भीलवाड़ा. बुधवार को जहां पूरे देश में मजदूर दिवस बड़े धूम-धाम से मनाया गया. सरकार और प्रशासन चाहे गरीबों की जनकल्याणकारी योजनाओं व श्रमिकों के हित के खूब दावे करें लेकिन हकीकत यह है कि आज भी बड़ी संख्या में बंधुआ मजदूर पसीने बहा रहे है और जिन्हें भुगतान भी नहीं किया जाता. यहां तक की मजदूरों के बच्चों को भोजन, पानी, आवास और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है. ऐसा ही एक मामला भीलवाड़ा में सामने आया है. जहां प्रशासन ने गुरूवार को 28 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया है.
भट्टे मालिक मजदूरों से करते थे मारपीट
बंधुआ मजदूरी में मजदूरों के साथ जानवरों जैसा सलूक किया जाता है. वहीं कार्यस्थल पर मजदूरों के बच्चों को आवश्यक सुविधाएं भी नहीं मिल पाती है. बता दें कि जिले में सैकड़ों ईंट-भट्टे संचालित हैं जिनमें कुछ वैद्य है तो कुछ अवैध है. इन भट्टों पर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड से आए हुए प्रवासी मजदूरों से 12 घंटे से अधिक समय तक मजदूरी करवाई जाती है. अधिकतर श्रमिक वंचित समुदाय से आते हैं. असंगठित क्षेत्र में कार्य करने के कारण किसी भी राजनीतिक दलों कि ओर से मजदूरों के हित में आवाज नहीं उठाई जाती है. जिसके कारण मजदूर भी खुद को न्याय दिलाने के लिए दर-दर की ठोकर खाते है.
तहसीलदार व उपखंड मजिस्ट्रेट ने की कार्रवाई
मामला मांडल तहसील के कंचन ईंट-भट्टे का है जहां गुरूवार को 28 मजदूरों से बंधुआ मजदूरी करवा रहे थे. मजदूरों को बिना वेतन काम करवाया जा रहा था. मानवाधिकार कार्यकर्ता रिंकू परिहार को जब इस मामले को लेकर सूचना मिली तो उसने मांडल उपखंड मजिस्ट्रेट को सूचना दी. जिस पर उपखंड मजिस्ट्रेट मंडल के आदेश पर नायब तहसीलदार व संस्था के सदस्य कि ओर से कार्यवाही कर 28 बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाया गया.
16-17 घंटे काम करते थे मजदूर
मजदूरों बताते है कि वे भट्टे पर प्रतिदिन 16 से 17 घंटे काम करते थे, परंतु उनको कभी भी वेतन नहीं दिया गया. बस खर्चे पानी के पैसे दे दिए जाते थे. बार-बार पैसे मांगने पर निराशा हाथ लगती थी. अब देखना यह होगा कि भीलवाड़ा जिले में संचालित अवैध ईंट-भट्टों के खिलाफ क्या श्रम विभाग व जिला प्रशासन कुछ कार्रवाई करता है, जिससे कि गरीब तबके के लोगों को राहत मिल सके और अच्छा मेहनताना मिल सके.