भरतपुर. संजय के पास कोई रास्ता नहीं था अपने गांव और घर पहुंचने का, ऐसे में एक उम्मीद दिखी और वो उम्मीद थी पत्नी की सोने की अंगूठी. फिर क्या था संजय ने उस अंगूठी को बेच कर एक गाड़ी खरीदी. बैल खरीदने के लिए पैसा नहीं थे ऐसे में उसने आवारा सांड को ही पकड़कर गाड़ी लेकर अपने पूरे परिवार के साथ निकल पड़ा.
संजय नट उत्तर प्रदेश के गांव नगला तांगड़ का रहने वाला है. संजय के मुताबिक, वह जोधपुर में वर्षों से सिलाई की मशीन की मरम्मत का कार्य और खेल/तमाशा दिखाकर गुजर - बसर कर रहा था. लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने हालात इतने बिगाड़े कि घर में खाना बनाने के लिए आटा तक नहीं बचा. 1 महीने तक पड़ोसियों की मदद से परिवार का पेट भरता रहा. लेकिन फिर ऐसा वक्त भी आया जब पड़ोसियों से भी मदद मिलनी बंद हो गई.
संजय के मुताबिक, उनके सामने सिर्फ खाने और परिवार को पालने की समस्या नहीं थी बल्की सबसे बड़ी परेशानी थी जहां वो रहते थे उसके किराए के खातिर पैसे जुटाना जो उनके पास नहीं थे. मकान मालिक हर दिन धमकी देने लगा पैसे देने के लिए. मकान घर छोड़ने का दबाव भी बनाने लगा जिसके बाद उन्होंने घर जाने का फैसला लिया.
उन्होंने कहा कि, मेरे पास कोई रास्ता नहीं था. पूरे परिवार को लेकर सड़क पर बैठने के बजाय वापस अपने गांव जाना उचित समझा. हमारे पास एक ही उम्मीद थी पत्नी की सोने की अंगूठी जिसे बेचकर हमने 6 हजार रुपए जुटाए और एक गाड़ी खरीदी. बैल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे ऐसे में लोगों की मदद से एक आवारा बैल को हमने पकड़ा और उसे गाड़ी में लगा दिया.
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अपना दर्द बयां करते हुए संजय ने कहा कि, गाड़ी में घरेलू सामान लादकर परिवार के साथ शनिवार को वो भरतपुर पहुंचे. क्योंकि गाड़ी को आवारा बैल खींच रहा है ऐसे में संजय उसे संभालने के खातिर खुद सड़क पर पैदल चल रहे हैं अपने गांव अपने घर की तरफ एक उम्मीद के साथ.