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Chaitra Navratri 2023: जानें घट स्थापना का मुहूर्त और महत्व

चैत्र नवरात्र 22 से शुरू होकर 30 मार्च तक रहेंगे. नवरात्र की पहली तिथि यानि प्रतिपदा को घट स्थापना और पूजन होता है. क्यों की जाती है घटस्थापना और क्या है इसका महत्व आइए जानते हैं.

Chaitra Navratri 2023
जानें घट स्थापना का मुहूर्त
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Published : Mar 21, 2023, 1:19 PM IST

Updated : Mar 22, 2023, 6:22 AM IST

बीकानेर. देवी भगवती मां दुर्गा के 9 अवतारों की पूजा आराधना का विशेष पर्व होता है नवरात्र. हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र नव वर्ष प्रतिपदा से होती है. इस दिन पहले नवरात्र में घट स्थापना का विधान है. विशेष मुहूर्त में ही इसे स्थापित किया जाता है. सनातन धर्म में देवी मां की पूजा आराधना के लिए नवरात्र का विशेष महत्व देवी पुराण भागवत में बताया गया है. प्रतिपदा नवरात्र में घटस्थापना और पूजन से सभी मनोकामनाएं फलित होती हैं और उसे पूजा का लाभ प्राप्त होता है.

ऐसे होता है देवी देवताओं का आह्वान
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि सनातन धर्म में किसी भी पूजा आयोजन और मांगलिक कार्य में कलश का पूजन होता है. इसका महत्व बताते हुए वे कहते हैं कि कलश को स्थापित करने के साथ ही भगवान वरुण का भी आह्वान किया जाता है. कलश में जल होता है और वरुण जल के देवता हैं. कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगवान शिव और मूल में ब्रह्मा का वास होता है. कलश के मध्य में देवियों का स्थान होता है. इसके अलावा चारों वेदों का भी कलश में आह्वान के जरिए स्थापना होती है.

रहती अमरत्व की भावना
नवरात्रा में घट स्थापना में गणेश का पूजन और उसका महत्व तो है ही लेकिन विधि अनुसार शास्त्रों में गृह प्रवेश में भी स्थापित होने वाले कलश की पूजा होती है. इसके पीछे देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत के लिए हुआ युद्ध की कहानी है. समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे इसलिए इसमें अमरत्व की भावना भी रहती है. पंडित किराडू के मुताबिक जल की प्रवृति शांत होती है और कलश की पूजा करने का अभिप्राय यही होता है कि हमारा मन भी शांत रहे और भक्ति भाव बना रहे. पूजा अर्चना करते समय हमारा मन भी जल की तरह निर्मल और शांत होना चाहिए. इसी कारण से किसी भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्यों के अवसर पर कलश पूजा होती है.

नवरात्रों में घट स्थापना क्यों?
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि नवरात्र सनातन धर्म में देवी की पूजा आराधना का एक बड़ा महापर्व है. लगातार 10 दिन तक चलने वाली देवी की आराधना पूजा जो कि दशांश हवन के साथ दसवीं दिन पूरी होती है. वे कहते हैं कि इसलिए नवरात्रि में शुभ मुहूर्त में घट स्थापना की जाती है. किराडू कहते हैं कि इस दिन पूजा आराधना के साथ घटस्थापना करने का अभिप्राय यही है कि इसमें सभी देवी-देवताओं, ग्रहों व नक्षत्रों का आह्वान करने से उनका वास इसमें होता है और कलश को सभी मंगल कार्य का प्रतीक माना जाता है. पूजा आराधना करने से पहले घटस्थापना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. नवरात्र में घटस्थापना करते समय सभी देवी शक्तियों का आह्वान दिया जाता है. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है.

पढ़ें-Chaitra Navratri 2023: सर्वार्थसिद्धि योग में नौका पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा, 22 मार्च से 30 मार्च तक नवरात्र

ऐसे की जाती है घटस्थापना
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि घट पूजन की भी एक प्रक्रिया होती है और शास्त्र अनुसार उसका पालन करना चाहिए. घटस्थापना के दिन सबसे पहले इसकी स्थापना होती है और शास्त्रों में स्वर्ण, रजत, ताम्र कलश और मिट्टी के घट का महत्व बताया गया है. पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि घट को सप्तधान को मिश्रित रूप के ऊपर स्थापित जाता है. सप्तधान में जौ, तिल, कंगनी मूंग, चना, सावा होता है. इसके अलावा पंचरत्न सोना, हीरा, नीलम और पंच पल्लव यानी की 5 तरह के पत्ते जिसमें बरगद, पीपल, आम, पाकड़ और गूलर के पत्ते कलश में नारियल के साथ रखे जाते हैं. इसके साथ ही सात द्वीप, प्रमुख नदियों, सात समुद्रों के जल का भी आह्वान घट में समाहित होने के लिए किया जाता है.

बीकानेर. देवी भगवती मां दुर्गा के 9 अवतारों की पूजा आराधना का विशेष पर्व होता है नवरात्र. हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र नव वर्ष प्रतिपदा से होती है. इस दिन पहले नवरात्र में घट स्थापना का विधान है. विशेष मुहूर्त में ही इसे स्थापित किया जाता है. सनातन धर्म में देवी मां की पूजा आराधना के लिए नवरात्र का विशेष महत्व देवी पुराण भागवत में बताया गया है. प्रतिपदा नवरात्र में घटस्थापना और पूजन से सभी मनोकामनाएं फलित होती हैं और उसे पूजा का लाभ प्राप्त होता है.

ऐसे होता है देवी देवताओं का आह्वान
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि सनातन धर्म में किसी भी पूजा आयोजन और मांगलिक कार्य में कलश का पूजन होता है. इसका महत्व बताते हुए वे कहते हैं कि कलश को स्थापित करने के साथ ही भगवान वरुण का भी आह्वान किया जाता है. कलश में जल होता है और वरुण जल के देवता हैं. कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगवान शिव और मूल में ब्रह्मा का वास होता है. कलश के मध्य में देवियों का स्थान होता है. इसके अलावा चारों वेदों का भी कलश में आह्वान के जरिए स्थापना होती है.

रहती अमरत्व की भावना
नवरात्रा में घट स्थापना में गणेश का पूजन और उसका महत्व तो है ही लेकिन विधि अनुसार शास्त्रों में गृह प्रवेश में भी स्थापित होने वाले कलश की पूजा होती है. इसके पीछे देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत के लिए हुआ युद्ध की कहानी है. समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे इसलिए इसमें अमरत्व की भावना भी रहती है. पंडित किराडू के मुताबिक जल की प्रवृति शांत होती है और कलश की पूजा करने का अभिप्राय यही होता है कि हमारा मन भी शांत रहे और भक्ति भाव बना रहे. पूजा अर्चना करते समय हमारा मन भी जल की तरह निर्मल और शांत होना चाहिए. इसी कारण से किसी भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्यों के अवसर पर कलश पूजा होती है.

नवरात्रों में घट स्थापना क्यों?
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि नवरात्र सनातन धर्म में देवी की पूजा आराधना का एक बड़ा महापर्व है. लगातार 10 दिन तक चलने वाली देवी की आराधना पूजा जो कि दशांश हवन के साथ दसवीं दिन पूरी होती है. वे कहते हैं कि इसलिए नवरात्रि में शुभ मुहूर्त में घट स्थापना की जाती है. किराडू कहते हैं कि इस दिन पूजा आराधना के साथ घटस्थापना करने का अभिप्राय यही है कि इसमें सभी देवी-देवताओं, ग्रहों व नक्षत्रों का आह्वान करने से उनका वास इसमें होता है और कलश को सभी मंगल कार्य का प्रतीक माना जाता है. पूजा आराधना करने से पहले घटस्थापना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. नवरात्र में घटस्थापना करते समय सभी देवी शक्तियों का आह्वान दिया जाता है. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है.

पढ़ें-Chaitra Navratri 2023: सर्वार्थसिद्धि योग में नौका पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा, 22 मार्च से 30 मार्च तक नवरात्र

ऐसे की जाती है घटस्थापना
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि घट पूजन की भी एक प्रक्रिया होती है और शास्त्र अनुसार उसका पालन करना चाहिए. घटस्थापना के दिन सबसे पहले इसकी स्थापना होती है और शास्त्रों में स्वर्ण, रजत, ताम्र कलश और मिट्टी के घट का महत्व बताया गया है. पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि घट को सप्तधान को मिश्रित रूप के ऊपर स्थापित जाता है. सप्तधान में जौ, तिल, कंगनी मूंग, चना, सावा होता है. इसके अलावा पंचरत्न सोना, हीरा, नीलम और पंच पल्लव यानी की 5 तरह के पत्ते जिसमें बरगद, पीपल, आम, पाकड़ और गूलर के पत्ते कलश में नारियल के साथ रखे जाते हैं. इसके साथ ही सात द्वीप, प्रमुख नदियों, सात समुद्रों के जल का भी आह्वान घट में समाहित होने के लिए किया जाता है.

Last Updated : Mar 22, 2023, 6:22 AM IST
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