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संकट में याद आए गांव के खेत, खलिहान और बगान, कोरोना काल में पहली पसंद बना अपना गांव

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Published : May 28, 2020, 10:54 AM IST

कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बीच सिर्फ मजदूर और श्रमिक ही नहीं बल्कि नौकरी पेशा वाले लोग भी बड़ी संख्या में गांव लौट रहे हैं. ये लोग शहरों की अपेक्षा गांव में खुद को ज्यादा सुरक्षित समझ रहे हैं. हमने भरतपुर के एक ऐसे ही गांव में जाकर लोगों के बात की जहां शहरों से अपने घर छोड़कर लोग अपने पुराने घर लौटे हैं...देखिए ये ग्राउंड रिपोर्ट...

village life, गांव की जिंदगी
कोरोना काल में लोगों की पहली पसंद बने गांव

भरतपुर. आधुनिकता की अंधी दौड़ में गांव और पुरखों के मकान को छोड़कर जो लोग वर्षों पहले शहरों की ओर चले गए थे, अब कोरोना महामारी के हालात में उन्हें अपना गांव और पुरखों का मकान याद आ रहा है. लोग शहरों में संक्रमण के खतरे को देखते हुए वापस अपने गांव की ओर लौटने लगे हैं. ईटीवी भारत ने गांव में लौटे ऐसे ही कुछ परिवारों से बात की, तो उन्होंने शहरी जिंदगी की असुरक्षा और गांव के सुकून के बारे में बताया.

कोरोना काल में लोगों की पहली पसंद बने गांव
गांव में कोरोना संक्रमण का खतरा कम:बयाना तहसील के गांव खेडली गड़ासिया निवासी उदय सिंह का कहना है कि उनका बेटा और पुत्रवधु भरतपुर शहर में ही नौकरी करते हैं. ऐसे में गांव का घर छोड़कर उन्होंने भरतपुर शहर में ही नया मकान बना लिया और वहीं रहने लगे. लेकिन 2 महीने के दौरान कोरोना संक्रमण के चलते लागू किए गए लॉकडाउन में शहर में रहना मुश्किल हो गया है. यहां तक कि बच्चों के लिए दूध और परिजनों के लिए सब्जी खरीदने में भी डर लग रहा था. ऐसे में संक्रमण के खतरे को देखते हुए वापस अपने गांव पूरे परिवार के साथ लौट कर आए हैं. यहां संक्रमण का खतरा भी बहुत कम है और सुकून भी है.
village life, गांव की जिंदगी
घर बच्चों के साथ खेलता हुआ पिता
गांव में मिलता है सुकून:गांव खेरली गड़ासिया निवासी दीपक मुद्गल जिला उपभोक्ता मंच के सदस्य हैं. वर्षों पहले भरतपुर शहर में ही मकान बना लिया था. पिता की मौत के बाद मां भी भरतपुर में उनके साथ रहने लगीं थी. ऐसे में गांव के घर पर ताला लग गया. गांव में कभी-कभी ही आना होता था लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद पूरा परिवार वापस गांव लौट आया है. गांव के पैतृक घर मे आकर जहां सभी को सुकून मिला है. अन्य परिजनों के साथ वक्त कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता.
village life, गांव की जिंदगी
लकड़ी से खाना बना रही महिला

शहर में डर लग रहा था:

शहर से गांव लौटे परिवारों का कहना है लॉकडाउन के दौरान शहर में एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा है. घर से बाहर निकलने में डर लगता था लेकिन मजबूरन सामान लेने के लिए जाते थे और डर भी जी रहे थे. लेकिन गांव में आने के बाद ऐसा नहीं है. यहां आपनों के साथ कब समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता. पहले कभी कभार ही गांव के घर आना होता है. बचपन के दोस्त और परिजनों से मुलाकात भी नहीं हो पाती थी.

village life, गांव की जिंदगी
खेडली गड़ासिया गांव

पुरानी यादें दोस्तों के साथ:

लॉकडाउन के दौरान अपने के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है. यहां बचपन के दोस्तों से मुलाकात होती है तो अपना बचपन याद आ जाता है. गांव में हमेशा ही सुकून मिलता है लेकिन काम और नौकरी की आपाधापी के चक्कर में बहुत कम यहां आना होता है. कोरोना वायरस के दौरान जहां हम पैदा हुए या फिर जहां से हमारी जड़े जुड़ी हुई है वही हमें अपने छांव दे रहा है. शहर में सब कुछ होते हुए भी आज हम गांव में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

village life, गांव की जिंदगी
गांव में एक टूटा हुआ मकान

ये भी पढ़ें: दौसाः बीड़ी के लिए लगी डेढ़ किलोमीटर लंबी लाइन

गांव वाले खेल और चूल्हे की रोटी:
शहर से गांव लौटने के बाद बच्चों ने स्मार्ट फोन, गेम के बजाय परंपरागत खेल जैसे इंगनी, मिंगनी, छुपाछुपी खेल रहे हैं. वहीं महिलाएं गैस के बजाय चूल्हे की रोटियां बना रही हैं. सब लोग इसे पसंद भी खूब कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: बीकानेरी रसगुल्ले पर कोरोना 'ग्रहण'...लॉकडाउन से भुजिया का जायका बिगड़ा

रोजगार की तलाश में ग्रामीण लोगों ने बड़ी संख्या में समय समय पर शहरों की ओर पलायन किया है. जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों मकानों पर ताले-लटक चुके हैं. कितने ही मकान जर्जर हो गए और कितने ही मकान रख रखाव के अभाव में धराशायी हो गए...लेकिन लॉकडाउन में लोगों को फिर से गांव का महत्व समझ आया और लोग फिर से गांवों की ओर लौट रहे हैं.

भरतपुर. आधुनिकता की अंधी दौड़ में गांव और पुरखों के मकान को छोड़कर जो लोग वर्षों पहले शहरों की ओर चले गए थे, अब कोरोना महामारी के हालात में उन्हें अपना गांव और पुरखों का मकान याद आ रहा है. लोग शहरों में संक्रमण के खतरे को देखते हुए वापस अपने गांव की ओर लौटने लगे हैं. ईटीवी भारत ने गांव में लौटे ऐसे ही कुछ परिवारों से बात की, तो उन्होंने शहरी जिंदगी की असुरक्षा और गांव के सुकून के बारे में बताया.

कोरोना काल में लोगों की पहली पसंद बने गांव
गांव में कोरोना संक्रमण का खतरा कम:बयाना तहसील के गांव खेडली गड़ासिया निवासी उदय सिंह का कहना है कि उनका बेटा और पुत्रवधु भरतपुर शहर में ही नौकरी करते हैं. ऐसे में गांव का घर छोड़कर उन्होंने भरतपुर शहर में ही नया मकान बना लिया और वहीं रहने लगे. लेकिन 2 महीने के दौरान कोरोना संक्रमण के चलते लागू किए गए लॉकडाउन में शहर में रहना मुश्किल हो गया है. यहां तक कि बच्चों के लिए दूध और परिजनों के लिए सब्जी खरीदने में भी डर लग रहा था. ऐसे में संक्रमण के खतरे को देखते हुए वापस अपने गांव पूरे परिवार के साथ लौट कर आए हैं. यहां संक्रमण का खतरा भी बहुत कम है और सुकून भी है.
village life, गांव की जिंदगी
घर बच्चों के साथ खेलता हुआ पिता
गांव में मिलता है सुकून:गांव खेरली गड़ासिया निवासी दीपक मुद्गल जिला उपभोक्ता मंच के सदस्य हैं. वर्षों पहले भरतपुर शहर में ही मकान बना लिया था. पिता की मौत के बाद मां भी भरतपुर में उनके साथ रहने लगीं थी. ऐसे में गांव के घर पर ताला लग गया. गांव में कभी-कभी ही आना होता था लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद पूरा परिवार वापस गांव लौट आया है. गांव के पैतृक घर मे आकर जहां सभी को सुकून मिला है. अन्य परिजनों के साथ वक्त कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता.
village life, गांव की जिंदगी
लकड़ी से खाना बना रही महिला

शहर में डर लग रहा था:

शहर से गांव लौटे परिवारों का कहना है लॉकडाउन के दौरान शहर में एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा है. घर से बाहर निकलने में डर लगता था लेकिन मजबूरन सामान लेने के लिए जाते थे और डर भी जी रहे थे. लेकिन गांव में आने के बाद ऐसा नहीं है. यहां आपनों के साथ कब समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता. पहले कभी कभार ही गांव के घर आना होता है. बचपन के दोस्त और परिजनों से मुलाकात भी नहीं हो पाती थी.

village life, गांव की जिंदगी
खेडली गड़ासिया गांव

पुरानी यादें दोस्तों के साथ:

लॉकडाउन के दौरान अपने के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है. यहां बचपन के दोस्तों से मुलाकात होती है तो अपना बचपन याद आ जाता है. गांव में हमेशा ही सुकून मिलता है लेकिन काम और नौकरी की आपाधापी के चक्कर में बहुत कम यहां आना होता है. कोरोना वायरस के दौरान जहां हम पैदा हुए या फिर जहां से हमारी जड़े जुड़ी हुई है वही हमें अपने छांव दे रहा है. शहर में सब कुछ होते हुए भी आज हम गांव में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

village life, गांव की जिंदगी
गांव में एक टूटा हुआ मकान

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गांव वाले खेल और चूल्हे की रोटी:
शहर से गांव लौटने के बाद बच्चों ने स्मार्ट फोन, गेम के बजाय परंपरागत खेल जैसे इंगनी, मिंगनी, छुपाछुपी खेल रहे हैं. वहीं महिलाएं गैस के बजाय चूल्हे की रोटियां बना रही हैं. सब लोग इसे पसंद भी खूब कर रहे हैं.

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रोजगार की तलाश में ग्रामीण लोगों ने बड़ी संख्या में समय समय पर शहरों की ओर पलायन किया है. जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों मकानों पर ताले-लटक चुके हैं. कितने ही मकान जर्जर हो गए और कितने ही मकान रख रखाव के अभाव में धराशायी हो गए...लेकिन लॉकडाउन में लोगों को फिर से गांव का महत्व समझ आया और लोग फिर से गांवों की ओर लौट रहे हैं.

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