अलवर. मैला ढोने वाली ऊषा को पद्मश्री मिलना अलवर के लिए गर्व की बात है. अलवर में आज तक किसी महिला को पद्मश्री अवार्ड से नहीं नवाजा गया है. उनके जीवन में हुए इस बदलाव के पीछे सुलभ इंटरनेशनल संस्था का अहम रोल रहा.
10 मिनट का संवाद और बदल गई जिंदगी....
ऊषा चौमर 2003 तक मैला ढोने का काम कर रहीं थीं. इसी दौरान उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के संचालक मिले. उस दिन 10 मिनट के हुए संवाद के बाद ऊषा चौमर की जिंदगी बदल गई. उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल संचालक के कहने पर मैला ढोने का काम छोड़ा और हाथ से सामान बना कर उसे बाजार में बेचना शुरू किया.
ऊषा ने कहा, कि "मैला ढेना सबसे गंदा काम होता है. किसी भी महिला और व्यक्ति को यह काम नहीं करना चाहिए और ना कोई इंसान अपनी इच्छा से इस काम को करना चाहता है. इस काम को करने वाले लोगों को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है".