भीलवाड़ा. कोरोना कहर के चलते लगभग हर व्यापार प्रभावित हुआ है. इसके चलते कितनों की रोजी-रोटी बंद हो गई है तो कुछ अपना मूल व्यवसाय छोड़कर परिवार का गुजर बसर करने के लिए कुछ और ही कार्य करना शुरू कर दिए हैं. कोरोना के चलते लागू हुए लॉकडाउन के बाद से कुछ ऐसी ही हालत हो गई है भीलवाड़ा शहर में मुड्डे बनाने वाले लोगों की. इनका कहना है कि प्लास्टिक की कुर्सियां आने के बाद से मुड्डों की बिक्री काफी कम हो गई है. सप्ताह में एक-दो मुड्डी बिक जाती है, जिससे परिवार का खर्च निकल जाता है.
Etv Bharat की टीम भीलवाड़ा में बांस से मुड्डा बनाने वाले कामगारों के पास पहुंची. ऐसे में इन कामगारों कैमरे के सामने दर्द छलक पड़ा. जहां मुड्डा बना रहे नरेंद्र सिंह ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि कोरोना से हमारे व्यवसाय पर बहुत फर्क पड़ा है. पहले चार महीने तक लगातार काम बंद था, काम बंद होने से नया माल भी नहीं आ रहा था. उन्होंने कहा कि वे इस करीब 40 साल से इस कार्य को करते हैं. उनके समाज के काफी परिवार इसी व्यवसाय पर आश्रित हैं. लेकिन लॉकडाउन ने बाद से परिवार का पालन-पोषण करना बहुत मुश्किल हो रहा है.
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वहीं एक अन्य कामगार मुकेश मुछाल ने कहा कि मुड्डा के कारोबार पर कोरोना का काफी प्रभाव पड़ा है. मुड्डा बनाने का काम बिल्कुल मंदा हो गया है. कोरोना से पहले धंधा कुछ ठीक था. सप्ताह में तीन चार मुड्डे बनाते हैं. एक मुड्डा करीब 200 से 300 रुपए में बिकता है. ऐसे में हमको कुछ मेहताना मिलता है, जिससे घर परिवार चलाते हैं. वर्तमान में प्लास्टिक की कुर्सियों की बिक्री ज्यादा होने से मुड्डा व्यवसाय पर काफी प्रभाव पड़ा है.
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वहीं मुड्डा बना रही एक वृद्ध महिला का ईटीवी भारत पर दर्द छलक पड़ा. उन्होंने कहा कि यह हमारा पुस्तैनी काम है. हम छोटे थे, तब से मुड्डा बनाने का काम कर रहे हैं. महिला ने बताया कि वह बचपन से यह काम कर रही है. लेकिन ऐसा समय पहली बार देखा है. बिल्कुल न के बराबर काम हो रहा है. मैं अपने बेटो के साथ उनके काम में हाथ बटाती हूं और पूरे दिन भर लगी रहती हूं.
वहीं भीलवाड़ा में कोरोना के कारण स्कूल में अध्यापन कार्य बंद है. जहां छठवीं क्लास में अध्यनन कर रही छात्रा परि मुछाल ने बताया कि वर्तमान समय में स्कूल बंद है. इसलिए वह अपने मम्मी-पापा के साथ मिलकर मुड्डा बनाने के काम में हाथ बंटाती है.