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आखिर कैसे बदली ऊषा चौमर की जिंदगी...जानिए उन्हीं की जुबानी

अलवर में मैला ढोने वाली ऊषा चौमर को पद्मश्री देने की घोषणा के बाद बधाई देने वालों का तांता लग गया है. ऊषा चौमर ने ईटीवी भारत से अपनी जिंदगी में हुए बदलाव के पीछे की कहानी को साझा किया.

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सफर फर्श से अर्श तक का
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Published : Jan 27, 2020, 1:17 PM IST

Updated : Jan 27, 2020, 6:13 PM IST

अलवर. मैला ढोने वाली ऊषा को पद्मश्री मिलना अलवर के लिए गर्व की बात है. अलवर में आज तक किसी महिला को पद्मश्री अवार्ड से नहीं नवाजा गया है. उनके जीवन में हुए इस बदलाव के पीछे सुलभ इंटरनेशनल संस्था का अहम रोल रहा.

सफर फर्श से अर्श तक का

10 मिनट का संवाद और बदल गई जिंदगी....

ऊषा चौमर 2003 तक मैला ढोने का काम कर रहीं थीं. इसी दौरान उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के संचालक मिले. उस दिन 10 मिनट के हुए संवाद के बाद ऊषा चौमर की जिंदगी बदल गई. उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल संचालक के कहने पर मैला ढोने का काम छोड़ा और हाथ से सामान बना कर उसे बाजार में बेचना शुरू किया.

पढ़ें. Special : पीएम को राखी बांध चुकीं ऊषा चौमर ने की तारीफ, "स्वच्छता की बात करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री"

ऊषा ने कहा, कि "मैला ढेना सबसे गंदा काम होता है. किसी भी महिला और व्यक्ति को यह काम नहीं करना चाहिए और ना कोई इंसान अपनी इच्छा से इस काम को करना चाहता है. इस काम को करने वाले लोगों को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है".

अलवर. मैला ढोने वाली ऊषा को पद्मश्री मिलना अलवर के लिए गर्व की बात है. अलवर में आज तक किसी महिला को पद्मश्री अवार्ड से नहीं नवाजा गया है. उनके जीवन में हुए इस बदलाव के पीछे सुलभ इंटरनेशनल संस्था का अहम रोल रहा.

सफर फर्श से अर्श तक का

10 मिनट का संवाद और बदल गई जिंदगी....

ऊषा चौमर 2003 तक मैला ढोने का काम कर रहीं थीं. इसी दौरान उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के संचालक मिले. उस दिन 10 मिनट के हुए संवाद के बाद ऊषा चौमर की जिंदगी बदल गई. उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल संचालक के कहने पर मैला ढोने का काम छोड़ा और हाथ से सामान बना कर उसे बाजार में बेचना शुरू किया.

पढ़ें. Special : पीएम को राखी बांध चुकीं ऊषा चौमर ने की तारीफ, "स्वच्छता की बात करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री"

ऊषा ने कहा, कि "मैला ढेना सबसे गंदा काम होता है. किसी भी महिला और व्यक्ति को यह काम नहीं करना चाहिए और ना कोई इंसान अपनी इच्छा से इस काम को करना चाहता है. इस काम को करने वाले लोगों को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है".

Intro:अलवर
अलवर में मैला ढोने वाली उषा चौमर को पद्मश्री के लिए उनके नाम की घोषणा होने के बाद उनके रिश्तेदार व परिजनों द्वारा बधाई देने का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन आखिर उनको पद्मश्री क्यों दिया जा रहा है व पद्मश्री का सफर उनका कैसा रहा। उषा ने अपना सफर ईटीवी भारत के साथ साझा किया।


Body:अलवर में मैला ढोने वाली उषा सोमवार को पद्मश्री मिलना अलवर के लिए गर्व की बात है। क्योंकि अलवर में आज तक किसी महिला को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा नहीं गया है। उषा चौमर ने 2003 में मैला ढोने का काम छोड़ा व हाथ से सामान बनाकर उनको बेच कर अपना जीवन यापन शुरू किया। उनके जीवन में हुए इस बदलाव के पीछे सुलभ इंटरनेशनल संस्था का अहम रोल रहा। ऐसे में उनके जीवन में यह बदलाव कैसे हुआ व इस बदलाव के बाद उनका जीवन कैसा है। इसके बारे में उसे चौहान ने ईटीवी भारत से अपना जीवन साझा किया। उसने कहा कि वो प्रतिदिन की तरह एक दिन शौचालय साफ करके जा रही थी। इसी दौरान रास्ते में उन्हें सुलभ इंटरनेशनल के संचालक मिले। उन्होंने कहा कि तुम यह काम क्यों करती हो। उस दिन 10 मिनट के हुए संवाद के बाद उषा चौमर की जिंदगी बदल गई। उन्होंने मैला ढोने का काम छोड़ा व अपना नया जीवन शुरू किया।


Conclusion:उषा ने कहा कि मेला लाडपुरा सबसे गंदा काम होता है। किसी भी महिला व व्यक्ति को यह काम नहीं करना चाहिए। इस काम को करने वाले लोगों को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है। वैसे तो तमाम टीवी चैनल व सोशल मीडिया के माध्यम से उषा चौहान के बारे में बताया जा रहा है व पद्मश्री से जुड़ी हुई जानकारी दी जा रही है। लेकिन पहली बार उषा ने ईटीवी भारत से अपने जीवन के अहम पल साझा किए।



बाइट- उषा चौमर
Last Updated : Jan 27, 2020, 6:13 PM IST
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