अंता (बारां). जिले में संचालित वृद्धाश्रम बुढ़ापे की लाठी बना हुआ है. यहां अपनों ने ही अपनों को गैर समझकर ठुकरा दिया है. परिवार से सताए ऐसे वृद्ध के लिए जिंदगी की अंतिम पड़ाव में वृद्धाश्रम ही सहारा बना हुआ है. अंता के वृद्धाश्रम ने 25 बुजुर्गों को सहारा दिया है.
अपनी औलाद के लिए जिन्होंने सालों तक मेहनत मजदूरी करके पाला-पोसा, पढ़ा-लिखा कर काबिल बना दिया. अब उम्र के अंतिम पड़ाव में उन्हीं औलादों ने ही बेसहारा कर दिया. ऐसी ही दास्तां है बारां जिले के अंता वृद्धाश्रम की. जो बुढ़ापे की लाठी बना हुआ है. जिसमें बेटे, बहू, बेटी, दामाद द्वारा प्रताड़ित बुजुर्ग अपने जीवन की ढलती शाम वृद्धाश्रम में काटने को मजबूर है. इस वृद्धाश्रम में 25 बुजुर्ग लोग हैं. इनमें प्रत्येक वृद्ध की अपनी एक ही पीड़ा है. पर सबकी एक अलग कहानी है. सभी अपनों के ही सताए हैं. उन्हें खुद की ही औलाद ने बेआसरा कर दिया है.
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ऐसे में उनके जीवन की अंतिम शरण स्थली वृद्धाश्रम ही है. जहां सारी दुनिया के सताए लोग अपनी पीड़ा एक दूसरे को सुनाकर दिन काट रहे हैं. बुजुर्ग बुढ़ापा आते ही इतने असहाय हो जाते हैं कि अब तो उन्हें बेटे-बहू भी दुत्कार कर भगा देते हैं. वहीं एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि उनके दो बेटे हैं. दोनों में से एक बेटा फौज में है. लेकिन कोई उन्हें अपने पास रखने को तैयार नहीं है.
इस वृद्धाश्रम में रहने वाले एक दुसरे बुजुर्ग का कहना है कि उनकी बेटे-बहु से नहीं बनती. इसलिए यहां रह रहे हैं. यहां सबकी कुछ ऐसी ही कहानी है. बता दें कि जिले में सामाजिक अधिकारिता विभाग की ओर से बारां जिलें में चार जगह अंता, मांगरोल, अटरू और छबड़ा में वृद्धाश्रम संचालित है. जहां पर 25-25 बुजुर्ग महिला-पुरूष यहां रहते हैं.
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वहीं देखने वाली बात है जिन मां-बाप ने अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाया. वहीं बच्चें योग्य बनने के बाद इन बुजुर्ग मां-पिता का हाथ छोड़ दे रहे हैं. इनके बुढ़ापे का सहारा बनने के बजाय दर-दर ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं. लेकिन फिर भी ये बुजुर्ग अपनी औलाद के लिए वृद्धाश्रम में रहने के बावजूद चिंता करते हैं. इस कलयुग में इस वृद्धाश्रम में रहने वाले मां-बाप की अपनी ही कहानी है. कोई नाराज है, दुखी है पर मन में फिर भी अपने बच्चों के लिए प्यार और चिंता लिए जी रहे हैं.