अजमेर. शहर के निकट काजीपुरा की पहाड़ियों के बीच श्री गंगा भैरव घाटी अब जल्द ही अजमेर के पर्यटन स्थलों में शामिल होगा. यहां लेपर्ड सफारी के लिए वन विभाग कार्य योजना तैयार कर रहा है. पर्यटन विभाग और प्रशासन मिलकर पर्यटन को बढ़ाने के लिए इस जगह को विकसित कर रहा है. यहां प्रकृति के अद्धभुत नजारों के साथ पर्यटकों को अजमेर के इतिहास से भी रूबरू होने का अवसर मिलेगा. इसके अलावा सफारी के माध्यम से लेपर्ड को खुले में देखने का रोमांचक अनुभव भी पर्यटकों को मिलेगा.
सरकार को भेजा गया प्रस्ताव : अजमेर जिला वन अधिकारी अभिमन्यु सारण ने बताया कि श्री गंगा भैरव घाटी पर लेपर्ड कंजर्वेशन प्रोजेक्ट का प्रपोजल सरकार को भेजा गया है. जिले में जहां भी पैंथर रेस्क्यू किए जाते थे, उन्हें ब्यावर या टॉडगढ़ के जंगलों में छोड़ा जाता था. सारण ने बताया कि यहां काफी वन क्षेत्र है. 3 हजार 927 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लेपर्ड कंजर्वेशन के लिए जो कार्य किए जा सकते हैं, इसे लेकर प्रस्ताव में जानकारी दी गई है. यह संगठित वन क्षेत्र है, जहां लेपर्ड विचरण कर सकते हैं. लेपर्ड कंजर्वेशन अजयमेरु के तहत प्रथम फेज के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. वन क्षेत्र में लेपर्ड के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना होगा. वन क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए प्रोटेक्शन दीवार बनानी पड़ेगी. साथ ही वन गार्ड के लिए चौकियां बनानी होंगी. यह प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है.
जंगल और पहाड़ का विहंगम दृश्य : अजमेर शहर के काजीपुरा गांव से 7 किलोमीटर आगे पहाड़ी के ऊपर श्री गंगा भैरव मंदिर है. मंदिर के पुजारी भाग सिंह रावत के अनुसार ये मंदिर करीब 125 वर्ष पुराना है. मंदिर से 150 मीटर आगे प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. मंदिर तक वाहन से पहुंचा जा सकता है, लेकिन इसके आगे का रास्ता पैदल ही तय करना होता है. कुछ दूर चलने पर हरियाली की चादर ओढ़े जंगल और पहाड़ का विहंगम दृश्य दिलों-दिमाग में सुकून भर देता है.
नहीं है लोगों को इस स्थान की जानकारी : प्रकृति का ऐसा अद्भुत नजारा शहर के नजदीक होने के बावजूद लोगों की भीड़ से अछूता है. मवेशी चराने वाले चंद लोग ही इन पहाड़ों और जंगलों में घूमते हैं. इस अद्भुत स्थान के बारे में लोगों को जानकारी कम है. जिला प्रशासन ने भी इससे पहले कभी भी इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की ओर ध्यान नहीं दिया. इतने वर्षों में पहली बार प्रशासन ने मंदिर तक पहुंचने के लिए सीसी रोड बनाया है.
लेपर्ड सफारी की योजना : मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर आगे जंगल में चांदपोल गेट है. यहां तक पहुंचने के लिए मनरेगा के तहत पैदल मार्ग भी विकसित किया गया है. पहाड़ी और जंगलों के बीच से होता हुआ यह मार्ग प्रकृति को बहुत ही करीब से महसूस करने का अनुभव देता है. चांदपोल के नजदीक ही 4 किलोमीटर लंबी दीवार है. बताया जाता है कि 11वीं शताब्दी में चौहान वंश के तत्कालीन राजा ने इसे बनवाया था. चांदपोल गेट के नजदीक ही तत्कालीन समय का अस्तबल और एक बावड़ी भी है. केंद्र और राज्य की आर्कियोलॉजी विभाग की टीम ने इस स्थान का सर्वे किया है. अब इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर वन विभाग भैरव घाटी में लेपर्ड सफारी के लिए कार्य योजना तैयार कर रहा है.
शासन और प्रशासन दें ध्यान : सामाजिक कार्यकर्ता कपिल व्यास बताते हैं कि शहर के नजदीक ऐसे अद्धभुत स्थान के बारे में कम ही लोग जानते हैं. यही वजह है कि लोगों की भीड़ अजमेर के पर्यटन स्थलों पर हर रोज देखी जा सकती है, लेकिन यह प्रकृति का अद्भुत स्थान आज भी अछूता है. चारों और ऊंचे पहाड़ और नीचे सघन वन है. यह ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ तो यहां पर्यटकों को प्रकृति को नजदीक से महसूस करने का मौका मिलेगा. साथ ही लेपर्ड सफारी से पर्यटन उद्योग को यहां पंख लग जाएंगे. शासन और प्रशासन को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए.
ये है मंदिर का इतिहास : श्री गंगा भैरव मंदिर के पुजारी भाग सिंह रावत बताते हैं कि 1919 में मंदिर की स्थापना की गई थी. मंदिर में विराजमान भैरव बाबा की मूर्ति स्वयंभू है. मंदिर के इतिहास के बारे में उन्होंने बताया कि नीचे गांव में एक 14 वर्षीय एक बालक गुलाब रहता था, जिसके माता-पिता नहीं थे. पेट पालने के लिए वह जंगल में बकरियां चराता था. उसके साथ एक और चरवाहा भी जंगल में साथ जाता था.
चट्टान से निकले भैरो बाबा : पुजारी बताते हैं कि एक दिन बालक को आभास हुआ कि कोई उसे कह रहा है कि मैं चट्टान के नीचे हूं. चट्टान हटाओ. बालक ने दूर से देखा तो वहां दो शेर एक झाड़ के नजदीक बैठे थे. बालक ने यह बात अपने साथी को बताई. शेरों को देखकर उसका साथी डर कर भाग गया, लेकिन गुलाब वहीं रहा. इसके बाद अचानक गुलाब में दैविक शक्ति आई और उसने झाड़ और चट्टान हटा दी. चट्टान हटते ही मूर्ति स्वयं बाहर आने लगी. इस पर बालक ने अपने साथी को चिल्ला कर बताया तो मूर्ति का बाहर आना रुक गया. बालक मूर्ति को वहीं छोड़ गांव चला गया.
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किवदंती है कि कुछ दिनों बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी. उसकी हालत दिन-ब-दिन और ज्यादा खराब होने लगी. तब उसे आभास हुआ कि कोई उसे बुला रहा है. यह वही प्रतिमा थी जो चट्टान के नीचे से निकली थी, जिसने बालक को कहा मैं तुझे ठीक कर दूंगा, लेकिन तुझे मेरी सेवा करनी होगी. बालक ने कहा कि मैं तो ठीक हो जाऊंगा, लेकिन मेरी तरह जो भी बीमार और किस्मत का मारा तेरे तक आएगा उसकी मुश्किलें भी हल करनी होंगी.
आसपास के गांवों में फैलने लगी ख्याति : इसके बाद से बालक वहां सेवा करने लगा. इससे पहले तक वो नहीं जानता था कि वह प्रतिमा किसकी है. भैरो बाबा की ख्याति धीरे-धीरे आस-पास के गांव में फैलने लगी. लोगों के बिगड़ते काम संवरने लगे. निःसंतान दंपतियों को झोली भरने लगी. बीमार लोग भी ठीक होने लगे. आज भी रविवार के दिन श्री गंगा भैरव मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है.
ग्रामीण कल्याण रावत बताते हैं कि कई राज्यों से लोग अपनी मुश्किल का हल निकालने के लिए भैरो बाबा की शरण में आते हैं और मान्यता है कि उनकी मनोकामनाएं यहां पूरी होती हैं. उन्होंने बताया कि चौहान वंश से जुड़े कई ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व की चीजे यहां से डेढ़ किलोमीटर पर स्थित हैं. उन्होंने बताया कि आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ ने क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की है.