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दुनिया के इस अनोखे मंदिर में देश-विदेश से आते हैं भक्त...जानिए क्या है माता के दरबार की मान्यता!

उदयपुर में मेवल की महारानी या ईडाणा माता के नाम से प्रसिद्ध (Udaipur idana mata mandir) मंदिर की विशेष मान्यता है. यहां माता स्वयं अग्नि स्नान करती हैं. माता के दर्शन के लिए देश विदेश से हजारों भक्त आते हैं.

Udaipur idana mata mandir
दुनिया के इस अनोखे मंदिर में देश-विदेश से आते हैं भक्त
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Published : Apr 10, 2022, 9:00 AM IST

Updated : Apr 10, 2022, 9:42 AM IST

उदयपुर. राजस्थान के उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर सलूंबर तहसील के ईडाणा गांव में स्थित है एक अनोखा मंदिर ( (Mewal ki maharani mandir in udaipur) ). जिसे ईडाणा माता या मेवल की महारानी नाम से जाना जाता है. ये मंदिर इसलिए अनोखा है क्योंकि माता रानी अग्नि स्नान करती हैं.देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस देवी स्थल की ख्याति है. दूर-दूर से लोग मां का आशीर्वाद लेने आते हैं.

माता रानी के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में भक्त (Udaipur idana mata mandir) पहुंचते हैं. इतना ही नहीं माता के दरबार में बीमारियों से ग्रसित लोग भी आते हैं, और बिल्कुल स्वस्थ्य होकर हंसी-खुशी अपने घर जाते हैं. सबकी मनोकामना पूरी करने वाली ईडाणा माता को मेवल की महारानी भी कहते हैं. ईटीवी भारत की टीम भी इस अनोखे मंदिर को देखने के लिए माता रानी के दरबार में पहुंची. हमें यहां के भक्तों ने बताया कि ईडाणा माता का ये मंदिर करीब 5000 साल पुराना है.

दुनिया के इस अनोखे मंदिर में देश-विदेश से आते हैं भक्त

ये है मंदिर की मान्यता: ऐसा माना जाता है कि ईडाणा माता एक बरगद पेड़ के नीचे प्रकट हुई थीं. कालांतर में क्षेत्र से गुजर रहे एक संत को स्वयं माता रानी ने एक कन्या के रूप में दर्शन देते हुए वहीं रहने का निवेदन किया. संत ने खूब भक्ति आराधना के साथ उनकी पूजा की तो कुछ ही दिनों में यहां अलग-अलग चमत्कार होने लगे. माता के चमत्कार के कारण नेत्रहीनों को दिखाई देने लगा, लकवाग्रस्त लोग ठीक होने लगे, निःसंतानों को औलाद होने लगे. धीरे-धीरे माता रानी की मान्यता देश-दुनिया में बढ़ने लगी. यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने से मंदिर का प्रचार-प्रसार भी फैलने लगा. गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,अन्य राज्यों के अलावा देश के कोने-कोने से भक्त आने लगे.

अग्नि स्नान के कारण प्रसिद्ध: देश-दुनिया का ये एकमात्र मंदिर है, जहां माता रानी स्वयं अपने मंदिर में अग्नि स्नान करती हैं. भक्तों ने बताया कि माता रानी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती हैं. जिसमें माता को चुनरी और अन्य कपड़े आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है. अग्नि स्नान के साथ चढ़ावा के पहने कपड़े भी भस्म हो जाते हैं. इस दौरान अग्नि नजदीक के बरगद के पेड़ को भी चपेट में ले लेती है. लेकिन माता रानी की मूर्ति पर इस अग्नि स्नान से कोई असर नहीं होता. अग्नि स्नान के बाद भी माता की मूर्ति बिल्कुल सही सलामत रहती है. वहीं दूसरी तरफ माता के समीप अखंड ज्योत भी निरंतर जलती रहती है. अग्नि स्नान के दौरान भक्तों के चढ़ाए गए चुनरी, धागे सभी अग्नि स्नान में भस्म हो जाते हैं.

पढ़ें-Ram Navami 2022: सिया राम संग लखन नहीं श्री कृष्ण विराजे

हैरानी की बात ये है कि अंत में इन सब चीजों में से एक वस्त्र बच जाता है. जिसे माता रानी का चमत्कार माना जाता है. खास बात ये है कि, इस अग्नि स्नान का कोई समय या तिथि तय नहीं है. माताजी के अग्नि स्नान के दर्शन करने वाले श्रद्धालु अपने आप को बेहद भाग्यशाली मानते हैं. माताजी अग्नि स्नान करती हैं, तो सारा श्रृंगार जलकर भस्म हो जाता है. लेकिन माता की प्रतिमा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. माता स्वयं ज्वाला का रूप ले लेती है. ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेती है. इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक ऊंची उठती है. माता के अग्नि स्नान के बाद उनका नया श्रृंगार किया जाता है.अग्नि स्नान की सूचना मिलते ही बड़ी संख्या में आस-पड़ोस गांव के लोग दर्शन के लिए दौड़े आते हैं.

बीमारियों से ग्रसित लोग पहुंचते हैं: ईडाणा माता के दर्शन के लिए देश दुनिया से लोग तो पहुंचते हैं. इसके साथ ही लकवा ग्रस्त मरीजों को भी यहां पर लाया जाता है. आस्थावानों का कहना है कि वे लोग यहां 1 महीने से ज्यादा रहने के बाद ठीक होकर वापस अपने घर लौटते हैं. इस दौरान पीड़ितों को भोजन और रहने का इंतजाम मंदिर करता है. मंदिर के व्यवस्थापक शंकरलाल पंड्या ने बताया कि यहां हर साल लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. नवरात्रि के 9वें दिन माता रानी के विशेष मेले में सर्वाधिक भक्त पहुंचते हैं. वहीं रविवार और मंगलवार को भी यहां भक्तों का मेला रहता है.

पढ़ें- चैत्र नवरात्रि मेला: 600 सीढ़ियां चढ़कर भक्तों ने किए मनसा माता के दर्शन, आपदाओं से बचाने की मांगी मन्नत

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता: उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर बंबोरा होकर मंदिर पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा उदयपुर से रामेश्वर महादेव मार्ग पर गिंगला होकर ईडाणा पहुंचा जाता है. इसके अलावा सलूंबर से लूदो होकर मंदिर पहुंचते हैं. इसके अलावा लसाड़िया माता के मंदिर जाने का मार्ग है. पंडित चंपालाल ने बताया कि माता रानी की प्रातः 5 बजे और संध्या 6:30 बजे आरती की जाती है. वहीं नवरात्रि के इस पर्व पर 9 दिनों तक यज्ञशाला में माता का पाठ और यज्ञ किया जाता है. जिसमें पंडित मां की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं. इस दौरान माता को विशेष भोग चढ़ाया जाता है.

उदयपुर. राजस्थान के उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर सलूंबर तहसील के ईडाणा गांव में स्थित है एक अनोखा मंदिर ( (Mewal ki maharani mandir in udaipur) ). जिसे ईडाणा माता या मेवल की महारानी नाम से जाना जाता है. ये मंदिर इसलिए अनोखा है क्योंकि माता रानी अग्नि स्नान करती हैं.देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस देवी स्थल की ख्याति है. दूर-दूर से लोग मां का आशीर्वाद लेने आते हैं.

माता रानी के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में भक्त (Udaipur idana mata mandir) पहुंचते हैं. इतना ही नहीं माता के दरबार में बीमारियों से ग्रसित लोग भी आते हैं, और बिल्कुल स्वस्थ्य होकर हंसी-खुशी अपने घर जाते हैं. सबकी मनोकामना पूरी करने वाली ईडाणा माता को मेवल की महारानी भी कहते हैं. ईटीवी भारत की टीम भी इस अनोखे मंदिर को देखने के लिए माता रानी के दरबार में पहुंची. हमें यहां के भक्तों ने बताया कि ईडाणा माता का ये मंदिर करीब 5000 साल पुराना है.

दुनिया के इस अनोखे मंदिर में देश-विदेश से आते हैं भक्त

ये है मंदिर की मान्यता: ऐसा माना जाता है कि ईडाणा माता एक बरगद पेड़ के नीचे प्रकट हुई थीं. कालांतर में क्षेत्र से गुजर रहे एक संत को स्वयं माता रानी ने एक कन्या के रूप में दर्शन देते हुए वहीं रहने का निवेदन किया. संत ने खूब भक्ति आराधना के साथ उनकी पूजा की तो कुछ ही दिनों में यहां अलग-अलग चमत्कार होने लगे. माता के चमत्कार के कारण नेत्रहीनों को दिखाई देने लगा, लकवाग्रस्त लोग ठीक होने लगे, निःसंतानों को औलाद होने लगे. धीरे-धीरे माता रानी की मान्यता देश-दुनिया में बढ़ने लगी. यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने से मंदिर का प्रचार-प्रसार भी फैलने लगा. गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,अन्य राज्यों के अलावा देश के कोने-कोने से भक्त आने लगे.

अग्नि स्नान के कारण प्रसिद्ध: देश-दुनिया का ये एकमात्र मंदिर है, जहां माता रानी स्वयं अपने मंदिर में अग्नि स्नान करती हैं. भक्तों ने बताया कि माता रानी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती हैं. जिसमें माता को चुनरी और अन्य कपड़े आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है. अग्नि स्नान के साथ चढ़ावा के पहने कपड़े भी भस्म हो जाते हैं. इस दौरान अग्नि नजदीक के बरगद के पेड़ को भी चपेट में ले लेती है. लेकिन माता रानी की मूर्ति पर इस अग्नि स्नान से कोई असर नहीं होता. अग्नि स्नान के बाद भी माता की मूर्ति बिल्कुल सही सलामत रहती है. वहीं दूसरी तरफ माता के समीप अखंड ज्योत भी निरंतर जलती रहती है. अग्नि स्नान के दौरान भक्तों के चढ़ाए गए चुनरी, धागे सभी अग्नि स्नान में भस्म हो जाते हैं.

पढ़ें-Ram Navami 2022: सिया राम संग लखन नहीं श्री कृष्ण विराजे

हैरानी की बात ये है कि अंत में इन सब चीजों में से एक वस्त्र बच जाता है. जिसे माता रानी का चमत्कार माना जाता है. खास बात ये है कि, इस अग्नि स्नान का कोई समय या तिथि तय नहीं है. माताजी के अग्नि स्नान के दर्शन करने वाले श्रद्धालु अपने आप को बेहद भाग्यशाली मानते हैं. माताजी अग्नि स्नान करती हैं, तो सारा श्रृंगार जलकर भस्म हो जाता है. लेकिन माता की प्रतिमा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. माता स्वयं ज्वाला का रूप ले लेती है. ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेती है. इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक ऊंची उठती है. माता के अग्नि स्नान के बाद उनका नया श्रृंगार किया जाता है.अग्नि स्नान की सूचना मिलते ही बड़ी संख्या में आस-पड़ोस गांव के लोग दर्शन के लिए दौड़े आते हैं.

बीमारियों से ग्रसित लोग पहुंचते हैं: ईडाणा माता के दर्शन के लिए देश दुनिया से लोग तो पहुंचते हैं. इसके साथ ही लकवा ग्रस्त मरीजों को भी यहां पर लाया जाता है. आस्थावानों का कहना है कि वे लोग यहां 1 महीने से ज्यादा रहने के बाद ठीक होकर वापस अपने घर लौटते हैं. इस दौरान पीड़ितों को भोजन और रहने का इंतजाम मंदिर करता है. मंदिर के व्यवस्थापक शंकरलाल पंड्या ने बताया कि यहां हर साल लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. नवरात्रि के 9वें दिन माता रानी के विशेष मेले में सर्वाधिक भक्त पहुंचते हैं. वहीं रविवार और मंगलवार को भी यहां भक्तों का मेला रहता है.

पढ़ें- चैत्र नवरात्रि मेला: 600 सीढ़ियां चढ़कर भक्तों ने किए मनसा माता के दर्शन, आपदाओं से बचाने की मांगी मन्नत

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता: उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर बंबोरा होकर मंदिर पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा उदयपुर से रामेश्वर महादेव मार्ग पर गिंगला होकर ईडाणा पहुंचा जाता है. इसके अलावा सलूंबर से लूदो होकर मंदिर पहुंचते हैं. इसके अलावा लसाड़िया माता के मंदिर जाने का मार्ग है. पंडित चंपालाल ने बताया कि माता रानी की प्रातः 5 बजे और संध्या 6:30 बजे आरती की जाती है. वहीं नवरात्रि के इस पर्व पर 9 दिनों तक यज्ञशाला में माता का पाठ और यज्ञ किया जाता है. जिसमें पंडित मां की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं. इस दौरान माता को विशेष भोग चढ़ाया जाता है.

Last Updated : Apr 10, 2022, 9:42 AM IST
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