बाड़मेर. अक्सर कोर्ट में डिग्री धारी वकील ही कानून की दलीलें पेश करते हैं, लेकिन बाड़मेर का इस शख्स के पास न तो कोई डिग्री है और न ही कानून की कोई जानकारी, पर अपनी मेहनत और हिम्मत से खुद केस लड़ा और 38 साल बाद आखिरकार फैसला उनके पक्ष में आया.
दरअसल, बंसीलाल बाड़मेर के रहने वाले हैं. बंसीलाल ने 38 साल पहले 25 मई 1981 में बाड़मेर शहर में 70x23 का प्लॉट 40 हजार में खरीदा था. लेकिन प्लॉट बेचने वाले ने न तो जमीन पर कब्जा दिया और न ही जमीन की रजिस्ट्री बंसीलाल के नाम से करवायी. जिसके बाद मई 1982 में इस संबंध में बंसीलाल ने मुकदमा दर्ज करवाया.
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8वीं पास है बंसीलाल...
कोर्ट में हर दिन अनेकों फैसले आते हैं, लेकिन इस पूरे मामले में सबसे खास बात यह है कि बाड़मेर की 8वीं पास बंसीलाल पिछले 38 सालों से सेशन न्यायालय से हाईकोर्ट तक बिना किसी वकील के अपने केस को खुद ही लड़ा. उन्होंने कोर्ट में बहस में अपनी बात को लिखकर न्यायाधीश के सामने रखा. इस दौरान उन्हें कोर्ट से कई तारीखे मिली. बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और न्याय की आस में लगातार भी कोर्ट में अपना पक्ष रखते गए. जिसके चलते हाईकोर्ट से उन्हें इंसाफ मिला.
हाईकोर्ट ने बाड़मेर के 83 वर्षीय बुजुर्ग बंसीलाल के 38 साल पुरानी जमीन विवाद में उनके पक्ष में फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन की रजिस्ट्री और कब्जा बुजुर्ग बंसीलाल को दिलवाने के आदेश दिए हैं.
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मोटी फीस के चलते नहीं किया कोई वकील...
बंसीलाल ने बताया कि वकील उनका केस लड़ने के लिए बड़ी-बड़ी फीस मांग रहे थे, जो कि उनके पास नहीं थी. जिसके चलते वे खुद लगातार इस पूरे मामले की पैरवी करते रहे. वे बताते हैं कि, कोर्ट की तारीख के समय उनका करीबन 250-300 रुपए खर्च ही आता था, जबकि वकील बड़ी-बड़ी फीस मांग रहे थे.
उन्होंने बताया कि कानून की जानकारी के लिए उन्होंने कानून की किताबें पढ़ी और कोर्ट में बहस के दौरान अपनी बात को पेज पर लिख कर रखा, ताकि कोई गलती की गुंजाइश न रहे. आखिरकर कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया, अब वे खुश हैं. वे चाहते हैं कि उस जमीन पर उन्हें कब्जा भी सौंप दिया जाए.
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बता दें बंसीलाल ने इस कोर्ट केस में अपनी आधी जिंदगी गुजार दी. जब यह केस दर्ज हुआ, तब बंसीलाल 45 साल के थे, अब उनकी उम्र 83 साल हो गई है. बंसीलाल बताते हैं कि मेरी उम्र को को ध्यान में रखकर विपक्ष की ओर से लगातार इस मामले को लगातार तारीखों में उलझा रखा, ताकि यह बुजुर्ग थक हार जाए, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. मुझे खुशी है कि मेरे जीते जी मेरे पक्ष में फैसला आ गया. अब मुझे उम्मीद है कि जल्द मुझे मेरी जमीन पर कब्जा भी दिलवा दिया जाएगा.