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आजादी के 74 साल: भारत-पाक बंटवारे को लेकर शरणार्थियों ने बयां की दर्द भरी दास्तान...

15 अगस्त 1947 को हमने आजादी की पहली किरण देखी थी. एक नया भारत आजाद भारत के रूप में अपने नए जीवन की शुरुआत कर रहा था. 15 अगस्त 1947 को देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ था. लोगों में आजादी की खुशी तो थी, लेकिन दर्द भी कम ना था. धर्म के आधार पर हुए बंटवारे के बाद हजारों की संख्या में शरणार्थी पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आए थे. इन्हीं में से एक परिवार राजस्थान के बाड़मेर में बसा है. आइये जानते है इनसे आजादी का वो किस्सा.

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Published : Aug 15, 2020, 7:02 AM IST

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शरणार्थियों ने बयां की दास्तान

बाड़मेर. 15 अगस्त का दिन पूरा हिंदुस्तान स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है. इन सबके के बीच ईटीवी भारत की टीम ने पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आए शरणार्थियों से बात की और यह भी जाना के किन हालातों में वो पाकिस्तान को छोड़कर हिंदुस्तान लौटे थे. 15 अगस्त 1947 को ही पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आकर बस गए. उसके बाद भी 1971 का युद्ध हो या फिर भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते रिश्ते, लगातार सीमा पार से शरणार्थी भारत की शरण में आते रहे.

शरणार्थियों ने बयां की दास्तान

इस बीच 70 साल की नाजु कंवर देवी 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर भारत आ गई थी. उसके बाद भारत की सरकार ने शरणार्थियों की मदद की. नाजु कंवर बताती है कि उस समय इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की पूरी तरीके से मदद की. लेकिन बाद में सरकार ने मदद करने से आनाकानी कर दी. उन्होंने बताया कि आज भी सीमापार उनकी रिश्तेदारी है. लेकिन दोनों देशों के खराब रिश्तों के बीच थार एक्सप्रेस बंद है. जिसका दर्द नाजु कंवर को आज भी है.

पढ़ेंः बूंदी में स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां पूरी, बच्चों को रखा जाएगा कार्यक्रम से दूर

आजादी के समय पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच जिस तरीके का समझौता हुआ और उसके बाद जिन लोगों ने भी हिंदुस्तान को चुना. वह आज के समय में अमन और चैन की जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन उनके कुछ रिश्तेदार जोकि समय-समय पर पाकिस्तान में सरकार की यातनाएं झेलते हैं, ऐसे में वो थक हारकर भारत आ जाते हैं. ऐसे न जाने हजारों लोग होंगे, जिन्होंने लाखों रुपए की जमीन जायदाद को ठुकराकर हिंदुस्तान को चुना.

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बाड़मेर स्थित भारत-पाक बॉर्डर

पढ़ेंः अजमेर: रेलवे स्टेशन पर हाई अलर्ट, 15 अगस्त को देखते हुए जीआरपी का सर्च ऑपरेशन

वजह सिर्फ इतनी थी कि यह परिवार शांति से जिंदगी जीना चाहते थे. इसके साथ ही जिन लोगों ने भी बंटवारे के समय हिंदुस्तान को चुना था. उनकी जिंदगी पूरी तरीके से बदल गई और आज वह हिंदुस्तान में आन बान और शान के साथ जी रहे हैं. लेकिन आज भी इन परिवारों को अपने रिश्तेदारों के लिए पाकिस्तान में हो रही यातनाओं को लेकर समय-समय पर दर्द होता रहता है.

कभी दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते इतने बिगड़ जाते हैं कि रेल पटरी पर थार एक्सप्रेस चलना बंद हो जाती है. हम बताते चले कि पाकिस्तान से आए शरणार्थी आज के समय में 15 अगस्त को विशेष तौर से याद करते हैं. क्योंकि उन्हें इस बात की थोड़ी खुशी और थोड़ा गम भी होता है कि उन्होंने अपनी जमीन को छोड़कर हिंदुस्तान चुन लिया था. खुशी इस बात की उनका निर्णय आज के समय में पूरी तरीके से सही है.

बाड़मेर. 15 अगस्त का दिन पूरा हिंदुस्तान स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है. इन सबके के बीच ईटीवी भारत की टीम ने पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आए शरणार्थियों से बात की और यह भी जाना के किन हालातों में वो पाकिस्तान को छोड़कर हिंदुस्तान लौटे थे. 15 अगस्त 1947 को ही पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आकर बस गए. उसके बाद भी 1971 का युद्ध हो या फिर भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते रिश्ते, लगातार सीमा पार से शरणार्थी भारत की शरण में आते रहे.

शरणार्थियों ने बयां की दास्तान

इस बीच 70 साल की नाजु कंवर देवी 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर भारत आ गई थी. उसके बाद भारत की सरकार ने शरणार्थियों की मदद की. नाजु कंवर बताती है कि उस समय इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की पूरी तरीके से मदद की. लेकिन बाद में सरकार ने मदद करने से आनाकानी कर दी. उन्होंने बताया कि आज भी सीमापार उनकी रिश्तेदारी है. लेकिन दोनों देशों के खराब रिश्तों के बीच थार एक्सप्रेस बंद है. जिसका दर्द नाजु कंवर को आज भी है.

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आजादी के समय पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच जिस तरीके का समझौता हुआ और उसके बाद जिन लोगों ने भी हिंदुस्तान को चुना. वह आज के समय में अमन और चैन की जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन उनके कुछ रिश्तेदार जोकि समय-समय पर पाकिस्तान में सरकार की यातनाएं झेलते हैं, ऐसे में वो थक हारकर भारत आ जाते हैं. ऐसे न जाने हजारों लोग होंगे, जिन्होंने लाखों रुपए की जमीन जायदाद को ठुकराकर हिंदुस्तान को चुना.

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बाड़मेर स्थित भारत-पाक बॉर्डर

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वजह सिर्फ इतनी थी कि यह परिवार शांति से जिंदगी जीना चाहते थे. इसके साथ ही जिन लोगों ने भी बंटवारे के समय हिंदुस्तान को चुना था. उनकी जिंदगी पूरी तरीके से बदल गई और आज वह हिंदुस्तान में आन बान और शान के साथ जी रहे हैं. लेकिन आज भी इन परिवारों को अपने रिश्तेदारों के लिए पाकिस्तान में हो रही यातनाओं को लेकर समय-समय पर दर्द होता रहता है.

कभी दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते इतने बिगड़ जाते हैं कि रेल पटरी पर थार एक्सप्रेस चलना बंद हो जाती है. हम बताते चले कि पाकिस्तान से आए शरणार्थी आज के समय में 15 अगस्त को विशेष तौर से याद करते हैं. क्योंकि उन्हें इस बात की थोड़ी खुशी और थोड़ा गम भी होता है कि उन्होंने अपनी जमीन को छोड़कर हिंदुस्तान चुन लिया था. खुशी इस बात की उनका निर्णय आज के समय में पूरी तरीके से सही है.

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