बांसवाड़ा. ऐसा कहा जाता है कि मां त्रिपुरा सुंदरी का जिस किसी ने भी आशीर्वाद पाया. उसे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. माता के दरबार में हाजिरी लगाने वालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा राष्ट्रपति पद तक पहुंची प्रतिभा पाटिल और देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री व राज्यपाल सहित कई केंद्रीय मंत्री तथा न्यायिक अधिकारी भी शामिल हैं.
अपने इस चमत्कार के बूते आज मां त्रिपुरा सुंदरी राजस्थान ही नहीं पूरे देश में सत्ता की देवी के नाम से पहचान बना चुकी हैं. बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति को चमत्कारी माना जाता है. दिन में तीन रूप धारण करती हैं- मां सिंह वाहिनी, मां भगवती त्रिपुरा और सुंदरी की मूर्ति अष्ट दशा भुजाओं वाली हैं.
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5 फीट ऊंची इस विशाल मूर्ति में मां के अष्ट दशा भुजाओं में विविध आयुध हैं. पार्श्व में नव दुर्गाओं की प्रतिक्रिया अंकित हैं और पावन चरणों में सर्व सिद्धि प्रदान करने वाला सिद्धि युक्त श्री यंत्र निर्मित है. देवी मां के सिंह मयूर और कमला सीनी होने तथा दिन में तीन रूप प्रात: काल में कुमारी का, मध्याह्न में सुंदरी कथा संध्या काल में पूर्ण रूप में दर्शन देने के कारण इन्हें त्रिपुरा सुंदरी भी कहा जाता है.
कभी यहां तीन दुर्ग थे...
निर्माण के काल का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, किंतु विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख मिला है. इससे अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पहले का है. यहां आसपास गढ़ पोली नामक महानगर था, जो सीतापुरी-शिवपुरी और विष्णुपुरी नाम के तीन दुर्ग को अपने में समेटे था. 3 दुर्गों के बीच देवी मां का मंदिर स्थित होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा.
रियासत काल में बांसवाड़ा के साथ-साथ डूंगरपुर, गुजरात, मालवा प्रदेश और मारवाड़ के राजा महाराजा की मां त्रिपुरा सुंदरी के उपासक थे. मूर्ति के हाथ तक नहीं लगा पाए. मूर्ति भंजक प्राचीन खंडहरों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि मुस्लिम शासक मूर्ति भंजक महमूद गजनवी और अलाउद्दीन खिलजी ने इस क्षेत्र के मंदिरों को खंडित करने में कोई कसर नहीं रखी. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह मूर्ति भंजक इस मंदिर तक नहीं पहुंच पाए और मूर्ति सुरक्षित रही.
चांदा भाई ने कराया था जीर्णोद्धार...
इस मंदिर का विक्रम संवत 1157 में पहली बार जीर्णोद्धार क्षेत्र के चांदा भाई उर्फ पाता भाई लोहार पंचाल ने करवाया था. विक्रम संवत 1930 में पंचायत समाज 14 चोकला ने मंदिर पर नया सीकर प्रतिष्ठित किया. साल 1991 में मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य एवं शिखर प्रतिष्ठित किया. साल 1977 में राजस्थान की कमान संभालने वाले बांसवाड़ा कहरी देव जोशी की प्रेरणा से दानदाताओं के सहयोग के जरिए मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार किया गया और मंदिर को भव्य रूप से प्रतिस्थापित किया गया. उसके बाद से माता की महिमा बढ़ती गई और मंदिर प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में पहचान बनाता गया.
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वर्तमान में पंचाल समाज ही मंदिर की पूरी व्यवस्थाएं करता है. मंदिर का सारा कामकाज मंदिर श्री त्रिपुरा सुंदरी व्यवस्थापक मंडल पंचायत समाज 14 चौखरा जिला बांसवाड़ा, डूंगरपुर संभालता है. जोशी के बाद वसुंधरा राजे परम भक्त ट्रस्ट के अनुसार प्रदेश की 3 बार कमान संभालने वाले हरिदेव जोशी माता के खास भक्त थे और जयपुर से बांसवाड़ा आना हो या बांसवाड़ा से जयपुर. माता के दर्शनों के बाद ही अपने घर लौटते थे. माता के दर्शन के बाद ही जयपुर रवाना होते थे. उसके बाद केंद्रीय मंत्री रहते हुए साल 2002 में वसुंधरा राजे माता के दरबार में पहुंची और प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं.
उसके बाद से राजे माता की खास मुरीद हो गईं. साल 2003 में तत्कालीन उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, साल 2006 में बतौर राज्यपाल प्रतिभा पाटिल यहां पहुंची और देश का सर्वोच्च पद संभाला. इसी प्रकार आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत साल 2013 में बतौर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के अलावा अटल बिहारी वाजपेई और गुजरात के मुख्यमंत्री रहते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई राजनेता और न्यायिक तथा प्रशासनिक अधिकारी भी माता के दरबार में पहुंचे.
ट्रस्ट के अध्यक्ष दिनेश चंद्र पंचाल बताते हैं कि माता के दरबार में जिस किसी राजनेता ने हाजिरी लगाई. वह ऊंचे पद पर पहुंचने में कामयाब रहा. यह माता का चमत्कार ही है कि आज राजस्थान ही नहीं देश के अन्य हिस्सों से भी कई राजनेता और अधिकारी यहां पहुंचते हैं. ट्रस्ट द्वारा चैत्र शुक्ल अष्टमी को मेला लगाया जाता है और हजारों लोग माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.