अजमेर. भगवान नरसिंह जन्मोत्सव के उपलक्ष में अजमेर में नया बाजार स्थित 400 वर्ष प्राचीन श्री नरसिंह मंदिर में फूल बंगला सजाकर नयनाभिराम शृंगार किया गया. भगवान नरसिंह को विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया गया. शाम को 5 बजे मंदिर से लाल्या-काल्या मेले का आगाज हुआ. इस दौरान लाल्या-काल्या और नकटी का प्रदर्शन भी हुआ. इसको लीला महोत्सव कहते है. खास बात यह है कि मेले में शामिल हजारों लोग काल्या और नकटी के सोटे से खुद को बचाते है. जबकि लाल्या का सोटा खाने के लिए लालायित रहते हैं. मंदिर के स्थापत्य से लाल्या-काल्या मेले का भी इतिहास जुड़ा है. इतने वर्षों बाद भी लोग पूरी श्रद्धा और उसी परंपरा के अनुसार भगवान नरसिंह का लीला महोत्सव मनाते हैं.
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सुप्रसिद्ध लाल्या-काल्या मेलाः अजमेर में भगवान नरसिंह की जयंती पर सुप्रसिद्ध लाल्या-काल्या का मेला को लेकर लोगों ने जमकर उत्साह है. नया बाजार स्थित भगवान श्री नरसिंह मंदिर में भगवान का अद्भुत शृंगार किया गया. कलकत्ता से मंगाए मोगरे के फूलों और गुलाब से फूल बंगला सजाया गया. इस दौरान मंदिर में भक्तों ने भगवान नरसिंह की कथा श्रद्धापूर्वक सुनी. कथा के बाद भगवान नरसिंह की महाआरती हुई. बड़ी संख्या में लोग महाआरती में शामिल हुए. भक्तों ने जय जय नरसिंह के जयकारे लगाए. लाल्या-काल्या का मेला अजमेर की संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है. शाम 5 से रात 8 बजे तक लाल्या-काल्या का मेला भरता है. इस दौरान मंदिर में व्यवस्था प्रबंधन समिति संभालती है. वही मंदिर के बाहर क्षेत्र के लोग व्यवस्था देखते है.
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400 वर्ष पुराना है मंदिरः मंदिर के प्रबंधक सोमेश बंसल बताते हैं कि मेले के दौरान लाल्या-काल्या और नकटी का भी प्रदर्शन होता है. काल्या लोगों की भीड़ में उत्पात मचाता है. लोगों को सोटे मारता है. लोग उसके सोटे से खुद को बचाते है और बुराई के प्रतीक काल्या से दूर रहने की कोशिश करते है. इसी तरह नकटी का उत्पात भी कम नहीं होता. लोग नकटी को छेड़ते हैं. वही नकटी उत्पात मचाते हुए लोगों को सोटे लगाती है. बंसल ने बताया कि भगवान नरसिंह का मंदिर 400 वर्ष पुराना है. सेठ राम प्रसाद ने मंदिर का निर्माण करवाया था. उनके समय से ही मंदिर में भगवान नरसिंह का शृंगार, महाआरती, भोग और लीला महोत्सव के आयोजन की परंपरा रही है. बंसल ने बताया कि उनकी यह सातवीं पीढ़ी है जो उनके पूर्वज सेठ रामप्रसाद की शुरू की गई परंपरा को निभा रहे हैं.
लाल्या भगवान नरसिंह का रूप होता हैः बंसल बताते हैं कि लीला महोत्सव में काल्या हिरण्याक्ष का रूप है. वहीं लाल्या भगवान नरसिंह का रूप होता है. लाल्या रूपी भगवान काल्या के अहंकार को खत्म करते हैं. इसी तरह हिरण्यकश्यप भी अहंकार में अपने को भगवान बताकर अपना प्रचार करता है. त्रिदेव समेत सभी देवी देवता हिरण्यकश्यप को समझाते हैं लेकिन वह नहीं मानता. उसे भगवान नहीं मानने वाले लोगों पर वह अत्याचार करता है. जगतपिता ब्रह्मा से मिले वरदान से वह अहंकारी हो जाता है. उसे लगता है कि उसे कोई नहीं मार सकता. वह अपने आपको अमर समझने लगता है. हिरण्यकश्यप का अंत करने के लिए जग के पालनहार भगवान विष्णु खंबा फाड़कर प्रकट होते हैं और शाम के वक्त दहलीज पर हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखकर अपने नाखूनों से उसका सीना और पेट चीर कर उसका अंत करते हैं. लीला महोत्सव में भगवान नरसिंह की लीला होती है. इसमें एक खम्ब बनाया जाता है और उसमें से भगवान नरसिंह प्रकट होकर दुष्ट हिरण्यकश्यप का अंत करते हैं.
लाल्या के सोटे को प्रसाद मान गृहण करते है लोग: लीला महोत्सव में लाल्या के सोटे को खाने के लिए लोग आगे बढ़कर आते हैं. यह लाल्या का सोटा प्रसाद के रूप में लोग मानते है. माना जाता है कि लाल्या का सोटा पड़ने पर कष्ट दूर होते हैं. यही वजह है कि इस परम्परा से जुड़े लोगो के परिवार ही नहीं बल्कि अजमेर जिले और अन्य जिलों से भी लोग भगवान नरसिंह के लीला महोत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं.रात को भगवान नरसिंह की आरती का आयोजन हुआ और श्रद्धालुओं को समिति की ओर से प्रसाद वितरित किया गया.
छोटी काशी भी श्रद्धा और आस्था से रही सराबोरः दूसरी ओर जयपुर से मिली खबर के अनुसार गुरुवार को छोटी काशी भी भगवान नरसिंह के जन्मोत्सव के अवसर पर श्रद्धा और आस्था से सराबोर रही. यहां चौड़ा रास्ता स्थित ऐतिहासिक ताड़केश्वर महादेव मंदिर में नरसिंह भगवान खंभा फाड़कर प्रगट हुए लीला का मंचन किया. यहां करीब 90 किलो वजनी मुखौटा पहनकर लीला का मंचन किया गया और भक्तों ने भगवान के दर्शन किए. यहां करीब 250 साल से यह परंपरा निभाई जा रही है. जिस मुखौटे को पहनकर लीला का मंचन किया गया. भक्तों को साल में एक बार ही नरसिंह भगवान के दर्शन होते हैं. लीला से पहले भगवान के मुखौटे को सोने-चांदी के आभूषण से सजाया गया. इसी तरह हरे कृष्ण मूवमेंट के जगतपुरा स्थित श्रीकृष्ण-बलराम मंदिर में भी नरसिंह चतुर्दशी महोत्सव मनाया गया.