भरतपुर: प्रसिद्ध केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान, जो प्रवासी पक्षियों का स्वर्ग और विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता है, आज गंभीर समस्या से जूझ रहा है. यहां के तालाबों में एल्गी (काई) की बढ़ती परतों ने न केवल जलीय जीवन बल्कि प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है. एल्गी की वजह से कई जगह डार्टर पक्षियों ने बैठना बंद कर दिया है. साथ ही वाइल्डलाइफ फोटोग्राफरों को भी मायूस होना पड़ रहा है.
प्रकृति की सुंदरता को ग्रहण: केवलादेव मंदिर के पास स्थित तालाब, जिसे डार्टर पक्षियों का मुख्य आवास माना जाता है, अब हरे आवरण (एल्गी ) से ढका हुआ है. इस कारण डार्टर पक्षी, जो यहां बैठकर मछलियों का शिकार करते थे, अब यहां नहीं बैठ रहे. 34 वर्षों से मुंबई से घना आ रहे वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर हीरा पंजाबी ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि डार्टर पक्षियों की अनुपस्थिति ने न केवल पक्षी प्रेमियों को मायूस किया है, बल्कि यह उद्यान की प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़े कर रहा है. अन्यथा इस जलाशय पर वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर घंटों बैठकर पक्षियों का फोटो क्लिक करते थे.
घातक प्रभाव: गोवर्धन ड्रेन के प्रदूषित पानी के कारण तालाबों में एल्गी का असामान्य रूप से बढ़ना देखा जा रहा है. यह एल्गी पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा को कम करती है, जिससे मछलियों और जलीय वनस्पति पर संकट खड़ा हो जाता है. जलीय वनस्पति और मछलियां पक्षियों का भोजन है.
पढ़ें: अजमेर की ऐतिहासिक आनासागर झील बनी काई और दुर्गंध की पर्याय, पर्यटक परेशान - rajasthan news
घना निदेशक मानस सिंह ने इस स्थिति को सामान्य बताते हुए दावा किया कि एल्गी पक्षियों के लिए पौष्टिक आहार है. हालांकि, स्थानीय पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने इसे भ्रामक बताया है. उनका कहना है कि यह एल्गी प्राकृतिक नहीं, बल्कि रासायनिक और प्रदूषित है, जो पक्षियों और मछलियों के लिए घातक है. घना के तालाबों की इस दुर्दशा के लिए पर्यावरणविद उद्यान प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
पढ़ें: मारवाड़ जंक्शन की इस नदी में काई जमने से लोग हलकान, प्रशासन पर लापरवाही का आरोप
उनका कहना है कि प्रदूषित पानी की निकासी और तालाबों की सफाई को लेकर प्रशासन ने समय पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए. नतीजतन, तालाबों में एल्गी का खतरा विकराल रूप ले चुका है. हालांकि, प्रशासन ने अब सफाई अभियान शुरू कर दिया है. विशेष टीमों को तैनात किया गया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या तब तक हल नहीं होगी, जब तक गोवर्धन ड्रेन से आने वाले प्रदूषित पानी को स्थायी रूप से रोका नहीं जाता.