भरतपुर. भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) की जन्मभूमि ब्रज क्षेत्र (Braj) अपनी प्राचीन परंपराओं के निर्वहन के लिए खासी पहचान रखता है. होली का त्यौहार हो या फिर दिवाली का (Diwali) ग्रामीण क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा (Govardhan puja) प्राचीन परंपरा के तहत एक ही स्थान पर की जाती है. भरतपुर जिले के खेरली गड़ासिया गांव में शुक्रवार को गोमाता के गोबर से गोवर्धन महाराज की विशाल प्रतिमा बनाई गई.
ग्रामीण बुजुर्ग महिला सफेदी ने बताया कि उनके गांव खेरली गड़ासिया में गोवर्धन पूजा और वर्षों से परंपरागत तरीके से की जा रही है. गोवर्धन महाराज की पूजा की तैयारियां 1 दिन पहले से शुरू हो जाती है. पूरे गांव की महिलाएं अपने-अपने घर से गोमाता का गोबर लेकर गांव में ही एक निश्चित स्थान पर इकट्ठा करती हैं. गोबर एकत्रित करने की प्रक्रिया में कई टन गोबर हो जाता है. गांव खेरली गड़ासिया में कई टन गोबर से गोवर्धन महाराज की विशाल प्रतिमा बनाई गई.
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महिला सफेदी ने बताया कि गोवर्धन पूजा के दिन गांव की बुजुर्ग महिलाएं इकट्ठा किए गए गोबर से गोवर्धन महाराज की प्रतिमा तैयार करती हैं. प्रतिमा तैयार करके सभी महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं. महिला सफेदी ने बताया कि वो बीते 60 वर्षों से गांव में गोवर्धन प्रतिमा का निर्माण कर रही हैं. ग्रामीण कुलदीप ने बताया कि गोवर्धन पूजा के लिए पूरे गांव में हर घर में अन्नकूट और देशी घी से दाल-बाटी चूरमा तैयार किया जाता है. इसके बाद शाम के वक्त सभी ग्रामवासी गोवर्धन की प्रतिमा के पास इकट्ठा होते हैं.
सामूहिक रूप से लगाते हैं भोग
ग्रामीण कुलदीप ने बताया कि सामूहिक रूप से गोवर्धन महाराज को भोग लगाकर पूजा करते हैं. उन्होंने बताया कि द्वापर युग में जब एक बार इंद्रदेव रुष्ट हो गए और उन्होंने ब्रज क्षेत्र में तेज बारिश कर दी. उस समय भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज वासियों को बचाने और इंद्र भगवान का मान मर्दन करने के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण कर लिया और पूरे ब्रज क्षेत्र को इंद्र के कोप से बचाया था. तभी से ब्रज क्षेत्र समेत बल्कि पूरे भारतवर्ष में गोवर्धन महाराज की पूजा धूमधाम होती आ रही है.