अजमेर. भगवान कृष्ण के जन्मदिवस की तैयारी देश प्रदेश में जोर शोर से जारी है. भगवान कृष्ण के प्रदेश में कई प्राचीन मंदिर हैं. तीर्थ एवं पर्यटन नगरी अजमेर में भी जन्माष्टमी पर्व की तैयारियां जोरों पर है. अजमेर में पितांबर की गाल में भगवान श्रीनाथजी और नवनीत प्रिया की पवित्र बैठक के स्थान पर भी जन्माष्टमी की तैयारी की जा रही है.
त्रिदेव में से एक भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ही श्रीनाथजी है. सन 1727 में ब्रज से श्रीनाथजी की प्रतिमा को मेवाड़ लाया गया था. दरअसल उस समय मुगल शासक औरंगज़ेब के आदेश से हिंदू मंदिर और वहां रखी प्रतिमाओं को तोड़ा जा रहा था. अजमेर में पितांबर की गाल वही स्थान है जहां पर भगवान श्रीनाथजी के रथ का पहिया थम गया था. तब भगवान श्रीनाथजी ने इस स्थान पर ही 42 दिनों तक पड़ाव डाला था. यहां पर श्रीनाथ जी की बैठक आज भी मौजूद है. किशनगढ़ नसीराबाद हाईवे पर सिलोरा ग्राम पंचायत के पितांबरपुर गांव की पहाड़ी की तलहटी के बीच घने वन क्षेत्र में पीतांबर की गाल है. अजमेर से करीब 28 किलोमीटर और किशनगढ़ से 8 किलोमीटर दूरी पर है. यह स्थान भगवान श्रीनाथजी के 42 दिन के पड़ाव के कारण तीर्थस्थल बन गया है. मंदिर के चारों ओर घना जंगल है साथ ही जंगल में कदम और पारस पीपल के कई पेड़ भी हैं. श्रीनाथजी के यहां आगमन से पहले इस स्थान संत पीतांबर का आश्रम था. भगवान श्री कृष्ण को भक्त वात्सल्य माना जाता है. भक्तों के लिए वह कई लीलाएं करते है. यहां भगवान श्रीनाथ जी का पड़ाव भी उनके भक्त की सेवा लेने और उसे दर्शन देने के उद्देश्य से ही था.
भक्त को दर्शन देने के लिए श्रीनाथजी ने रथ का पहिया किया था जाम : मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेंद्र शर्मा बताते हैं कि सन 1727 में मुगल बादशाह औरंगजेब जब हिंदू मंदिरों पर हमला कर रहा था और मंदिरों से प्रतिमाओं को खंडित कर रहा था तब ब्रज से मेवाड़ श्रीनाथजी आए थे. इस बीच मार्ग में 11 जगह पर उनका पड़ाव रहा. उनमें से एक पड़ाव पितांबर की गाल में भी रहा. यहां श्रीनाथजी का सातवां पड़ाव रहा था. पंडित शर्मा ने बताया कि बसंत पंचमी से क्षेत्र प्रतिपदा तक श्रीनाथ जी यहीं रुके थे. इस बीच होली भी श्रीनाथजी ने यहीं खेली थी. उन्होंने बताया कि भगवान श्रीनाथजी भक्त वात्सलय है. जहां जहां भी उन्हें भक्तों से मिलना था वहां वहां उनका रथ थम गया. वैष्णव धर्म का पालन करने वाली क्षत्राणी गंगाबाई श्री कृष्ण की परम भक्त थी. पड़ावों के दौरान श्रीनाथजी केवल गंगाबाई से ही बातचीत किया करते थे. गंगाबाई ने श्रीनाथजी से रथ रोकने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि यहां कदम के पेड़ और जल का स्रोत भी है. इसके अलावा संत पीतांबर का आश्रम भी है. पीतांबर बाबा को दर्शन देने के उद्देश्य से ही श्रीनाथजी यहां रुके थे. इससे पहले श्रीनाथजी जतीपुरा, पुछड़ी का लोठा, सतगरा, आगरा, ग्वालियर, कोटा, पीताम्बर की गाल, जोधपुर, घसियार और उसके बाद नाथद्वारा में जाकर विराजित हुए.
दूर दूर से आते हैं श्रद्धालू : जन्माष्टमी पर्व की तैयारी की जोरों पर जारी है. भगवान श्री कृष्ण जन्म के दर्शन पितांबर की गाल में श्रीनाथजी की बैठक के स्थान पर होते हैं. जन्माष्टमी की रात्रि को बड़ी संख्या में लोग यहां कृष्ण जन्मोत्सव में शामिल होते हैं. उन्होंने बताया कि अजमेर और आसपास की जिले ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी भारी तादाद में श्रद्धालु यहां आते हैं. किशनगढ़ और नसीराबाद हाईवे के बीच सिलोरा ग्राम पंचायत से पहाड़ी और वन क्षेत्र में पितांबर की गाल धार्मिक स्थल के साथ-साथ रमणीक स्थल भी है. वन क्षेत्र से घिरा होने के कारण यहां लोग आम दिनों में कम आते हैं. हालांकि स्थानीय लोगों का यहां आना-जाना लगा रहता है. पितांबर की गाल के बारे में स्थानीय और आसपास के लोगों को जानकारी है, लेकिन लोगों को श्रीनाथजी की बैठक के बारे में कम ही पता है. यही वजह है कि प्रसिद्ध मंदिरों की तरह यहां श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं रहती है. यही वजह है कि यहां कि नैसर्गिक सुंदरता आज भी कायम है.
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मन को मिलती है शांति : श्रद्धालु हरीश ओजवानी बताते हैं कि पितांबर की गाल के बारे में काफी सुना था, लेकिन पहली बार यहां आने का मौका मिला है यह तीर्थ स्थल है. भगवान श्रीनाथजी की बैठक का पवित्र स्थान है. यहां पारस, पीपल और कदम के पेड़ है. चारों ओर घना जंगल है. यहां आकर मन को शांति मिलती है. यहां की सकारात्मक ऊर्जा को शब्दों में बताना मुश्किल है उसे यहां सिर्फ महसूस किया जा सकता है. मेरा मानना है कि व्यक्ति कितना भी परेशान क्यों न हो यदि वह यहां आता है तो निश्चित रूप से उसे सुकून मिलेगी. यह सिद्ध आध्यात्मिक स्थान है.