अजमेर. जगत पिता ब्रह्मा की पुष्कर नगरी ही नहीं बल्कि ब्रह्मा की उद्भव स्थली भी हैं. शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु से बताई गई हैं. पुष्कर अरण्य क्षेत्र ही वो स्थान है, जहां भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को अपनी नाभि से उत्पन्न किया और उसके बाद ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की. सतयुग से भगवान विष्णु का वह स्थान कलयुग में भी यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण करता है.
जी हां. जगतपिता ब्रह्मा मंदिर से 8 किलोमीटर कानस गांव में कानबाय में स्थित मंदिर में 12 फीट की शेषनाग पर शयन मुद्रा में भगवान विष्णु एवं उनके पैरों की और महालक्ष्मी की मूर्ति विश्व की प्राचीनतम मूर्ति है. कई पौराणिक शास्त्रों में पुष्कर अरण्य क्षेत्र में खजूर के वन में भगवान विष्णु का स्थान सतयुग से पहले होने का वृतान्त मिलता है. भगवान विष्णु ने 10 हजार वर्षों तक इस स्थान पर तपस्या की थी.
भगवान शिव ने साढ़े 9 हजार वर्ष ध्यान मुद्रा में बिताए
वही इस स्थान से कुछ ही दूर ककड़ेश्वर स्थान पर भगवान शिव साढ़े 9 हजार वर्ष ध्यान मुद्रा में बिताए थे. माना जाता है कि इस स्थान पर नन्दा, सरस्वती एवं गुप्त गंगा नदी का संगम होता है. इस स्थान के नजदीक ही ऋषि च्यवन का आश्रम है. बताया जाता है ऋषि च्यवन को युवा अवस्था पुनः नंदा नदी में स्नान करने से मिली थी. बताया जाता है कि त्रेता युग में राम दो बार यहां आए थे. पहली बार जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के समय आये थे. दूसरी बार राम अपनी पिता दशरथ का श्राद्ध करने पुष्कर आए थे.
द्वापर युग में श्री कृष्ण यहां 11 बार आए
इसके बाद द्वापर युग में श्री कृष्ण यहां 11 बार आए. यही वह स्थान है जहां श्री कृष्ण ने हंस एवं डिम्बक दानवों का अंत किया था. श्री कृष्ण के कई बार कानबाय आने के प्रमाण इस स्थान के आसपास के गांवों के नाम से मिलते है. काना से कानस, नन्द गांव से नांद, बरसाना से बासेली. दरअसल श्री कृष्ण जब यहां आए तो उनके साथ आए कई लोग यही बस गए. जिन्होंने यह गांव बसाए.
ये वो ही स्थान, जहां धरती पर सर्वप्रथम आए भगवान विष्णु आए
यहीं नहीं पुष्कर अरण्य क्षेत्र कानबाय ही वो स्थान है जब भगवान विष्णु ने धरती पर सर्वप्रथम अपना पदार्पण किया था. भगवान विष्णु ने ब्रह्मा का उद्भव कर उन्हें सृष्टि की रचना का आदेश भी यही दिया था. सृष्टि यज्ञ दिशा में भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ यही रहे थे. कई ऋषि मुनि खासकर सप्त ऋषि भी भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के लिए यहां रहे हैं, माना जाता है कि साल में एक बार सप्त ऋषि यहां आते हैं.
भगवान विष्णु की शयन मुद्रा मूर्ति को 3600 वर्ष पुराना बताया गया
मंदिर में भगवान विष्णु की 12 फीट की शयन मुद्रा में मौजूद मूर्ति की वैज्ञानिक जांच भी हो चुकी है. जांच में मूर्ति को 3600 वर्ष पुराना बताया गया है. बताया जाता है कि सृष्टि की रचना के वक्त जगतपिता ब्रह्मा ने महालक्ष्मी का आह्वान किया और उन्हें भोग लगाने के लिए गन्ने की वनस्पति का उद्भव किया. कानबाय स्थान पर नंदा नदी बहा करती थी, लेकिन फिलहाल यहां दूर-दूर तक पानी नजर नहीं आता बल्कि यहां मिट्टी के दरडे (मिट्टी के मोट-मोटे टुकड़े) नजर आते हैं. माना जाता है कि इन मिट्टी के दरडो में ऋषि मुनियों के कई आश्रम और उस वक्त की सभ्यता दबी हुई पड़ी है. मंदिर के नजदीक ही एक कुंड है, जिसे क्षीरसागर कहा जाता है. शास्त्रों के मुताबिक पुष्कर अरण्य क्षेत्र में पश्चिम दिशा की ओर कभी समुद्र हुआ करता था.
औरंगजेब ने किया था यहां हमला
बताया जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब जब मूर्ति तोड़ने के लिए यहां हमला कराया था, तब वह भी इसी स्थान पर आया था और यहीं से श्राप मिला था. उस वक्त जब औरंगजेब ने बूढ़ा पुष्कर के जल में अपने आप को देखा तो उसे अपनी श्रापित सूरत दिखी थी. औरंगजेब वक्त से पहले बूढ़ा हो गया था इसके बाद दोबारा औरंगजेब यहां वापस नहीं लौटा.
सदियों पुरानी सभ्यता आज भी यहां दबी हुई!
दरअसल इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई पक्का रास्ता नहीं है. सरकारी उपेक्षा का शिकार यह मंदिर हमेशा रहा है. इस मंदिर में मान्यता है कि महालक्ष्मी को गन्ने के रस का भोग लगाने पर श्रद्धालु पर उनकी कृपा बरसती है. कानबाय में भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की प्राचीनतम मूर्ति के अलावा भी इस क्षेत्र में सदियों पुरानी सभ्यता दबी हुई है, लेकिन पुरातत्व विभाग ने मिट्टी में दबी पुरातत्व महत्व को खोजने की कभी कोशिश ही नहीं की और ना ही सरकार ने भगवान विष्णु के सबसे बड़े तीर्थ को विकसित करने में कभी रुचि दिखाई.