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50 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश तैयार कर रहा केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, 26 हो चुके प्रकाशित - Banswara News

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की ओर से हिन्दी के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं के संरक्षण का भी प्रयास किया जा रहा है. इसी के तहत संस्थान की ओर से 50 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं.

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Published : Aug 11, 2019, 7:40 PM IST

बांसवाड़ा. केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा हिंदी के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं के संरक्षण में भी जुटा है. संस्थान पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय भाषाओं को लेकर विशेष सक्रिय है. 50 जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं और 26 कोष प्रकाशित किए जा चुके हैं. संस्थान के निदेशक प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी.

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा तैयर कर रहा 50 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश

गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा द्वारा जनजाति लोक संस्कृति एवं साहित्य विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आए प्रो. पांडेय ने ईटीवी भारत के एक सवाल पर कहा कि संस्थान भारतीय भाषाओं पर निरंतर काम कर रहा है. अरुणाचल प्रदेश की 8 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश प्रकाशित किए जा चुके हैं.

यह भी पढ़ें : हां, मैं भगवान श्रीराम की वंशज हूं, हमारी दिली तमन्ना है कि अयोध्या में बने भव्य मंदिर : सांसद दीया कुमारी

वहीं आसपास के अन्य जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं. एक सवाल पर शब्दावली आयोग के कामकाज को संभाल चुके पांडेय ने कहा कि जनजाति भाषा को कोई खतरा नहीं है. इसे बोलने वालों की संख्या कम नहीं हुई है. वर्तमान में यह वर्ग अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.

यह भी पढ़ें : डूडी को लेकर RCA में घमासान शुरू, कांग्रेस के दो 'दिग्गज' आमने-सामने

देश के जाने माने हिंदी विशेषज्ञ प्रो. पांडेय ने कहा कि अशिक्षा के बावजूद वस्तुत भारतीय संस्कृति कोई है तो जनजाति संस्कृति है. उनका कहना रहा कि प्रकृति और जनजीवन का संरक्षण जनजाति वर्ग ही करता आया है. साइंस एंड टेक्नोलॉजी में हिंदी शब्दावली संबंधी सवाल पर हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक ने कहा कि हमारा ध्यान 5 फीसदी एनसीआरटी और अंग्रेजीदा लोगों पर है. 90 फीसदी लोग हिंदी या भारतीय भाषाओं का उपयोग करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश हम अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.

बांसवाड़ा. केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा हिंदी के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं के संरक्षण में भी जुटा है. संस्थान पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय भाषाओं को लेकर विशेष सक्रिय है. 50 जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं और 26 कोष प्रकाशित किए जा चुके हैं. संस्थान के निदेशक प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी.

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा तैयर कर रहा 50 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश

गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा द्वारा जनजाति लोक संस्कृति एवं साहित्य विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आए प्रो. पांडेय ने ईटीवी भारत के एक सवाल पर कहा कि संस्थान भारतीय भाषाओं पर निरंतर काम कर रहा है. अरुणाचल प्रदेश की 8 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश प्रकाशित किए जा चुके हैं.

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वहीं आसपास के अन्य जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं. एक सवाल पर शब्दावली आयोग के कामकाज को संभाल चुके पांडेय ने कहा कि जनजाति भाषा को कोई खतरा नहीं है. इसे बोलने वालों की संख्या कम नहीं हुई है. वर्तमान में यह वर्ग अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.

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देश के जाने माने हिंदी विशेषज्ञ प्रो. पांडेय ने कहा कि अशिक्षा के बावजूद वस्तुत भारतीय संस्कृति कोई है तो जनजाति संस्कृति है. उनका कहना रहा कि प्रकृति और जनजीवन का संरक्षण जनजाति वर्ग ही करता आया है. साइंस एंड टेक्नोलॉजी में हिंदी शब्दावली संबंधी सवाल पर हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक ने कहा कि हमारा ध्यान 5 फीसदी एनसीआरटी और अंग्रेजीदा लोगों पर है. 90 फीसदी लोग हिंदी या भारतीय भाषाओं का उपयोग करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश हम अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.

Intro:बांसवाड़ाl केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा हिंदी के साथ साथ जनजातीय भाषाओं के संरक्षण मैं भी जुटा हैl संस्थान पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय भाषाओं को लेकर विशेष सक्रिय हैl 50 जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं और 26 प्रकाशित की जा चुके हैंl संस्थान के निदेशक प्रोफेसर नंद किशोर पांडेय ने ईटीवी भारत से विशेष मुलाकात में यह जानकारी दीl


Body:गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा द्वारा जनजाति लोक संस्कृति एवं साहित्य विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आए प्रोफेसर पांडेय ने ईटीवी भारत के एक सवाल पर कहा कि संस्थान भारतीय भाषाओं पर निरंतर काम कर रहा हैl अरुणाचल प्रदेश की 8 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश प्रकाशित किए जा चुके हैं वही आसपास के अन्य जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैंl एक सवाल पर शब्दावली आयोग के कामकाज को संभाल चुके पांडेय ने कहा कि जनजाति भाषा को कोई खतरा नहीं हैl इसे बोलने वालों की संख्या कम नहीं हुई हैl वर्तमान में यह वर्ग अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व इस संकट से जूझ रहा हैl जनजाति लोग निरंतर धर्मांतरित होते जा रहे हैl इसी प्रकार धर्मांतरण का दुष्चक्र


Conclusion:चलता रहा तो वे किस प्रकार अपनी संस्कृति और भाषा का संरक्षण कर पाएंगेl यह बड़ी समस्या है जिसे लेखन और विचार में लाया जाना आवश्यक हैl देश के जाने माने हिंदी विशेषज्ञ प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि अशिक्षा के बावजूद वस्तुत भारतीय संस्कृति कोई है तो जनजाति संस्कृति हैl जनजाति संस्कृति भारतीय संस्कृति का वत्स हैl प्रकृति और जनजीवन का संरक्षण जनजाति वर्ग ही करता आया हैl साइंस एंड टेक्नोलॉजी मैं हिंदी शब्दावली संबंधी सवाल पर हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक ने कहा कि हमारा ध्यान 5% एनसीआरटी और अंग्रेजीदा लोगों पर हैl 90% लोग हिंदी या भारतीय भाषाओं का उपयोग करते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश हम अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।

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