भीलवाड़ा. 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राजस्थान की एकमात्र महिला प्रिंसिपल डॉक्टर कल्पना शर्मा को राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित किया गया था. डॉ कल्पना शर्मा ने भीलवाड़ा पहुंचने पर ईटीवी भारत से खास बातचीत की और शुभकामना देने पर शुक्रिया भी अदा किया.
बातचीत में कलपना शर्मा ने अपने शैक्षणिक सफर के बारे में बताते हुए कहा कि वह विद्यार्थी जीवन में शुरू से ही मेधावी छात्रा रही हैं. विद्यालय स्तर पर भी हमेशा अव्वल रही. उन्हें स्नातकोत्तर में स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ. उसके बाद दक्षिण पूर्वी राजस्थान की अरावली की पहाड़ियों पर पाई जाने वाली घास की प्रजाति की सात ऊप प्रजातियों पर उन्होंने अध्ययन किया और यह पाया कि घास के बीजों को घर में स्टोर करते हैं और अकाल के समय लोग उनका सेवन करते हैं.
जिसके बाद उन्होंने राजस्थान लोक सेवा आयोग में स्कूल लेक्चरर का एग्जाम दिया. जिसमें पूरे राजस्थान में जनरल की दो पोस्ट थी. उसमें उन्होंने द्वितीय स्थान प्राप्त किया और उदयपुर संभाग में पहला स्थान प्राप्त कर जीव विज्ञान की व्याख्याता से उनकी शिक्षा जगत मे शुरुआत हुई.
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विद्यालय में कुछ नया करने की होती रहनी चाहिए कोशिश
शिक्षा के क्षेत्र में क्या-क्या नवाचार के सवाल पर डॉ कल्पना शर्मा ने कहा कि उन्होंने विद्यालय में शैक्षिक नवाचार को तरह-तरह की तहजीद दी है. और विद्यालय में कुछ नया करने की कोशिश करती रहती हैं. वहीं डॉ कल्पना शर्मा के पति ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि उनकी पत्नी ने परिवार और देश का नाम रोशन किया है. उन्होंने कहा कि मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि इसी प्रकार वह हमेशा ही आगे बढ़ते रहें.
विद्यालय के विकास के लिए ग्रामीणों की भागीदारी आवश्यक
विद्यालय में गांव वालों से समन्वय के सवाल पर डॉ कल्पना शर्मा ने कहा कि विद्यालय के विकास के लिए ग्रामीणों की भागीदारी आवश्यक है. हमारा चिंतन इस प्रकार होना चाहिए कि विद्यालय को किस प्रकार ऊंचाइयों पर ले जाया जा सके. समाज के हर व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व को पहचान कर विद्यालय के चहुंमुखी विकास के लिए प्रेरित करना चाहिए.
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छात्रों को कुछ नया करने के लिए करना चाहिए मोटिवेट
शिक्षक और बालकों को क्या प्रेरणा देने के सवाल पर डॉ कल्पना शर्मा का कहना है कि विद्यालय में विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार हैं. उनके विकास के लिए पूरी ऊर्जा बालकों की प्रकृति के लिए जुड़ जाए. छात्रों को नए छोटे-छोटे नवाचार के माध्यम से मोटिवेट करने का काम होना चाहिए. विद्यालय का माहौल शिक्षक को इस प्रकार बनाना चाहिए कि वह बालक केंद्रित हो, सृजनशीलता का माहौल हो.
उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से हमारे देश में बालकों में बहुत ऊर्जा है. सिर्फ उसे तलाशने की आवश्यकता है. बालक कोरे कागज के टुकड़े के समान हैं. वे प्रतिदिन हमारे पास ज्ञान की पिपासा के लिए आते हैं. उन्हें ऐसा ज्ञान दें कि वह एक जिम्मेदार नागरिक बन सके. अब देखना यह होगा कि डॉ कल्पना शर्मा की सीख को राजस्थान और भीलवाड़ा जिले के अध्यापक और अध्यापिकाएं अपना पाते हैं.