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Special : सर्दी के घी पर महंगाई का सितम...अब तक के सर्वाधिक स्तर पर दाम

सर्दी का घी कहे जाने वाला तिल का तेल अब लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है. इस बार तिल के तेल के भाव में 60 से 80 रुपए तक की बढ़ोतरी हुई है जो कि अपने सर्वाधिक स्तर पर है. लोग सर्दी के मौसम में तिल का तेल तो खरीद रहे हैं, लेकिन अब मन को मारते हुए मात्रा कम करनी पड़ रही है.

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Published : Dec 13, 2022, 9:21 PM IST

Sesame Oil Becomes Costly
सर्दी के घी पर महंगाई का सितम...
सर्दी के घी पर महंगाई का सितम...

अजमेर. सर्दी का घी कहे जाने वाला तिल का तेल अब लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है. राजस्थान के खान पान में घी का उपयोग काफी होता है. गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोग देशी घी खरीद नहीं पाते हैं. ऐसे में लोग सर्दी के व्यंजन में घी की जगह (Sesame Oil Becomes Costly) तिल का तेल इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इस बार तिल के तेल के भाव अब तक के सर्वाधिक स्तर पर हैं. तिल का तेल महंगा होने पर भी लोग सर्दी के कारण खरीद रहे हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें मन मारना पड़ रहा है.

सर्दी में तिल का उपयोग काफी होता है. वहीं, तिल के तेल की डिमांड भी काफी रहती है. तिल स्वास्थ के लिए अच्छा माना जाता है. सर्दी के दिनों में राजस्थानी में खान-पान में तिल के तेल का उपयोग (Sesame Oil Used in Rajasthan) अधिक होता है. यही वजह है कि सर्दी के मौसम में तिल के तेल की डिमांड काफी बढ़ जाती है. खासकर लोग घाणी से निकला तिल का तेल पसंद करते हैं. बाजार में मिलने वाला रिफाइंड और फिल्टर तेल का उपयोग कम ही किया जाता है. यही वजह है कि गांव ढाणियों में ही नहीं शहर में भी घाणीयां सर्दी के मौसम में संचालित होती हैं.

Sesame Oil Becomes Costly
तिल का तेल हुआ महंगा...

सर्द मौसम में घाणी से निकले तेल की खुशबू लोगों को आकर्षित करती है, लेकिन भाव सुनते ही लोगों झटका लगता है. इस बार तिल के भाव मे इजाफा नही हुआ है, लेकिन घाणी संचालन करने वालों ने तिल के तेल के दाम बढ़ा दिए हैं. गत वर्ष की तुलना में तिल के तेल का दाम प्रति किलो 60 से 80 रुपए ज्यादा बढ़ गया है. जो अब तक के सर्वाधिक स्तर पर है. लोगों की मानें तो सर्दी का मौसम है, इसलिए तिल्ली का तेल खरीदना भी जरूरी है. सर्दी के कई परंपरागत व्यंजन तिल के तेल के बिना अच्छे नहीं लगते.

ग्राहक बोले सर्दी है खरीदेंगे, लेकिन कमः ग्राहक रजनी शर्मा ने बताया कि तिल का तेल सर्दियों में काफी पसंद किया जाता है. तेल महंगा हो गया है, लेकिन क्या करें, खरीदना पड़ेगा. 1 किलो तेल खरीदने की बजाए आधा किलो तिल का तेल खरीदा है. ग्राहक गंगा सिंह गुर्जर बताते हैं कि तिल का तेल के भाव आसमां छू रहे हैं. तिल के तेल को गरीब का घी कहा जाता है, लेकिन अब तिल का तेल गरीब की पहुंच से बाहर हो रहा है. उन्होंने बताया कि सर्दी के सीजन में जितना तेल पहले घाणी से लिया जाता था अब उसका आधा लेकर काम चला रहे हैं.

इन व्यंजन में होता है उपयोगः हर राजस्थानी के घर में सर्द मौसम में बाजरे, मक्का की रोटी, बाजरे और मक्का का खीचड़ा, अनेक प्रकार के लड्डू समेत कई व्यंजन बनते हैं. सक्षम लोग इन व्यंजनों में देशी घी का इस्तेमाल करते हैं. वहीं, ज्यादात्तर लोग तिल का तेल का ही उपयोग करते हैं. तेल महंगा होने से सर्दी के सीजन में बनने वाले परंपरागत व्यंजनों पर भी इसका असर पड़ेगा. लोग अब जरूरत के हिसाब से नहीं मन रखने के हिसाब से तिल का तेल खरीद रहे हैं. सीजन में जहां एक परिवार में 3 से 5 किलो तिल का तेल खरीदा जाता था, अब यह खरीद आधी रह गई है.

पढ़ें : SPECIAL : 10 महीने में तीखी हुई तेल की 'धार'...प्रति टिन 800 रुपए तक महंगा हुआ खाद्य तेल

सर्वाधिक हुए भावः घाणी पर तिल्ली का तेल 360 से 400 रुपए किलो मिल रहा है. जबकि गत वर्ष 310 से 320 रुपए प्रति किलो के दाम थे. इस बार तिल के भाव में गत वर्ष की तुलना में तेजी नहीं है. दरअसल, खाद्य पदार्थो सहित बिजली और अन्य चीजों के भाव का असर घाणीयो पर भी पड़ रहा है. बाजार में तिल का भाव 150 से 160 रुपए प्रति किलो है. 10 किलो तिल में 4 से सवा चार किलो तेल का उत्पादन होता है. सभी खर्चे निकालने के बाद तेल की कीमत 360 से 400 रुपए प्रति किलो है.

सीजन का कारोबार हैः घाणी के तिल के तेल की मांग केवल सर्दियों में ही रहती है. गर्मियों में तिल के तेल का उत्पादन (Poor and Lower Middle Class People) नहीं होता और न ही इसकी खपत होती है. ऐसे में यह सीजन का कारोबार है. रिफाइंड और फिल्टर तेल की फैक्ट्रियों के मुकाबले घाणीया अब काफी कम रह गई हैं. गांव ढाणियों में और शहर के पुराने क्षेत्रों में तेल की ढाणियां बची हैं. लेकिन उन्हें संचालित करना इतना आसान नहीं है. मेहनत के साथ प्रतिस्पर्धा भी है.

सर्दियों के सीजन में भीलवाड़ा से अजमेर आकर घाणी का संचालन करने वाले रामचंद्र बताते हैं कि बेल के जरिए घाणी चलाई जाती है. इसमें काफी मेहनत लगती है. तिल का भाव ज्यादा है. वही खर्चे भी अधिक है. बेल को चारा, खुद का खर्च अलग से है. इसलिए तिल के तेल का भाव अधिक है. घाणी संचालक मंगल साहू बताते है कि तिल का तेल स्वास्थ्य की दृष्ठि से बेहत्तर माना जाता है. परंपरागत सर्दी के व्यजनों में तिल के तेल का उपयोग होता आया है. सर्दी में तेल की डिमांड रहती है. उन्होंने बताया कि तिल महंगे होने से उसका असर तेल पर भी पड़ा है. आगे भी तिल के दाम बढ़ेंगे तो तेल 400 रुपये प्रति किलो के पार होगा.

सर्दी के घी पर महंगाई का सितम...

अजमेर. सर्दी का घी कहे जाने वाला तिल का तेल अब लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है. राजस्थान के खान पान में घी का उपयोग काफी होता है. गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोग देशी घी खरीद नहीं पाते हैं. ऐसे में लोग सर्दी के व्यंजन में घी की जगह (Sesame Oil Becomes Costly) तिल का तेल इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इस बार तिल के तेल के भाव अब तक के सर्वाधिक स्तर पर हैं. तिल का तेल महंगा होने पर भी लोग सर्दी के कारण खरीद रहे हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें मन मारना पड़ रहा है.

सर्दी में तिल का उपयोग काफी होता है. वहीं, तिल के तेल की डिमांड भी काफी रहती है. तिल स्वास्थ के लिए अच्छा माना जाता है. सर्दी के दिनों में राजस्थानी में खान-पान में तिल के तेल का उपयोग (Sesame Oil Used in Rajasthan) अधिक होता है. यही वजह है कि सर्दी के मौसम में तिल के तेल की डिमांड काफी बढ़ जाती है. खासकर लोग घाणी से निकला तिल का तेल पसंद करते हैं. बाजार में मिलने वाला रिफाइंड और फिल्टर तेल का उपयोग कम ही किया जाता है. यही वजह है कि गांव ढाणियों में ही नहीं शहर में भी घाणीयां सर्दी के मौसम में संचालित होती हैं.

Sesame Oil Becomes Costly
तिल का तेल हुआ महंगा...

सर्द मौसम में घाणी से निकले तेल की खुशबू लोगों को आकर्षित करती है, लेकिन भाव सुनते ही लोगों झटका लगता है. इस बार तिल के भाव मे इजाफा नही हुआ है, लेकिन घाणी संचालन करने वालों ने तिल के तेल के दाम बढ़ा दिए हैं. गत वर्ष की तुलना में तिल के तेल का दाम प्रति किलो 60 से 80 रुपए ज्यादा बढ़ गया है. जो अब तक के सर्वाधिक स्तर पर है. लोगों की मानें तो सर्दी का मौसम है, इसलिए तिल्ली का तेल खरीदना भी जरूरी है. सर्दी के कई परंपरागत व्यंजन तिल के तेल के बिना अच्छे नहीं लगते.

ग्राहक बोले सर्दी है खरीदेंगे, लेकिन कमः ग्राहक रजनी शर्मा ने बताया कि तिल का तेल सर्दियों में काफी पसंद किया जाता है. तेल महंगा हो गया है, लेकिन क्या करें, खरीदना पड़ेगा. 1 किलो तेल खरीदने की बजाए आधा किलो तिल का तेल खरीदा है. ग्राहक गंगा सिंह गुर्जर बताते हैं कि तिल का तेल के भाव आसमां छू रहे हैं. तिल के तेल को गरीब का घी कहा जाता है, लेकिन अब तिल का तेल गरीब की पहुंच से बाहर हो रहा है. उन्होंने बताया कि सर्दी के सीजन में जितना तेल पहले घाणी से लिया जाता था अब उसका आधा लेकर काम चला रहे हैं.

इन व्यंजन में होता है उपयोगः हर राजस्थानी के घर में सर्द मौसम में बाजरे, मक्का की रोटी, बाजरे और मक्का का खीचड़ा, अनेक प्रकार के लड्डू समेत कई व्यंजन बनते हैं. सक्षम लोग इन व्यंजनों में देशी घी का इस्तेमाल करते हैं. वहीं, ज्यादात्तर लोग तिल का तेल का ही उपयोग करते हैं. तेल महंगा होने से सर्दी के सीजन में बनने वाले परंपरागत व्यंजनों पर भी इसका असर पड़ेगा. लोग अब जरूरत के हिसाब से नहीं मन रखने के हिसाब से तिल का तेल खरीद रहे हैं. सीजन में जहां एक परिवार में 3 से 5 किलो तिल का तेल खरीदा जाता था, अब यह खरीद आधी रह गई है.

पढ़ें : SPECIAL : 10 महीने में तीखी हुई तेल की 'धार'...प्रति टिन 800 रुपए तक महंगा हुआ खाद्य तेल

सर्वाधिक हुए भावः घाणी पर तिल्ली का तेल 360 से 400 रुपए किलो मिल रहा है. जबकि गत वर्ष 310 से 320 रुपए प्रति किलो के दाम थे. इस बार तिल के भाव में गत वर्ष की तुलना में तेजी नहीं है. दरअसल, खाद्य पदार्थो सहित बिजली और अन्य चीजों के भाव का असर घाणीयो पर भी पड़ रहा है. बाजार में तिल का भाव 150 से 160 रुपए प्रति किलो है. 10 किलो तिल में 4 से सवा चार किलो तेल का उत्पादन होता है. सभी खर्चे निकालने के बाद तेल की कीमत 360 से 400 रुपए प्रति किलो है.

सीजन का कारोबार हैः घाणी के तिल के तेल की मांग केवल सर्दियों में ही रहती है. गर्मियों में तिल के तेल का उत्पादन (Poor and Lower Middle Class People) नहीं होता और न ही इसकी खपत होती है. ऐसे में यह सीजन का कारोबार है. रिफाइंड और फिल्टर तेल की फैक्ट्रियों के मुकाबले घाणीया अब काफी कम रह गई हैं. गांव ढाणियों में और शहर के पुराने क्षेत्रों में तेल की ढाणियां बची हैं. लेकिन उन्हें संचालित करना इतना आसान नहीं है. मेहनत के साथ प्रतिस्पर्धा भी है.

सर्दियों के सीजन में भीलवाड़ा से अजमेर आकर घाणी का संचालन करने वाले रामचंद्र बताते हैं कि बेल के जरिए घाणी चलाई जाती है. इसमें काफी मेहनत लगती है. तिल का भाव ज्यादा है. वही खर्चे भी अधिक है. बेल को चारा, खुद का खर्च अलग से है. इसलिए तिल के तेल का भाव अधिक है. घाणी संचालक मंगल साहू बताते है कि तिल का तेल स्वास्थ्य की दृष्ठि से बेहत्तर माना जाता है. परंपरागत सर्दी के व्यजनों में तिल के तेल का उपयोग होता आया है. सर्दी में तेल की डिमांड रहती है. उन्होंने बताया कि तिल महंगे होने से उसका असर तेल पर भी पड़ा है. आगे भी तिल के दाम बढ़ेंगे तो तेल 400 रुपये प्रति किलो के पार होगा.

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