बांसवाड़ा. राज्य सरकार ने बांसवाड़ा शहर के विकास के लिए मास्टर प्लान के जरिए एक खाका तैयार किया है. जिसमें सड़क, बाजार, सार्वजनिक जगहों के अलावा प्रमुख तालाबों को शहर के प्रमुख पिकनिक प्वाइंट के रूप में उभारने की योजना शामिल है. लेकिन तालाबों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए नगर परिषद की उम्मीद शायद ही परवान चढ़ पाए. शहर के तालाब पिछले कई सालों से अतिक्रमण की भेंट चढ़ रहे हैं.
शहर के प्रमुख तालाबों का क्षेत्रफल सिकुड़ता जा रहा है. शहर के राज तालाब का कैचमेंट एरिया लगभग खत्म हो गया है. नगर परिषद की लापरवाही के चलते तालाब के बीच तक अवैध मकान बने हुए हैं. तालाब की भूमि पर कब्जे का सिलसिला लगातार जारी है. जिसके चलते तालाब में पानी की आवक कम हो रही है. बरसात का पानी जगह-जगह रुक जाता है. हल्की बारिश में ही कच्ची बस्तियों में पानी भर जाता है.
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तालाबों के वास्तविक क्षेत्रफल की नहीं है प्रशासन को जानकारी
नगर परिषद की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकों तालाबों के वास्तविक रकबा (क्षेत्रफल) का भी नहीं पता है. तालाबों की भूमि का सीमांकन नहीं होने का फायदा भूमाफिया जमकर उठा रहे हैं. नगर परिषद ने वास्तविक क्षेत्रफल का पता लगाने के लिए जिला कलेक्टर के पास अर्जी लगाई है. जिसमें प्रशासन से गुहार लगाई गई है कि तालाबों के वास्तविक क्षेत्रफल से अवगत कराया जाए.
तालाबों में आ रहा है गंदा पानी
सामाजिक कार्यकर्ता और एक्टिविस्ट गोपी राम अग्रवाल ने बताया कि नगर परिषद ने सीवरेज लाइन को अभी तक शुरू नहीं किया है. जिसके चलते शहर का गंदा पानी तालाबों में आ रहा है. भूमाफिया लगातार तालाब की भूमि का भराव करवा रहे हैं. तालाबों में गंदा पानी इकट्ठा होने से इको सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. जिसके चलते जलीय जीव खत्म हो रहे हैं.
कुपड़ा तालाब की 14 बीघा जमीन घटाई
गोपी राम ने आरोप लगाया कि नगर नियोजक ने भूमाफिया के साथ मिलकर कुपड़ा तालाब की 14 बीघा जमीन को आबादी में रूपांतरण कर दिया. जिसके बाद तालाब की भूमि 140 बीघा से घटकर 126 बीघा ही रह गई है. जिसको लेकर एसीबी और भू संरक्षक शाखा में केस चल रहा है. लेकिन अभी तक विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
मास्टर प्लान को भूला प्रशासन
राज्य सरकार ने प्रदेश के साथ-साथ बांसवाड़ा शहर के लिए भी 2031 तक का मास्टर प्लान मंजूर किया था. लेकिन 2011 के बाद से नगर परिषद ने मास्टर प्लान के रोडमैप को भूल गया है. मास्टर प्लान में शहर के नैसर्गिक सौंदर्य को बढ़ाने के लिए डायलॉब, राज तालाब और नाथे तालाब के डेवलपमेंट का भी प्रावधान रखा था. लेकिन राज तालाब और नाथे तालाब का बड़ा हिस्सा भूमाफिया की चपेट में आ गया. तालाब का पूरा क्षेत्र बस्ती क्षेत्र के बीच आ गया है. जबकि पुराने नक्शे में तालाब 3 ओर से खुला हुआ था. इसका कैचमेंट एरिया पूरी तरह से अवरुद्ध हो गया है. तालाब की भूमि पर को बसावट के रूपांतरण की मंजूरी कैसे मिल गई. इसको लेकर नगर परिषद के राजस्व शाखा पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
तालाबों के बारे में नगर परिषद के सभापति जैनेंद्र त्रिवेदी का कहना है कि मास्टर प्लान के अनुसार शहर के विकास के साथ-साथ तीनों प्रमुख तालाबों के विकास का भी प्रोजेक्ट तैयार कर दिया गया है. इन तालाबों की सीमा को लेकर जिला कलेक्टर को पत्र भेजा गया है. राजस्व शाखा के कार्मिकों के जरिए तालाबों के वास्तविक क्षेत्रफल का सीमांकन करवाकर बाउंड्री वॉल बनवाई जाएगी. जिससे की भविष्य में किसी प्रकार का अतिक्रमण तालाबों की भूमि पर ना हो.