अजमेर. दुनियाभर में टीबी के रोगियों में 25 फीसदी रोगी भारत में पाए जाते हैं. भारत में प्रति 1 लाख व्यक्तियों में 210 लोग टीबी के रोगी हैं. आज यानी 24 मार्च को पूरी दुनिया विश्व क्षय रोग दिवस के रूप में मनाती है. ताकि टीबी के बारे में लोग जागरूक किया जा सके. भारत सरकार ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए कई कार्यक्रम भी सरकार की ओर से चलाए जा रहे है. इसके लिए जरूरी है कि टीबी के प्रति लोग जागरूक बने एवं इसके खात्मे के लिए जनसहभागिता भी बढ़े.
टीबी ( tuberculosis ) एक संक्रमित बीमारी है. यह ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु के कारण होती है. इस बीमारी को क्षय रोग भी कहा जाता है. टीबी का रोग अब लाइलाज बीमारी नहीं है. बल्कि सही समय पर जांच और उपचार पूरा लेने पर रोगी टीबी मुक्त हो सकता है. लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से ही यह दिवस मनाया जाता है. बताया जाता है कि इसी दिन 24 मार्च 1882 को डॉ रॉबर्ट कोच ने माइक्रो बैक्टीरियल ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया की खोज की थी. उनकी यह खोज टीबी के मरीजों के लिए वरदान साबित हुई. इस कारण सन 1905 में डॉ रॉबर्ट कोच को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था. हर वर्ष विश्व क्षय दिवस पर अलग-अलग थीम निर्धारित की जाती है. इस साल की थीम है "यस वी कैन एंड टीबी" है. डब्ल्यूएचओ ने टीबी को खत्म करने का लक्ष्य 2030 तक रखा है. जबकि केंद्र सरकार ने टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य सन 2025 तक रखा है. डब्ल्यूएचओ और केंद्र सरकार ने टीबी की रोकथाम और जागरूकता के लिए कई कार्यक्रम चला रखें है. भारत में टीबी का इलाज dot (डायरेक्टली ऑब्जर्व ट्रीटमेंट) कार्यक्रम के तहत सभी सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर रोगियों को निशुल्क मिलता है. इसमें विश्व स्तरीय जांच और दवा रोगी को स्वास्थ्य कर्मियों के माध्यम से उपलब्ध करायी जाती है.
टीबी रोग के कारण
टीबी रोग संक्रमित बीमारी है माइक्रोबैक्टीरियल ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है. इससे व्यक्ति टीबी रोग से ग्रसित होता है. अजमेर में राजकीय कमला नेहरू अस्पताल में वरिष्ठ आचार्य डॉ रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि रोग प्रतिरोधक क्षमता जिन लोगों में कम होती है उनमें टीबी होने की संभावना ज्यादा रहती है. कुपोषण से ग्रसित लोगों में भी टीबी ज्यादा पाई जाती है. इसके अलावा गंभीर बीमारियां जैसे कैंसर, सिलिकोसिस, एचआईवी, डायबिटीज एवं गर्भवती महिलाओं को ज्यादा सजग रहने की जरूरत होती है. डॉक्टर दीक्षित बताते हैं कि गर्भवती महिला यदि टीबी से ग्रसित है और वह समय पर इलाज लेती है तो उसके गर्भ में पलने वाले शिशु को भी टीबी रोग से बचाया जा सकता है. यदि किसी घर में एक टीबी का रोगी है तो अन्य सदस्यों को भी टीबी होने की संभावना रहती है. इसलिए टीबी रोगी के परिजनों को भी प्रीवेंटिव दवाइयां दी जाती है.
80 प्रतिशत रोगियों के फेफड़ों में और 20 प्रतिशत केस में अन्य अंगों में मिलती है टीबी
डॉ रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि 80 फीसदी लोगों में टीबी फेफड़ों में पाई जाती है. जबकि 20 फ़ीसदी लोगों में टीबी शरीर के अन्य अंगों जैसे आंते, रीड की हड्डी, पसलियो में पानी भरना, मस्तिष्क में इंफेक्शन, गुर्दे में इन्फेक्शन में भी संक्रमण पाया जाता है. इसके अलावा महिलाओं में संतान हीनता का प्रमुख कारण भी टीबी है. इसमें एक गर्भाशय की नली ब्लॉक हो जाती है. सही समय पर उपचार और पूर्ण रूप से दवा लेने पर रोगी ठीक हो जाता है. यदि रोगी की अवस्था गंभीर होती है तो संक्रमित अंग की सर्जरी भी होती है. सबसे आवश्यक है कि मरीज को दवा का कोर्स बिना किसी गैप के पुरी लेनी चाहिए.
ऐसे करें बचाव
डॉ दीक्षित बताते हैं कि टीबी के संक्रमण से बचने के लिए आवश्यक है कि भीड़भाड़ वाले स्थान पर मास्क जरूर लगाएं. टीबी के रोगी खांसते समय मुंह पर कपड़ा जरूर लगाएं. आपने देखा कि कोरोना काल मे टीबी संक्रमण की दरों में काफी कमी आई. इसका प्रमुख कारण कोरोना काल में लोगों ने मास्क का उपयोग किया. उन्होंने बताया कि रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छा खानपान और व्यायाम आवश्यक है. वरिष्ठ आचार्य डॉ रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि टीबी मुक्त भारत अभियान देश में जारी है. प्रधानमंत्री ग्राम पंचायत अभियान भी चल रहा है. इस योजना के तहत टीबी के रोगी को पौष्टिक आहार के लिए प्रतिमाह 500 रुपए बैंक खाते में स्थानांतरित किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि अच्छी डाइट और समय पर उपचार से टीबी को हराया जा सकता है.