बाड़मेर. कोरोना काल में जब अपने भी साथ छोड़ रहे हैं तो कई ऐसे भी हैं जो दूसरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. बाड़मेर के बाबल खान भी उन्हीं में से एक हैं, जो इस मुश्किल घड़ी में जरूरतंदों की मदद के लिए कभी पीछे नहीं रहते. इतना ही नहीं, कोरोना से मौत हो जाने के बाद अगर परिजन हाथ न लगाए तो बाबल खान उस शव का दाह संस्कार भी कर लेता है.
बाबल खान सार्वजनिक श्मशान समिति की अंतिम यात्रा मोक्ष वाहन चलाता है. 2 साल से लगातार बाबल खान मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में होने वाली कोरोना से मौत के शव को श्मशान पहुंचाता है. इतना ही नहीं, अगर कोई परिवार का सदस्य साथ में नहीं आता है तो श्मशान समिति के सदस्यों के साथ मिलकर रीति-रिवाज से दाह संस्कार भी कर लेता है.
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बाबल खान के अनुसार इस बार तो हालात बेहद खतरनाक हैं. रोज के तीन से चार शवों को ले जाना पड़ता है. पहली लहर में इतने हालात खतरनाक नहीं थे. इस बार तो एक के बाद एक लोगों की मौत हो रही है. मुझे कोविड मौत के शव को हाथ लगाने से भी डर नहीं लगता है. मुझे इस बात की संतुष्टि है कि इस विकट परिस्थितियों में जब अपने ही साथ छोड़ देते हैं, उस समय मैं लोगों की सेवा कर रहा हूं.
श्मशान समिति के संयोजक भेरूसिंह फुलवरिया बताते हैं कि बाबल खान लगातार 24 घंटे काम करता है. जब भी अस्पताल से इस फोन आता है तो अपने सारे काम छोड़ कर मोक्ष वाहन वहां ले जाकर शव को लेकर आता है और अंतिम संस्कार करवाता है.