पुष्कर (अजमेर). भारत की सनातन वैदिक हिंदू परंपराओं के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व अपना विशेष महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण में आ जाता है और इसके साथ ही एक माह से चल रहे मल मास का समापन और शुभ कार्य की शुरुआत भी हो जाती है. सूर्य उत्तरायण होने पर धार्मिक स्थलों में जमकर दान पुण्य होता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं.
मकर संक्रांति पर्व को उत्तरांचल-कुमाऊँ क्षेत्र में उत्तरायणी भी कहते हैं. तीर्थ नगरी पुष्कर में मकर संक्रांति के पर्व से पूर्व ही कस्बे भर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान और तिल से बनी वस्तुओं के दान का सिलसिला जारी है. कस्बे के प्रसिद्ध ज्योतिष वेद पंडित कैलाश नाथ दाधीच ने बताया कि मकर संक्रांति पर्व पंच ग्रहों का पर्व पिता पुत्र का मिलन शनि एवं सूर्य का द्वितीया का चंद्रमा का महान पर्व 14 जनवरी सन 2021 पोस् शुक्ला प्रतिपदा को प्रातः 8:13 से सूर्य ग्रह धनु राशि से मकर में प्रवेश करेंगे.
पढे़ं: वसुंधरा राजे को नजरअंदाज किया तो भाजपा की दुर्गति होगी: परसादी लाल मीणा
इस दिन दान पुण्य हवन का श्रेष्ठ योग वर्षों के बाद बन रहा है.इस दिन 5 ग्रहों की विशेष युक्ति रहेगी. जिसमें शनि, सूर्य, बुध, गुरु, चंद्र आपस में मिलकर श्रेष्ठ योग बना रहे हैं. इस दिन धर्मराज जी का पूजन उद्यापन हवन पूजन दान पुण्य का विशेष महत्व रहता है. वर्ष में एक बार इस विशेष पूजा से मनुष्य कर्म बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति को अग्रसर होता है. सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु एवं यशस्वी जीवन की कामना के लिए 13 वस्तुओं का दान करके भगवान सूर्य का पूजन करती हैं.
तीर्थ पुरोहित दिलीप शास्त्री ने बताया कि तीर्थ नगरी पुष्कर में सरोवर किनारे मकर सक्रांति के अवसर पर तर्पण, श्राद्ध, उपनयन संस्कार, दान पुण्य, पूजा अर्चना का कोटि गुना फल प्राप्त होता है. शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन गंगा सागर, वाराणसी, त्रिवेणी संगम, हरिद्वार, पुष्कर, उज्जैन की शिप्रा, लोहाग्रल आदि तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था. इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी. साथ ही महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था. इन्हीं मान्यताओं के अनुसार हजारों लोग आस्था का दामन थाम मकर संक्रांति के अवसर पर तीर्थ नगरी पुष्कर पहुंचेंगे.