंगर कॉलेज के प्रताप सभागार में आयोजित कार्यशाला में भोजन, जल, दवाई एवं उत्प्रेरक के अनुप्रयोग पर देश-विदेश के विशेषज्ञ विचार रख रहे हैं.

दुनियाभर में पर्यावरण में रासायनिक उपयोग से आए बदलावों के साथ ही अब ग्रीन केमेस्ट्री को लेकर वैज्ञानिक मंथन कर रहे हैं. विशेषज्ञों की माने तो रसायनों के विकिरणीय दुष्प्रभावों से बचते हुए नए शोध में अब नए तरीके से काम करने की जरूरत है और इसके लिए ग्रीन केमिस्ट्री की. हमें न सिर्फ इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा बल्कि इस तकनीक के सहारे ही आने वाले समय में मानव जीवन की मदद करनी होगी.

राॅयल सोसाइटी के एशिया सचिव प्रोफेसर आरके शर्मा ने बताया कि दुनिया में जिस तरह से पर्यावरण में बदलाव हो रहा है उसके बाद ग्रीन केमस्ट्री की जरूरत देखने को मिल रही है. उन्होंने कहा कि रसायन विज्ञान से जुड़े रिसर्च से हमारे काम आने वाले केमिकल का मानव और पर्यावरण पर असर देखने को मिल रहा है इसलिए अब हमें इस तरह की सोच अपनाने की जरूरत है जो मानव और पर्यावरण दोनों की रक्षा करते हुए शोध के मामले में फायदेमंद हो.

पढ़ें. भूजल विकास और प्रबंधन पर कार्यशाला, विशेषज्ञ बोले- जल दोहन का सही उपयोग सबकी ज़िम्मेदारी

कार्यक्रम में लद्दाख विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एसके मेहता ने कहा कि जिस तरह से रिसर्च में नवाचार हुए हैं उससे काफी फायदा हुआ है, लेकिन इन रिसर्च से बना प्लास्टिक का वेस्ट आज बड़ी चुनौती है. ऐसे में अब हमें बदलते समय में खुद को भी बदलना होगा और ग्रीन केमिस्ट्री के माध्यम से नए रिसर्च पर फोकस करते हुए इनके विकल्प को चुनना होगा. जल-भोजन, भोजन-दवाई, दवाई-उत्प्रेरक से ग्रीन कैमिस्ट्री के संबंध पर बोलते हुए कहा कि दैनिक जीवन में न्यूनतम हानिकारक रसायनों को कैसे एवं उनके स्थान पर ग्रीन रसायनों के उपयोग पर बल दिया जा सकता है. इस पर हमें सोचने की जरूरत है.

उद्घाटन सत्र में लद्दाख विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके मेहता, डीएवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. आरके महाजन, हंगरी के प्रोफेसर जार्ज केजिलवीच, सिम्पोजियम के पैटर्न व डूंगर महाविद्यालय बीकानेर प्राचार्य डाॅ. जीपी सिंह सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी मौजूद रहे. कार्यशाला के समन्वयक नरेंद्र भोजक ने बताया कि तीन दिन में कार्यशाला में देशभर के 200 से अधिक प्रोफ़ेसर हिस्सा ले रहे हैं.

थार के पौधों पर चर्चा
डूंगर कॉलेज के ग्रीन कैमिस्ट्री रिसर्च सेंटर की ओर से किए जा रहे नवीन प्रयोगों से बीकानेर एवं थार मरूस्थल से पादपों, वनस्पतियों का भोजन एवं दवाइयों के जरिए स्थायी विकास पर किए जा रहे कार्य और विशिष्ट उत्पादों को बनाने में ग्रीन तकनीक को लेकर भी चर्चा की गई. सेंटर के चेयर पर्सन डाॅ. राकेश हर्ष ने जीवाश्म विज्ञान की कड़ियों को ग्रीन कैमिस्ट्री के माध्यम से सुलझाने की तकनीक विकसित करने और वायु प्रदूषण को कम करने का सुझाव दिया.

विशेषज्ञों की राय

बीकानेर. राजकीय डूंगर महाविद्यालय रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री लंदन एवं ग्रीन केमिस्ट्री नेटवर्क सेंटर दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 22 से 24 दिसंबर तक ग्रीन केमेस्ट्री पर (International Workshop on Green Chemistry) आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला गुरुवार से शुरू हुई. डूंगर कॉलेज के प्रताप सभागार में आयोजित कार्यशाला में भोजन, जल, दवाई एवं उत्प्रेरक के अनुप्रयोग पर देश-विदेश के विशेषज्ञ विचार रख रहे हैं.

दुनियाभर में पर्यावरण में रासायनिक उपयोग से आए बदलावों के साथ ही अब ग्रीन केमेस्ट्री को लेकर वैज्ञानिक मंथन कर रहे हैं. विशेषज्ञों की माने तो रसायनों के विकिरणीय दुष्प्रभावों से बचते हुए नए शोध में अब नए तरीके से काम करने की जरूरत है और इसके लिए ग्रीन केमिस्ट्री की. हमें न सिर्फ इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा बल्कि इस तकनीक के सहारे ही आने वाले समय में मानव जीवन की मदद करनी होगी.

राॅयल सोसाइटी के एशिया सचिव प्रोफेसर आरके शर्मा ने बताया कि दुनिया में जिस तरह से पर्यावरण में बदलाव हो रहा है उसके बाद ग्रीन केमस्ट्री की जरूरत देखने को मिल रही है. उन्होंने कहा कि रसायन विज्ञान से जुड़े रिसर्च से हमारे काम आने वाले केमिकल का मानव और पर्यावरण पर असर देखने को मिल रहा है इसलिए अब हमें इस तरह की सोच अपनाने की जरूरत है जो मानव और पर्यावरण दोनों की रक्षा करते हुए शोध के मामले में फायदेमंद हो.

पढ़ें. भूजल विकास और प्रबंधन पर कार्यशाला, विशेषज्ञ बोले- जल दोहन का सही उपयोग सबकी ज़िम्मेदारी

कार्यक्रम में लद्दाख विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एसके मेहता ने कहा कि जिस तरह से रिसर्च में नवाचार हुए हैं उससे काफी फायदा हुआ है, लेकिन इन रिसर्च से बना प्लास्टिक का वेस्ट आज बड़ी चुनौती है. ऐसे में अब हमें बदलते समय में खुद को भी बदलना होगा और ग्रीन केमिस्ट्री के माध्यम से नए रिसर्च पर फोकस करते हुए इनके विकल्प को चुनना होगा. जल-भोजन, भोजन-दवाई, दवाई-उत्प्रेरक से ग्रीन कैमिस्ट्री के संबंध पर बोलते हुए कहा कि दैनिक जीवन में न्यूनतम हानिकारक रसायनों को कैसे एवं उनके स्थान पर ग्रीन रसायनों के उपयोग पर बल दिया जा सकता है. इस पर हमें सोचने की जरूरत है.

उद्घाटन सत्र में लद्दाख विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके मेहता, डीएवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. आरके महाजन, हंगरी के प्रोफेसर जार्ज केजिलवीच, सिम्पोजियम के पैटर्न व डूंगर महाविद्यालय बीकानेर प्राचार्य डाॅ. जीपी सिंह सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी मौजूद रहे. कार्यशाला के समन्वयक नरेंद्र भोजक ने बताया कि तीन दिन में कार्यशाला में देशभर के 200 से अधिक प्रोफ़ेसर हिस्सा ले रहे हैं.

थार के पौधों पर चर्चा
डूंगर कॉलेज के ग्रीन कैमिस्ट्री रिसर्च सेंटर की ओर से किए जा रहे नवीन प्रयोगों से बीकानेर एवं थार मरूस्थल से पादपों, वनस्पतियों का भोजन एवं दवाइयों के जरिए स्थायी विकास पर किए जा रहे कार्य और विशिष्ट उत्पादों को बनाने में ग्रीन तकनीक को लेकर भी चर्चा की गई. सेंटर के चेयर पर्सन डाॅ. राकेश हर्ष ने जीवाश्म विज्ञान की कड़ियों को ग्रीन कैमिस्ट्री के माध्यम से सुलझाने की तकनीक विकसित करने और वायु प्रदूषण को कम करने का सुझाव दिया.

Last Updated : Dec 22, 2022, 11:03 PM IST
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