भरतपुर. एक वक्त था जब बाणगंगा, गंभीरी और रूपारेल नदियों के पानी से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान लबालब रहता था. अपनी आर्द्रता के लिए घना ने दुनिया के मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान बनाई थी. इसे विश्वविरासत का दर्जा भी मिला. यहां की आर्द्रभूमि से आकर्षित होकर सैकड़ों प्रजाति के हजारों प्रवासी पक्षी सात समंदर पार कर यहां पहुंचते थे, लेकिन अब यह आर्द्रभूमि धीरे-धीरे सिमटती जा रही है.
कई वर्ग किमी वेटलैंड अब वुडलैंड : पर्यावरणविद एवं केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के सेवानिवृत्त रेंजर भोलू अबरार ने बताया कि जिस समय तक केवलादेव उद्यान को बाणगंगा, गंभीरी और रूपारेल नदियों से पानी मिलता था, तब तक उद्यान का बड़ा क्षेत्र वेटलैंड था. पांचना बांध से पानी मिलने तक यहां कुल 28.73 वर्ग किमी में से करीब 11 वर्ग किमी वेटलैंड क्षेत्र था. अब उद्यान का कदंब कुंज, एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख गए हैं. कभी ये ब्लॉक वेटलैंड थे लेकिन अब वुडलैंड बनकर रह गए हैं. इससे घना का वेटलैंड का करीब 11 वर्ग किमी क्षेत्र करीब 8 वर्ग किमी तक कम हो गया है.
कम हो रहीं पक्षियों की प्रजातियों : भोलू अबरार ने बताया कि वेटलैंड में करीब 250 से अधिक प्रजाति के पक्षी देखे जाते हैं. ये वो प्रजातियां हैं जिनको वेटलैंड ही पसंद है और उसी में उनका जीवन चक्र चलता है. जैसे-जैसे वेटलैंड कम हो रहा है, वेटलैंड के पक्षियां भी मुंह मोड़ती जा रही हैं. साइबेरियन सारस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वेटलैंड सिकुड़ने का असर इसकी जैव विविधता पर भी पड़ता है.
...नहीं तो इतिहास बन जाएगा : उन्होंने बताया कि यदि समय रहते उद्यान के लिए उचित और भरपूर पानी की व्यवस्था नहीं हुई तो ये उद्यान के अस्तित्व के लिए ठीक नहीं होगा. यहां के लिए पांचना बांध जैसे उचित पानी की जरूरत है, जिसमें पक्षियों के लिए भरपूर भोजन भी साथ आए. अन्यथा वेटलैंड और उद्यान इतिहास की बात बनकर रह जाएगी.
वेटलैंड का इतिहास : 18वीं शताब्दी में भरतपुर राज्य के शासक महाराजा सूरजमल ने 3270 हेक्टेयर क्षेत्र में अजान बांध बनवाया था. सन् 1850 से 1899 के दौरान गुजरात में मोरवी रियासत के प्रशासक हरभामजी ने इस क्षेत्र में पानी के नियंत्रण के लिए नहरों और बांधों की प्रणाली शुरू की. 19वीं सदी के अंत में नहरें और बांध बनने के बाद इस क्षेत्र में ताजे पानी का दलदल बनना शुरू हुआ, जिससे यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आने लगे. भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने सन् 1902 में संगठित बत्तख आखेट स्थल के रूप में इसका औपचारिक उद्घाटन किया और सन् 1956 तक यह आखेट चलता रहा. सन् 1981 में घना एक उच्च स्तरीय संरक्षण दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय पार्क के रूप में स्थापित हुआ. सन् 1985 में उद्यान को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया.
घना की जैव विविधता :
1. राजस्थान में पक्षियों की कुल 510 प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से अकेले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 380 पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित की जा चुकी हैं.
2. राजस्थान में रेंगने वाले (सरीसृप) जीवों की करीब 40 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें करीब 25 से 29 प्रजातियां घना में उपलब्ध हैं.
3. राजस्थान में तितलियों की करीब 125 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें से करीब 80 प्रजाति घना में हैं.
4. राजस्थान में मेंढक की 14 प्रजातियां हैं, जिनमें से 9 प्रजातियां घना में हैं.
5. राजस्थान में कछुओं की 10 प्रजातियों में से 8 प्रजाति घना में मिलती हैं.