अजमेर. यदि किसी व्यक्ति के स्वभाव में बदलाव आता है और वह ज्यादा बोलने लगता है या खर्चीला हो जाता है, नींद बहुत कम लेता है, तो उस व्यक्ति को बाइपोलर भी हो सकता है. जानिए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर डॉ मनीषा गौड़ से बाइपोलर डिसऑर्डर के कारण लक्षण और उपचार से संबंधित हेल्थ टिप्स.
बाइपोलर डिसऑर्डर मनोरोग का एक प्रकार है. इसके प्रभाव में रोगी का व्यवहार सामान्य व्यक्ति से ज्यादा तेज और सक्रिय हो जाता है. बाइपोलर का प्रभाव कम होने पर रोगी अवसाद का शिकार हो जाता है. बाइपोलर डिसऑर्डर साइकोटिक लक्ष्ण के साथ भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है. क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर डॉ मनीषा गौड़ बताती है कि बाइपोलर डिसऑर्डर एक प्रकार का मनोरोग है जो किसी भी उम्र में हो सकता है.
उन्होंने बताया कि बाइपोलर का प्रभाव 3 से 4 महीने तक रहता है. इसको मेनिया फेज भी कहते हैं. इसके बाद रोगी अवसाद में 6 से 7 महीने तक रहता है. डॉ गौड़ ने बताया कि मूड डिसऑर्डर में अलग-अलग अवस्थाएं और लक्षण होते हैं. मसलन मैनिक डिसऑर्डर, डिप्रेसिव डिसऑर्डर और बाइपोलर डिसऑर्डर तीनों के लक्षण अलग-अलग प्रकार के होते हैं. बाइपोलर डिसऑर्डर होने का कोई एक प्रमाणित कारण नहीं है. हालांकि मनोवैज्ञानिक इसके वास्तविक कारणों को जाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं.
बाइपोलर के लक्षणः डॉ गौड़ बताती हैं कि बाइपोलर डिसऑर्डर में 3 से 4 माह तक रोगी के स्वभाव में तेजी के लक्षण दिखते हैं. मसलन पहले की अपेक्षा ज्यादा बातें करना. क्षमता से अधिक बड़ी-बड़ी बातें करना. खर्चीला होना. क्षमता से अधिक व्यापार को बढ़ाना और निवेश करना. नींद 3 से 4 घण्टे लेना, एक शब्द का बार-बार प्रयोग करना. यह लक्षण कम होने पर रोगी अवसाद की स्थिति में जाने लगता है. उन्होंने बताया कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के 31 मार्च 2023 के आंकड़ों के मुताबिक विश्व में अनुमानित 3.8 फ़ीसदी लोगों को बाइपोलर डिसऑर्डर है. इनमें 60 वर्ष से कम 5 प्रतिशत और 60 वर्ष से अधिक 5.7 प्रतिशत लोग हैं. डॉ गौड़ ने बताया कि दुनिया में 280 मिलियन लोग बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित हैं.
अवसाद की स्थिति में क्याः डॉ गौड़ बताती हैं कि बाइपोलर डिसऑर्डर का प्रभाव कम होने पर रोगी अवसाद में चला जाता है. उन्होंने बताया कि अवसाद की स्थिति में रोगी गुमसुम रहने लगता है. किसी से बातचीत करने में उसका मन नहीं लगता. ऐसे रोगी अकेले रहने लगते हैं. रोगी को मन में ग्लानि का भाव आने लगता है. ऐसे कई रोगियों को रोना भी ज्यादा आता है. नींद नहीं आने की परेशानी रहती है.’ ऐसे रोगी और रोजमर्रा का काम भी मुश्किल से कर पाते हैं. हर कार्य उन्हें कठिन लगने लगता है. रोगी को बेचैनी रहती है और उसका मन कहीं भी नहीं लगता है. कुछ रोगियों में जीने की इच्छा भी खत्म होने लगती है.
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थेरेपी और उपचार से ईलाज संभवः डॉ गौड़ ने बताया कि सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी), सपोर्टिव थेरेपी के माध्यम से और साइकेट्रिक से परामर्श लेकर आवश्यक दवाइयों का सेवन करने से बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त रोगी का उपचार संभव है. 8 से 12 माह में नियमित रूप से थेरेपी और दवाइयां लेने पर रोगी ठीक होने लगता है.