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Special: सरकार की बेपरवाही से नहीं शुरू हुई मूंग की खरीद, किसानों को हो रहा नुकसान - sriganganagar farmer upset

किसान अपनी मेहनत से उगाई फसल औने-पौने दामों में बेचने के लिए मजबूर है. सरकार की ओर से मूंग की खरीद शुरू नहीं किए जाने से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. बीते दौरे पर आए प्रभारी मंत्री से पूछने पर कहा गया था कि नवंबर में मूंग की खरीद शुरू की जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. प्रदेश के किसानों को अपनी फसलों को काफी कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है. किसानों का कहना है केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें केवल उनका हितैशी होने के खोखले दावे करती हैं.

Farmers upset from government policies
सरकारी नीतियों में उलझे किसान
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Published : Nov 5, 2020, 7:36 PM IST

श्रीगंगानगर. देश मे केंद्र और राज्यों की सरकारें भले ही किसान हितेशी होने का ढिंढोरा पीट रही हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कोई भी सरकार किसानों के भले का नहीं सोच रही है. किसानों को केवल वोट बैंक मानते हुए उनको हमेशा की तरह लुभावने वायदे कर आश्वशन की घुट्टी पिलाती रहती है. केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों की हालत सुधारने का हवाला देकर जहां तीन कृषि कानून लागू किए हैं तो वहीं कांग्रेस सरकार ने इन कृषि कानूनों को किसानों के लिए गलत बताते हुए सड़क से संसद तक विरोध के स्वर छेड़ रखे हैं. लेकिन इस बीच अगर किसान की हालत पर नजर डालकर उसकी फसल खरीद पर बात करें तो पता लगेगा की कोई भी सरकार किसान की फसल खरीद को लेकर गम्भीर नहीं है.

सरकारी नीतियों में उलझे किसान

राजस्थान की गहलोत सरकार के मंत्री बीडी कल्ला कृषि प्रधान कहे जाने वाले श्रीगंगानगर जिले के दौरे पर करीब 25 दिन पहले कृषि कानून के विरोध में किसानों से चर्चा करने आए थे. 'मंत्री जी' से जब किसान हितेशी होने के बाद भी किसान की मूंग की फसल खरीद करने और कृषि कानून के बारे मे पूछा गया था तो कुछ अलग ही बातें सुनने को मिलीं. इससे साफ लगा कि वे किसानों को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं.

यह भी पढ़ें: Special: रसोई का बजट बिगाड़ रहा प्याज, थोक में भी आम आदमी की पहुंच से दूर

नवंबर में खरीद शुरू करने का दिया था भरोसा

कृषि बिल पर मंत्री कल्ला ने 'विपणन को संविधान के आर्टिकल 246 के अंतर्गत राज्य का विषय मानते हुए इस पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र को नहीं होने की बात कही. कल्ला ने कहां की केंद्र सरकार ने कानून जरूर बनाया है लेकिन जो भी किसानों के हित में होगा वह राज्य सरकार अपने हिसाब से करेगी. मंत्री कल्ला से जब मूंग के समर्थन मूल्य पर खरीद के बारे मे पूछा गया तो बोले कि पिछली बार मूंग की खरीद नवंबर पर थी, अभी अक्टूबर का महीना है जल्दी मंत्री और अधिकारियों से बात करके खरीद शुरू की जाएगी. मूंग खरीद की फाइल केंद्र सरकार को भेजी जा रही है. लेकिन करीब 25 दिन बाद भी खरीद शुरु नहीं हुई है.

Mung had to be sold cheaply
सस्ते दाम में बेचनी पड़ी मूंग

25 करोड़ का नुकसान

मूंग की खरीद और किसान का भला करने को लेकर राज्य सरकार भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर रही है, लेकिन किसान की फसल अब भी मण्डी में व्यापारी अपने मन मुताबिक दामों पर खरीद रहे हैं. जिले की धान मंडियों में मूंग की आवक सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह मे हो गयी थी. एसे में समर्थन मूल्य पर खरीद शुरु नहीं होने से किसान को अपनी मूंग समर्थन मूल्य से 1500 रुपए कम भाव में बेचना पड़ा. इसके चलते अकेले श्रीगंगानगर जिले के किसानों को मूंग की फसल में अब तक करीब 25 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.

Government has not started purchasing moong
सरकार ने नहीं शुरू की मूंग की खरीद

यह भी पढ़ें: SPECIAL: अब अलवर से होकर गुजरेगा दिल्ली-बड़ोदरा एक्सप्रेसवे, बदलेगी की शहर की सूरत

व्यापारी नेता चंद्रेश जैन कहते हैं कि मूंग की सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही मूंग मंडी में बिक चुका है. मूंग की बिक्री अक्टूबर महीने की शुरुआत में 5500 रुपए क्विंटल के हिसाब से शुरू हुई थी जो अब 7000 रुपए प्रति क्विंटल तक में बिक चुकी है. सरकार को अगर समर्थन मूल्य पर खरीद करनी थी तो करीब 1 महीने पहले शुरू करनी चाहिए थी ताकि किसान को बड़ा लाभ मिलता और सरकारी खरीद शुरू होने से बाजार को भी सपोर्ट मिलता. मूंग की यदि समय पर खरीद होती तो किसानों को करोड़ों का नुकसान नहीं होता. मूंग की फसल निकलने के बाद जो मूंग मंडी में बिका उसमें प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को 1500 रुपए प्रति क्विंटल तक का नुकसान हुआ है. ऐसे में पिछले डेढ़ महीने में मूंग की खरीद में किसान को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है.

यह भी पढ़ें: Special : गहलोत सरकार ने पटाखा बिक्री पर लगाई रोक, व्यवसायियों पर मंडरा रहा ये बड़ा संकट

मूंग के समर्थन मूल्य पर सरकार को खरीद करना चाहिए था तो फसल आने से पहले ही इसकी तैयारी करनी चाहिए थी. ऐसे में सरकार अब समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद शुरू करती है तो कोई मतलब नहीं रह जाता है. किसान की फसल निकले एक माह से अधिक का समय होने के बाद सरकार समर्थन मूल्य पर खरीद करती है तो समर्थन मूल्य पर खरीद करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि किसान को प्राइवेट में मूंग के भाव अब 7000 रुपए क्विंटल तक मिल रहे हैं. मूंग की खरीद समर्थन मूल्य पर नहीं होने से किसानों को अपना माल शुरुआती दौर में 5000 से 6000 रुपये के भाव में बेचना पड़ा है. ऐसे में सरकारी खरीद न होने से किसानों को करोड़ों का नुकसान हुआ है.

समर्थन मूल्य पर खरीद को लेकर सरकार ने इतने अड़ंगे लगा दिए हैं कि खरीद शुरू होने से पहले ही किसान ने अपना माल मजबूरी में मंडी के व्यापारियों को बेच दिया है. किसान की आर्थिक हालत ठीक नहीं है, इसलिए समय से पहले किसानों ने अपना माल व्यापारियों को बेच दिया है. समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने से किसान काफी मायूस हैं. किसानों का माल बाजार में बिक चुका होगा तब सरकारी एजेंसी समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू करेगी. ऐसे में किसानों का हित करने का दंभ भरने वाली सरकारें उन्हें गुमराह कर रही है.

श्रीगंगानगर. देश मे केंद्र और राज्यों की सरकारें भले ही किसान हितेशी होने का ढिंढोरा पीट रही हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कोई भी सरकार किसानों के भले का नहीं सोच रही है. किसानों को केवल वोट बैंक मानते हुए उनको हमेशा की तरह लुभावने वायदे कर आश्वशन की घुट्टी पिलाती रहती है. केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों की हालत सुधारने का हवाला देकर जहां तीन कृषि कानून लागू किए हैं तो वहीं कांग्रेस सरकार ने इन कृषि कानूनों को किसानों के लिए गलत बताते हुए सड़क से संसद तक विरोध के स्वर छेड़ रखे हैं. लेकिन इस बीच अगर किसान की हालत पर नजर डालकर उसकी फसल खरीद पर बात करें तो पता लगेगा की कोई भी सरकार किसान की फसल खरीद को लेकर गम्भीर नहीं है.

सरकारी नीतियों में उलझे किसान

राजस्थान की गहलोत सरकार के मंत्री बीडी कल्ला कृषि प्रधान कहे जाने वाले श्रीगंगानगर जिले के दौरे पर करीब 25 दिन पहले कृषि कानून के विरोध में किसानों से चर्चा करने आए थे. 'मंत्री जी' से जब किसान हितेशी होने के बाद भी किसान की मूंग की फसल खरीद करने और कृषि कानून के बारे मे पूछा गया था तो कुछ अलग ही बातें सुनने को मिलीं. इससे साफ लगा कि वे किसानों को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं.

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नवंबर में खरीद शुरू करने का दिया था भरोसा

कृषि बिल पर मंत्री कल्ला ने 'विपणन को संविधान के आर्टिकल 246 के अंतर्गत राज्य का विषय मानते हुए इस पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र को नहीं होने की बात कही. कल्ला ने कहां की केंद्र सरकार ने कानून जरूर बनाया है लेकिन जो भी किसानों के हित में होगा वह राज्य सरकार अपने हिसाब से करेगी. मंत्री कल्ला से जब मूंग के समर्थन मूल्य पर खरीद के बारे मे पूछा गया तो बोले कि पिछली बार मूंग की खरीद नवंबर पर थी, अभी अक्टूबर का महीना है जल्दी मंत्री और अधिकारियों से बात करके खरीद शुरू की जाएगी. मूंग खरीद की फाइल केंद्र सरकार को भेजी जा रही है. लेकिन करीब 25 दिन बाद भी खरीद शुरु नहीं हुई है.

Mung had to be sold cheaply
सस्ते दाम में बेचनी पड़ी मूंग

25 करोड़ का नुकसान

मूंग की खरीद और किसान का भला करने को लेकर राज्य सरकार भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर रही है, लेकिन किसान की फसल अब भी मण्डी में व्यापारी अपने मन मुताबिक दामों पर खरीद रहे हैं. जिले की धान मंडियों में मूंग की आवक सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह मे हो गयी थी. एसे में समर्थन मूल्य पर खरीद शुरु नहीं होने से किसान को अपनी मूंग समर्थन मूल्य से 1500 रुपए कम भाव में बेचना पड़ा. इसके चलते अकेले श्रीगंगानगर जिले के किसानों को मूंग की फसल में अब तक करीब 25 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.

Government has not started purchasing moong
सरकार ने नहीं शुरू की मूंग की खरीद

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व्यापारी नेता चंद्रेश जैन कहते हैं कि मूंग की सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही मूंग मंडी में बिक चुका है. मूंग की बिक्री अक्टूबर महीने की शुरुआत में 5500 रुपए क्विंटल के हिसाब से शुरू हुई थी जो अब 7000 रुपए प्रति क्विंटल तक में बिक चुकी है. सरकार को अगर समर्थन मूल्य पर खरीद करनी थी तो करीब 1 महीने पहले शुरू करनी चाहिए थी ताकि किसान को बड़ा लाभ मिलता और सरकारी खरीद शुरू होने से बाजार को भी सपोर्ट मिलता. मूंग की यदि समय पर खरीद होती तो किसानों को करोड़ों का नुकसान नहीं होता. मूंग की फसल निकलने के बाद जो मूंग मंडी में बिका उसमें प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को 1500 रुपए प्रति क्विंटल तक का नुकसान हुआ है. ऐसे में पिछले डेढ़ महीने में मूंग की खरीद में किसान को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है.

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मूंग के समर्थन मूल्य पर सरकार को खरीद करना चाहिए था तो फसल आने से पहले ही इसकी तैयारी करनी चाहिए थी. ऐसे में सरकार अब समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद शुरू करती है तो कोई मतलब नहीं रह जाता है. किसान की फसल निकले एक माह से अधिक का समय होने के बाद सरकार समर्थन मूल्य पर खरीद करती है तो समर्थन मूल्य पर खरीद करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि किसान को प्राइवेट में मूंग के भाव अब 7000 रुपए क्विंटल तक मिल रहे हैं. मूंग की खरीद समर्थन मूल्य पर नहीं होने से किसानों को अपना माल शुरुआती दौर में 5000 से 6000 रुपये के भाव में बेचना पड़ा है. ऐसे में सरकारी खरीद न होने से किसानों को करोड़ों का नुकसान हुआ है.

समर्थन मूल्य पर खरीद को लेकर सरकार ने इतने अड़ंगे लगा दिए हैं कि खरीद शुरू होने से पहले ही किसान ने अपना माल मजबूरी में मंडी के व्यापारियों को बेच दिया है. किसान की आर्थिक हालत ठीक नहीं है, इसलिए समय से पहले किसानों ने अपना माल व्यापारियों को बेच दिया है. समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने से किसान काफी मायूस हैं. किसानों का माल बाजार में बिक चुका होगा तब सरकारी एजेंसी समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू करेगी. ऐसे में किसानों का हित करने का दंभ भरने वाली सरकारें उन्हें गुमराह कर रही है.

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