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Special: क्या किसानों को नए कृषि विधेयक से मिलेगा फायदा? - कृषि विधेयक

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि विधेयक को लेकर देशभर में प्रदर्शन जारी है. लेकिन इस बीच दो तरीके के तर्क भी सुनने को मिल रहे हैं. जहां एक ओर ये कहा जा रहा है कि इससे काफी नुकसान होगा. वहीं, दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा है कि इससे मजदूर और व्यापारी दोनों लाभान्वित होंगे.

श्रीगंगानगर समाचार, Sriganganagar news
कृषि विधेयक को लेकर देशभर में प्रदर्शन
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Published : Sep 30, 2020, 10:38 PM IST

श्रीगंगानगर. केंद्र सरकार के पास करवाए गए तीनों कृषि विधेयकों को लेकर देशभर में किसान, मजदूर और व्यापारी सड़कों पर है. विधेयक का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुनाफा और किसान को नुकसान होगा. इतना ही नहीं, इस विधेयक से व्यापारी और मजदूर वर्ग तो बर्बाद ही हो जाएंगे. जबकि दूसरा वर्ग कहता है कि इससे किसानों की आय दोगुनी होगी. साथ ही मजदूर और व्यापारी दोनों लाभान्वित होंगे.

कृषि विधेयक को लेकर देशभर में प्रदर्शन

इन सबके बीच एक बड़ा सवाल ये भी है कि कृषि विधेयक के लागू होने से पहले ही नुकसान का आकलन करके हंगामा खड़ा क्यों किया जा रहा है. अगर विधेयक इतना ही नुकसान वाला है तो क्या केंद्र सरकार किसानों को बर्बाद करने के लिए विधेयक लेकर आई है. लेकिन ऐसा नहीं है, विधेयक का विरोध करने वाले व्यापारी खुद इसकी तारीफ करते हुए इसे बेहतरीन बता रहे हैं तो वहीं विधेयक में जो कुछ खामिया और अस्पष्टता है, उसमें सुधार की बात कहते हुए विरोध करने की बात कह रहे है.

श्रीगंगानगर समाचार, Sriganganagar news
कृषि बिल को लेकर किसानों में भ्रम की स्थिति

नए कृषि विधेयक के विरोध में उतरे व्यापारियों का कहना है कि किसानों को नए कृषि कानून से जो शंकाएं हैं, उनको सरकार जब तक दूर नहीं करेगी, तब तक विधेयक किसान के हित में होते हुए भी किसान इससे संतुष्ट नहीं होंगे. इनकी मानें तो किसानों की फिलहाल सबसे बड़ी शंका यह है कि सरकार धीरे-धीरे एमएसपी खत्म कर देगी. सरकार को चाहिए कि हर तरह से किसानों की शंकाओं को दूर करें. उसके बाद किसानों से चर्चा करके विधेयक को लागू करवाया जाए. साथ ही कहा कि जिस ढंग से कृषि विधेयक लाए गए हैं, वह समाज में असंतोष पैदा करने वाला है.

श्रीगंगानगर समाचार, Sriganganagar news
कृषि विधेयक को लेकर घमासान

पढ़ें- स्पेशल: लॉकडाउन और कोरोना ने छिना रोजगार, तो खिलौनों से मिला काम

व्यापारियों की बात करें तो केंद्र के विधेयक में भारत में जो टैक्स लगता है, उसको राज्यों के द्वारा शुन्य किया गया है. विधेयक में कोई भी किसान कहीं भी अपना माल ले जा सकेगा. इस विधेयक में किसान को प्राथमिकता दी गई है. कृषि जिंसों को देश के हर कोने में भेजने के लिए अलग-अलग गाड़ियां भी चलाई जाएगी. सरकार द्वारा बहुत से ऐसे साधन लगाए जाएंगे, जिससे 3 दिन में किसान का माल, फ्रूट, सब्जियां देश के किसी भी कोने में डिलीवरी दी जा सकेंगी.

विधेयक में यह भी कहा गया है कि किसान को अपना माल बेचने के लिए गाड़ी का एक या आधा डिब्बा बुक करवाना है, तो वह भी करवाया जा सकता है. यह निश्चित रूप से खेती के लिए बहुत अच्छी पहल की गई है, लेकिन इसके बाद किसानों का दिल जीतना किसानों की फसल के भाव की गारंटी देना, किसानों को सपोर्ट देना, यह सरकार की जिम्मेदारी भी है और किसानों को समझाना सरकार का दायित्व भी है.

वहीं, विधेयक में व्यापार की बात करें तो केंद्र ने मंडी में खरीद पर शून्य टैक्स किया है. परंतु उसमें प्रावधान दे दिया है कि राज्य सरकार के अधीन चलने वाली कृषि उपज मंडी समिति पर केंद्रीय कानून लागू नहीं रहेगा. जब मंडी के भीतर किसान की खरीद पर जीरो से 6 परसेंट टैक्स देना पड़ेगा. ऐसे में तब मंडी के गेट के बाहर जीरो टैक्स रहेगा तो फिर धान मंडी में जींस बेचने कोई किसान नहीं आएगा. ऐसे में धान मंडी में अतिरिक्त चार्ज देकर कोई भी किसान अपना माल बेचने नहीं आएगा.

व्यापारियों की मानें तो मंडी के अंदर और मंडी के बाहर टैक्स की दर बराबर की जाए, ताकि मंडिया समाप्त नहीं हो और व्यापारी जिंदा रह सके. सरकार को विधेयक लाना है तो किसानों को संतुष्ट करें, उसके बाद ही विधेयक बिल्कुल सही दिशा में लाया जा सकता है. इसी तरह व्यापारी नेता कहते हैं कि कंपनियों पर खरीद की जिम्मेदारी आ जाएगी तो ऐसे में कंपनियां कभी भी किसान को जवाब दे सकती है और कंपनियां किसान की फसल बुवाई तो करवा देगी. लेकिन बाद में किसान के माल में क्वॉलिटी नहीं आई तो कंपनियां खरीद नहीं करेगी. इससे किसानों को अपना माल खेत में ही नष्ट करना पड़ेगा. इस विधेयक की यह सबसे बड़ी खामी है, जिससे किसान को बड़ा नुकसान होगा.

पढ़ें- स्पेशल: चिकित्सा सुविधाओं के साथ ग्रामीणों को चाहिए विज्ञान संकाय, खेल मैदान युवाओं के लिए बड़ा मुद्दा

व्यापारी कहते हैं कि जब किसान का खराब माल भी व्यापारी खरीदता है तो ऐसे में कंपनी फसल बुवाई करवाएगी. वहीं, अगर बेहतर क्वॉलिटी का माल ना होने के कारण खरीद नहीं करेगी. तब किसान अपना हल्की क्वॉलिटी का माल कहां पर बेचेगा. व्यापारी कहते हैं कि विधेयक में बहुत ज्यादा खामियां हैं, जिसको सही करने के लिए सरकार को एक मंच पर बैठकर बात करना चाहिए. जब तक सरकार विधेयक में कमी पूरी नहीं करेगी, तब तक सफल नहीं हो पाएंगे.

मजदूर वर्ग कहता है कि अगर कृषि उपज मंडियो में किसान माल लेकर नहीं आएगे तो अनाज मंडिया बंद हो जाएगी, जिससे देश में लाखों मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे. इतना ही नहीं, उनके सामने रोजी-रोटी का भी संकट आ जाएगा. वे कहते हैं कि धान मंडी में मजदूरों की मजदूरी का ठिकाना है. लेकिन बाद में मजदूर और मजदूरी कहां मिलेगी, इसका कोई पता नहीं रहेगा.

विधेयक का एक अच्छा पहलू यह भी है कि बाजार में सभी अपनी वस्तु का भाव तय करते हैं. लेकिन किसान को अपनी उपज का भाव तय करने का अधिकार नहीं है. इस कारण आजादी के बाद से ही यही हो रहा है कि किसान को अपनी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता है. इस विधेयक से किसान अपनी मर्जी से जहां चाहे, वहां अपनी मांगी गई कीमत पर उपज बेच सकेगा. साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य भी जारी रहेगा और मंडी व्यवस्था भी खत्म नहीं होगी.

श्रीगंगानगर. केंद्र सरकार के पास करवाए गए तीनों कृषि विधेयकों को लेकर देशभर में किसान, मजदूर और व्यापारी सड़कों पर है. विधेयक का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुनाफा और किसान को नुकसान होगा. इतना ही नहीं, इस विधेयक से व्यापारी और मजदूर वर्ग तो बर्बाद ही हो जाएंगे. जबकि दूसरा वर्ग कहता है कि इससे किसानों की आय दोगुनी होगी. साथ ही मजदूर और व्यापारी दोनों लाभान्वित होंगे.

कृषि विधेयक को लेकर देशभर में प्रदर्शन

इन सबके बीच एक बड़ा सवाल ये भी है कि कृषि विधेयक के लागू होने से पहले ही नुकसान का आकलन करके हंगामा खड़ा क्यों किया जा रहा है. अगर विधेयक इतना ही नुकसान वाला है तो क्या केंद्र सरकार किसानों को बर्बाद करने के लिए विधेयक लेकर आई है. लेकिन ऐसा नहीं है, विधेयक का विरोध करने वाले व्यापारी खुद इसकी तारीफ करते हुए इसे बेहतरीन बता रहे हैं तो वहीं विधेयक में जो कुछ खामिया और अस्पष्टता है, उसमें सुधार की बात कहते हुए विरोध करने की बात कह रहे है.

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कृषि बिल को लेकर किसानों में भ्रम की स्थिति

नए कृषि विधेयक के विरोध में उतरे व्यापारियों का कहना है कि किसानों को नए कृषि कानून से जो शंकाएं हैं, उनको सरकार जब तक दूर नहीं करेगी, तब तक विधेयक किसान के हित में होते हुए भी किसान इससे संतुष्ट नहीं होंगे. इनकी मानें तो किसानों की फिलहाल सबसे बड़ी शंका यह है कि सरकार धीरे-धीरे एमएसपी खत्म कर देगी. सरकार को चाहिए कि हर तरह से किसानों की शंकाओं को दूर करें. उसके बाद किसानों से चर्चा करके विधेयक को लागू करवाया जाए. साथ ही कहा कि जिस ढंग से कृषि विधेयक लाए गए हैं, वह समाज में असंतोष पैदा करने वाला है.

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कृषि विधेयक को लेकर घमासान

पढ़ें- स्पेशल: लॉकडाउन और कोरोना ने छिना रोजगार, तो खिलौनों से मिला काम

व्यापारियों की बात करें तो केंद्र के विधेयक में भारत में जो टैक्स लगता है, उसको राज्यों के द्वारा शुन्य किया गया है. विधेयक में कोई भी किसान कहीं भी अपना माल ले जा सकेगा. इस विधेयक में किसान को प्राथमिकता दी गई है. कृषि जिंसों को देश के हर कोने में भेजने के लिए अलग-अलग गाड़ियां भी चलाई जाएगी. सरकार द्वारा बहुत से ऐसे साधन लगाए जाएंगे, जिससे 3 दिन में किसान का माल, फ्रूट, सब्जियां देश के किसी भी कोने में डिलीवरी दी जा सकेंगी.

विधेयक में यह भी कहा गया है कि किसान को अपना माल बेचने के लिए गाड़ी का एक या आधा डिब्बा बुक करवाना है, तो वह भी करवाया जा सकता है. यह निश्चित रूप से खेती के लिए बहुत अच्छी पहल की गई है, लेकिन इसके बाद किसानों का दिल जीतना किसानों की फसल के भाव की गारंटी देना, किसानों को सपोर्ट देना, यह सरकार की जिम्मेदारी भी है और किसानों को समझाना सरकार का दायित्व भी है.

वहीं, विधेयक में व्यापार की बात करें तो केंद्र ने मंडी में खरीद पर शून्य टैक्स किया है. परंतु उसमें प्रावधान दे दिया है कि राज्य सरकार के अधीन चलने वाली कृषि उपज मंडी समिति पर केंद्रीय कानून लागू नहीं रहेगा. जब मंडी के भीतर किसान की खरीद पर जीरो से 6 परसेंट टैक्स देना पड़ेगा. ऐसे में तब मंडी के गेट के बाहर जीरो टैक्स रहेगा तो फिर धान मंडी में जींस बेचने कोई किसान नहीं आएगा. ऐसे में धान मंडी में अतिरिक्त चार्ज देकर कोई भी किसान अपना माल बेचने नहीं आएगा.

व्यापारियों की मानें तो मंडी के अंदर और मंडी के बाहर टैक्स की दर बराबर की जाए, ताकि मंडिया समाप्त नहीं हो और व्यापारी जिंदा रह सके. सरकार को विधेयक लाना है तो किसानों को संतुष्ट करें, उसके बाद ही विधेयक बिल्कुल सही दिशा में लाया जा सकता है. इसी तरह व्यापारी नेता कहते हैं कि कंपनियों पर खरीद की जिम्मेदारी आ जाएगी तो ऐसे में कंपनियां कभी भी किसान को जवाब दे सकती है और कंपनियां किसान की फसल बुवाई तो करवा देगी. लेकिन बाद में किसान के माल में क्वॉलिटी नहीं आई तो कंपनियां खरीद नहीं करेगी. इससे किसानों को अपना माल खेत में ही नष्ट करना पड़ेगा. इस विधेयक की यह सबसे बड़ी खामी है, जिससे किसान को बड़ा नुकसान होगा.

पढ़ें- स्पेशल: चिकित्सा सुविधाओं के साथ ग्रामीणों को चाहिए विज्ञान संकाय, खेल मैदान युवाओं के लिए बड़ा मुद्दा

व्यापारी कहते हैं कि जब किसान का खराब माल भी व्यापारी खरीदता है तो ऐसे में कंपनी फसल बुवाई करवाएगी. वहीं, अगर बेहतर क्वॉलिटी का माल ना होने के कारण खरीद नहीं करेगी. तब किसान अपना हल्की क्वॉलिटी का माल कहां पर बेचेगा. व्यापारी कहते हैं कि विधेयक में बहुत ज्यादा खामियां हैं, जिसको सही करने के लिए सरकार को एक मंच पर बैठकर बात करना चाहिए. जब तक सरकार विधेयक में कमी पूरी नहीं करेगी, तब तक सफल नहीं हो पाएंगे.

मजदूर वर्ग कहता है कि अगर कृषि उपज मंडियो में किसान माल लेकर नहीं आएगे तो अनाज मंडिया बंद हो जाएगी, जिससे देश में लाखों मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे. इतना ही नहीं, उनके सामने रोजी-रोटी का भी संकट आ जाएगा. वे कहते हैं कि धान मंडी में मजदूरों की मजदूरी का ठिकाना है. लेकिन बाद में मजदूर और मजदूरी कहां मिलेगी, इसका कोई पता नहीं रहेगा.

विधेयक का एक अच्छा पहलू यह भी है कि बाजार में सभी अपनी वस्तु का भाव तय करते हैं. लेकिन किसान को अपनी उपज का भाव तय करने का अधिकार नहीं है. इस कारण आजादी के बाद से ही यही हो रहा है कि किसान को अपनी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता है. इस विधेयक से किसान अपनी मर्जी से जहां चाहे, वहां अपनी मांगी गई कीमत पर उपज बेच सकेगा. साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य भी जारी रहेगा और मंडी व्यवस्था भी खत्म नहीं होगी.

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