भीलवाड़ा. भारत-चीन सीमा विवाद के बाद वोकल फॉर लोकल कैंपन जोर पकड़ने लगा है. इसी का परिणाम है कि इस बार कुम्हारों के लिए खुशियों की दीपावली होगी. इस बार दीयों की मांग बढ़ने से कुम्हारों के चेहरे खिल उठे हैं. अब वो दिन-रात मेहनत कर पहले से अधिक दीयों के निर्माण में जुटे हैं.
ईटीवी भारत ने दिवाली पर भीलवाड़ा के एक कुम्हार परिवार से बात की. जब ईटीवी कुम्हार के घर पर पहुंचा तो सारा परिवार दीयों के निर्माण में लगा था. उनके हाथ चाक पर एक समान धुन पर चल रहे थे. चेहरे पर मेहनत का पसीना तो था पर साथ में एक सूकून भी था कि इस बार सबके साथ उनकी दीवाली और अधिक रौशनीमय होगी. इस बार स्वदेशी चीजें और मिट्टी के बने दिए की मांग बाजार में बढ़ रही है. मिट्टी से बने दीपक की मांग ना केवल पिछले साल की तुलना में बढ़ी है बल्कि इनका भाव भी जहां पिछले साल साढे 3 सौ से 450 रुपये प्रति हजार था, जो इस बार 500 रुपये प्रति हजार तक पहुंच गया है.
चाइनीज का सामान का रहा बहिष्कार तो पटरी पर आ जाएगी जिंदगी
पिछले साल दिवाली के मौके पर बमुश्किल ढाई लाख दीपक बेचने वाले गोवर्धन प्रजापत अब तक साढे 3 लाख दीपक की बिक्री कर चुके हैं. वहीं दीपक बनाने वाले कारीगर धनराज प्रजापत ने कहा कि इस बार हमें आने वाले दिवाली खुशियों से भरी लग रही है क्योंकि इस बार पूरे देश ने चाइनीज सामानों का पूर्णतया बहिष्कार किया है. जिसका लाभ हमें इस बार काफी हद तक मिला है. हमारा पूरा परिवार इसी काम में लगा हुआ है और हम रोज के 8 से 9 हजार तक मिट्टी के दीए बना लेते हैं.
वहीं अगर यही बहिष्कार आगे भी जारी रहा तो हमें उम्मीद है कि जिस प्रकार हमारी कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन में आर्थिक स्थिति बिगड़ी है. इस बार दोबारा यह स्थिति पटरी पर आ जाएगी.
बढ़ी दीपक की मांग
मिट्टी के दीए बनाने वाले परिवार के मुखिया गोवर्धन प्रजापत कहते हैं कि 1960 के आसपास जब भीलवाड़ा का पहला कॉलेज माणिक्य लाल लाल वर्मा बना था, तब हमें ईट बनाने के लिए यहां पर लाया गया था. तब से ही हम यही हैं. हमारा पूरा परिवार इसी काम में लगा हुआ है.
पिछले साल के मुकाबले इस बार दीपक की मांग ज्यादा होने के कारण हमें अपने लिए भी समय नहीं मिल पाता है. हम मिट्टी के बर्तन भी बनाते हैं. दूसरी ओर कारीगर गोविंद प्रजापत ने कहा कि पहले हमारी स्थिति कुछ इस प्रकार थी कि हमें अपने दिए बेचने के लिए शहर और बाजार की गलियों में घूमना पड़ता था. तब वह मुश्किल से हमारे लिए भी पाते थे. मगर इस बार चीन के विरोध के चलते लोग हमारे पास खुद चलकर दीपक की मांग कर रहे हैं. जिसके चलते हमें काफी खुशी है.
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वहीं इसी के साथ ही दिए खरीदने आई महिला चंद्रकांता सारस्वत ने कहा कि इस बार चीन और भारत के बीच मनमुटाव और चीनी सामानों का बहिष्कार के चलते इस बार हम मिट्टी के दीए बड़ी मात्रा में खरीदने आए हैं पहले हम चीनी लाइट से हमारे घर को दीपावली के समय रोशन करते थे मगर इस बार हमने भी संकल्प लिया है कि मिट्टी के बने दिए से ही हम हमारे घर को जगमग रोशन करेंगे.
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पिछले काफी समय से चाइनीज सामानों में हर सेक्टर में अपनी छाप छोड़ते हुए लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है. चाइनीज सामान भले ही सस्ते हो लेकिन टिकाऊ नहीं होते, इस बात को भारतवासी जानते भी है लेकिन फिर भी सस्ते दामों के चलते इनकी बिक्री हमेशा जोरों पर रहती है इस बार कोरोना वायरस की वजह से लोगों ने चाइनीज सामानों का सामाजिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार किया है. जिसके चलते हमें इस बार काफी फायदा मिला है और हाथों से बनी चीजें की बाजारों में मांग बढ़ी है.
इस बार माटी से बने दीपक ने चायनीज सामग्री को पछाड़ा
इस बार हमारे परिवार के लिए खुशियों की दिवाली आई है. इसलिए कुछ सालों से दीपावली के पर्व पर चाइनीस रंग-बिरंगी लाइट ने दिए की रोशनी को कम कर दिया था लेकिन इस बार दियों की रोशनी के आग चाइनीज लाइट को पछाड़ दिया है. पिछले 40-50 साल से काम कर रहे. गोवर्धन कहते हैं कि इस बार दीपावली को लेकर दीपों की बिक्री पहले से कुछ अच्छी है.
भारतवासी इस बार खूब दीप जलाएंगे की मुहिम के साथ ईटीवी भारत इस दिए वाली मुहिम के साथ जुड़ गया है और दर्शकों से अपील करता है कि वह इस बार अपने घरों में खुशियों की दीपावली के साथ एक नया संकल्प ले और अपने घरों में इस उम्मीद के दीप जलाएं. जिससे इन परिवारों को भी नया उजाला मिल सके और यह इस बार अपने दिवाली रोशनी वाली बनाएं.