श्रीमाधोपुर (सीकर). नवरात्र व दशहरे के बाद अब दीपावली की तैयारी जोर पकड़ने लगी है. लोग अपने-अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई में जुट गए हैं. दीपावली को लेकर बाजारों में विभिन्न सामग्रियों की दुकानें सजने लगी है. ऐसे में अब कुम्भकारों की ओर से दीप बनाने का काम भी जोरों पर है. जब से चाइनीज सजावटी सामानों के खिलाफ एक माहौल बना है. तब से दिवाली पर दीपक और अन्य मिट्टी के सामग्री की बिक्री कुछ बढ़ी है.
वहीं कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि दीपावली आते ही पूरे परिवार के लोगों के सहयोग से सिराई, दीपक और बच्चे को खेलने के लिए मिट्टी के खिलौने को बनाया जाता है. लोग विधि-विधान के अनुसार मिट्टी के कम से कम पांच दीपक घरों में अवश्य जलाते हैं. लोग अब मोमबत्ती व इलेक्ट्रॉनिक बल्बों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं और दीपक की जगह इनका प्रयोग कर लेते हैं. इससे कुम्भकारों के इस पुश्तैनी रोजगार पर गहरा असर पड़ा है. दीपावली के कारण ही उनका यह पुश्तैनी काम अब तक जीवित है.
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वहीं परिवार के सदस्य में से कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं. महिलाओं को आवा जलाने व पके हुए बर्तनों को व्यवस्थित रखने का जिम्मा सौंपा गया है. कुम्भकारों को इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी क्योंकि तीन चार वर्षों से चाइना के बने सामना का लोग विरोध कर रहे हैं. पिछले साल भी सात से आठ हजार दीपक व अन्य सामग्री बेची थी. उम्मीद है कि दस हजार से अधिक दीपक बिक जाएं. उन्होंने बताया कि अब इस कार्य में फायदा नहीं है. क्योंकि महंगाई बढ़ती जा रही है. लोगों को लगता है कि दीपक के दाम भी पहले की तरह ही हो.
चाक से बनती हैं कई चीजें
कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि करीब आठ से दस हजार रुपए में आने वाला चाक का पहिया बड़ी मेहनत से पत्थर के कारीगरों की ओर से तैयार किया जाता है. इस पर सारे मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं. दीपक, घड़ा, मलिया, करवा, गमला, गुल्लक, गगरी, मटकी, नाद, देवी देवता, कनारी, बच्चों की चक्की सहित अन्य उपकरण बनाए जाते हैं. कुम्हारों ने बताया कि चाक का पानी व मिट्टी औषधि का काम करती है. मिट्टे के बर्तनों की ओर रूझान कम होने के चलते अनेक परिवार अपने परंपरागत धंधे से विमुख होते जा रहे हैं. दीपावली पर मिट्टी का सामान तैयार करना उनके लिए सीजनेबल धंधा बनकर रह गया है. हालात यह है कि यदि वे दूसरा धंधा नहीं करेंगे तो दो जून की रोटी जुटा पाना कठिन हो जाएगा. कुम्हारों का कहना है कि दीपावली व गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग जरूर बढ़ जाती है, लेकिन बाद के दिनों में वे मजदूरी करके ही परिवार का पेट पालते हैं.
महिलाएं भी बंटाती है हाथ
मिट्टी के बर्तन बनाने में परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं. बच्चे मिट्टी छानते व गूंथते है, तो बड़े गुथी हुई मिट्टी से वस्तुएं बनाते है. महिलाएं इनमें रंग भरने से लेकर सामग्री को उठाने रखने का काम करती है. साथ ही मिट्टी के तवे व बर्तन बनाने में पुरुषों का हाथ बंटाती है. दशहरे से दीपावली के बीच काम अधिक होने से कई बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो जाता है. जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है. अपने हाथों को चाक पर चलाकर अनगढ़ माटी को दीपक का रूप देने वाले कुंभकार अपनी कला से दीपोत्सव पर्व को रोशन कर देते हैं. साल में एक बार आने वाले इस त्योहारी सीजन को लेकर कुंभकार भी खासे उत्साहित हैं. दरअसल, लम्बे समय से चायनीज लाइट्स की ब्रिकी होने से दीपकों की मांग कम हो गई थी, लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों से चायनीज उत्पाद के विरोध के बाद तो अब मिट्टी से बने दीपकों की मांग भी बढऩे लगी है. ऐसे में कुंभकार नए-नए डिजायनों में दीपकों का निर्माण करने लगे हैं.