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स्पेशल रिपोर्ट: दिवाली नजदीक आई तो चमकने लगा कुम्भकारों की उम्मीदों का दीपक

दीपावली को लेकर बाजारों में विभिन्न सामग्रियों की दुकानें सजने लगी है. तो दूसरी तरफ कुम्भकारों की ओर से दीप बनाने का काम भी जोरों पर है. जब से चाइनीज सजावटी सामानों के खिलाफ एक माहौल बना है, तब से दिवाली पर दीपक और अन्य मिट्टी के सामग्री की बिक्री कुछ बढ़ी है. देखिए श्रीमाधोपुर से स्पेशल रिपोर्ट

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Published : Oct 17, 2019, 11:45 PM IST

श्रीमाधोपुर (सीकर). नवरात्र व दशहरे के बाद अब दीपावली की तैयारी जोर पकड़ने लगी है. लोग अपने-अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई में जुट गए हैं. दीपावली को लेकर बाजारों में विभिन्न सामग्रियों की दुकानें सजने लगी है. ऐसे में अब कुम्भकारों की ओर से दीप बनाने का काम भी जोरों पर है. जब से चाइनीज सजावटी सामानों के खिलाफ एक माहौल बना है. तब से दिवाली पर दीपक और अन्य मिट्टी के सामग्री की बिक्री कुछ बढ़ी है.

दिवाली नजदीक आई तो चमकने लगा कुम्भकारों की उम्मीदों का दीपक

वहीं कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि दीपावली आते ही पूरे परिवार के लोगों के सहयोग से सिराई, दीपक और बच्चे को खेलने के लिए मिट्टी के खिलौने को बनाया जाता है. लोग विधि-विधान के अनुसार मिट्टी के कम से कम पांच दीपक घरों में अवश्य जलाते हैं. लोग अब मोमबत्ती व इलेक्ट्रॉनिक बल्बों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं और दीपक की जगह इनका प्रयोग कर लेते हैं. इससे कुम्भकारों के इस पुश्तैनी रोजगार पर गहरा असर पड़ा है. दीपावली के कारण ही उनका यह पुश्तैनी काम अब तक जीवित है.

पढें- स्पेशल रिपोर्ट: चाक की तरह चकरघिन्नी बनी कुम्हारों की जिंदगी, मिट्टी में तलाश रहे 'दो जून की रोटी'

वहीं परिवार के सदस्य में से कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं. महिलाओं को आवा जलाने व पके हुए बर्तनों को व्यवस्थित रखने का जिम्मा सौंपा गया है. कुम्भकारों को इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी क्योंकि तीन चार वर्षों से चाइना के बने सामना का लोग विरोध कर रहे हैं. पिछले साल भी सात से आठ हजार दीपक व अन्य सामग्री बेची थी. उम्मीद है कि दस हजार से अधिक दीपक बिक जाएं. उन्होंने बताया कि अब इस कार्य में फायदा नहीं है. क्योंकि महंगाई बढ़ती जा रही है. लोगों को लगता है कि दीपक के दाम भी पहले की तरह ही हो.

चाक से बनती हैं कई चीजें
कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि करीब आठ से दस हजार रुपए में आने वाला चाक का पहिया बड़ी मेहनत से पत्थर के कारीगरों की ओर से तैयार किया जाता है. इस पर सारे मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं. दीपक, घड़ा, मलिया, करवा, गमला, गुल्लक, गगरी, मटकी, नाद, देवी देवता, कनारी, बच्चों की चक्की सहित अन्य उपकरण बनाए जाते हैं. कुम्हारों ने बताया कि चाक का पानी व मिट्टी औषधि का काम करती है. मिट्टे के बर्तनों की ओर रूझान कम होने के चलते अनेक परिवार अपने परंपरागत धंधे से विमुख होते जा रहे हैं. दीपावली पर मिट्टी का सामान तैयार करना उनके लिए सीजनेबल धंधा बनकर रह गया है. हालात यह है कि यदि वे दूसरा धंधा नहीं करेंगे तो दो जून की रोटी जुटा पाना कठिन हो जाएगा. कुम्हारों का कहना है कि दीपावली व गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग जरूर बढ़ जाती है, लेकिन बाद के दिनों में वे मजदूरी करके ही परिवार का पेट पालते हैं.

पढें- स्पेशल रिपोर्ट : स्टील की चमक में खो गया 'पीतल', साल-दर-साल घटती गई बिक्री, बर्तन बनाने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल

महिलाएं भी बंटाती है हाथ
मिट्टी के बर्तन बनाने में परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं. बच्चे मिट्टी छानते व गूंथते है, तो बड़े गुथी हुई मिट्टी से वस्तुएं बनाते है. महिलाएं इनमें रंग भरने से लेकर सामग्री को उठाने रखने का काम करती है. साथ ही मिट्टी के तवे व बर्तन बनाने में पुरुषों का हाथ बंटाती है. दशहरे से दीपावली के बीच काम अधिक होने से कई बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो जाता है. जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है. अपने हाथों को चाक पर चलाकर अनगढ़ माटी को दीपक का रूप देने वाले कुंभकार अपनी कला से दीपोत्सव पर्व को रोशन कर देते हैं. साल में एक बार आने वाले इस त्योहारी सीजन को लेकर कुंभकार भी खासे उत्साहित हैं. दरअसल, लम्बे समय से चायनीज लाइट्स की ब्रिकी होने से दीपकों की मांग कम हो गई थी, लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों से चायनीज उत्पाद के विरोध के बाद तो अब मिट्टी से बने दीपकों की मांग भी बढऩे लगी है. ऐसे में कुंभकार नए-नए डिजायनों में दीपकों का निर्माण करने लगे हैं.

श्रीमाधोपुर (सीकर). नवरात्र व दशहरे के बाद अब दीपावली की तैयारी जोर पकड़ने लगी है. लोग अपने-अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई में जुट गए हैं. दीपावली को लेकर बाजारों में विभिन्न सामग्रियों की दुकानें सजने लगी है. ऐसे में अब कुम्भकारों की ओर से दीप बनाने का काम भी जोरों पर है. जब से चाइनीज सजावटी सामानों के खिलाफ एक माहौल बना है. तब से दिवाली पर दीपक और अन्य मिट्टी के सामग्री की बिक्री कुछ बढ़ी है.

दिवाली नजदीक आई तो चमकने लगा कुम्भकारों की उम्मीदों का दीपक

वहीं कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि दीपावली आते ही पूरे परिवार के लोगों के सहयोग से सिराई, दीपक और बच्चे को खेलने के लिए मिट्टी के खिलौने को बनाया जाता है. लोग विधि-विधान के अनुसार मिट्टी के कम से कम पांच दीपक घरों में अवश्य जलाते हैं. लोग अब मोमबत्ती व इलेक्ट्रॉनिक बल्बों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं और दीपक की जगह इनका प्रयोग कर लेते हैं. इससे कुम्भकारों के इस पुश्तैनी रोजगार पर गहरा असर पड़ा है. दीपावली के कारण ही उनका यह पुश्तैनी काम अब तक जीवित है.

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वहीं परिवार के सदस्य में से कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं. महिलाओं को आवा जलाने व पके हुए बर्तनों को व्यवस्थित रखने का जिम्मा सौंपा गया है. कुम्भकारों को इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी क्योंकि तीन चार वर्षों से चाइना के बने सामना का लोग विरोध कर रहे हैं. पिछले साल भी सात से आठ हजार दीपक व अन्य सामग्री बेची थी. उम्मीद है कि दस हजार से अधिक दीपक बिक जाएं. उन्होंने बताया कि अब इस कार्य में फायदा नहीं है. क्योंकि महंगाई बढ़ती जा रही है. लोगों को लगता है कि दीपक के दाम भी पहले की तरह ही हो.

चाक से बनती हैं कई चीजें
कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि करीब आठ से दस हजार रुपए में आने वाला चाक का पहिया बड़ी मेहनत से पत्थर के कारीगरों की ओर से तैयार किया जाता है. इस पर सारे मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं. दीपक, घड़ा, मलिया, करवा, गमला, गुल्लक, गगरी, मटकी, नाद, देवी देवता, कनारी, बच्चों की चक्की सहित अन्य उपकरण बनाए जाते हैं. कुम्हारों ने बताया कि चाक का पानी व मिट्टी औषधि का काम करती है. मिट्टे के बर्तनों की ओर रूझान कम होने के चलते अनेक परिवार अपने परंपरागत धंधे से विमुख होते जा रहे हैं. दीपावली पर मिट्टी का सामान तैयार करना उनके लिए सीजनेबल धंधा बनकर रह गया है. हालात यह है कि यदि वे दूसरा धंधा नहीं करेंगे तो दो जून की रोटी जुटा पाना कठिन हो जाएगा. कुम्हारों का कहना है कि दीपावली व गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग जरूर बढ़ जाती है, लेकिन बाद के दिनों में वे मजदूरी करके ही परिवार का पेट पालते हैं.

पढें- स्पेशल रिपोर्ट : स्टील की चमक में खो गया 'पीतल', साल-दर-साल घटती गई बिक्री, बर्तन बनाने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल

महिलाएं भी बंटाती है हाथ
मिट्टी के बर्तन बनाने में परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं. बच्चे मिट्टी छानते व गूंथते है, तो बड़े गुथी हुई मिट्टी से वस्तुएं बनाते है. महिलाएं इनमें रंग भरने से लेकर सामग्री को उठाने रखने का काम करती है. साथ ही मिट्टी के तवे व बर्तन बनाने में पुरुषों का हाथ बंटाती है. दशहरे से दीपावली के बीच काम अधिक होने से कई बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो जाता है. जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है. अपने हाथों को चाक पर चलाकर अनगढ़ माटी को दीपक का रूप देने वाले कुंभकार अपनी कला से दीपोत्सव पर्व को रोशन कर देते हैं. साल में एक बार आने वाले इस त्योहारी सीजन को लेकर कुंभकार भी खासे उत्साहित हैं. दरअसल, लम्बे समय से चायनीज लाइट्स की ब्रिकी होने से दीपकों की मांग कम हो गई थी, लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों से चायनीज उत्पाद के विरोध के बाद तो अब मिट्टी से बने दीपकों की मांग भी बढऩे लगी है. ऐसे में कुंभकार नए-नए डिजायनों में दीपकों का निर्माण करने लगे हैं.

Intro:श्रीमाधोपुर सीकर
चमकने लगा कुंभकारों की उम्मीदों का दीपक
कुम्हारों की मेहनत के चिरागों से जगमग होगा घर-आंगन
श्रीमाधोपुर। क्षेत्र में नवरात्र व दशहरे के बाद अब करवा चौथ व दीपावली की तैयारी जोर पकडऩे लगी है। लोग अपने-अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई में जुट गए हैं। दीपावली को लेकर बाजारों में विभिन्न सामग्रियों की दुकानें सजने लगी है। कुंभकारों की ओर से दीप बनाने का काम भी जोरों पर है। जब से चाइनीज सजावटी सामानों के खिलाफ एक माहौल बना है, तब से दिवाली पर दीपक और अन्य मिट्टी के सामग्री की बिक्री कुछ बढ़ी है।Body:चमकने लगा कुंभकारों की उम्मीदों का दीपक
कुम्हारों की मेहनत के चिरागों से जगमग होगा घर-आंगन
श्रीमाधोपुर। क्षेत्र में नवरात्र व दशहरे के बाद अब करवा चौथ व दीपावली की तैयारी जोर पकडऩे लगी है। लोग अपने-अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई में जुट गए हैं। दीपावली को लेकर बाजारों में विभिन्न सामग्रियों की दुकानें सजने लगी है। कुंभकारों की ओर से दीप बनाने का काम भी जोरों पर है। जब से चाइनीज सजावटी सामानों के खिलाफ एक माहौल बना है, तब से दिवाली पर दीपक और अन्य मिट्टी के सामग्री की बिक्री कुछ बढ़ी है।
कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि दीपावली आते ही पूरे परिवार के लोगों के सहयोग से सराई, दीपक व करी एवं बच्चे को खेलने के लिए मिट्टी के खिलौने को बनाया जाता है। लोग विधि-विधान के अनुसार मिट्टी के कम से कम पांच दीपक घरों में अवश्य जलाते हैं। लोग अब मोमबत्ती व इलक्ट्रोनिक बल्बों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं तथा दीपक की जगह इनका प्रयोग कर लेते हैं। इससे कुम्भकारों के इस पुश्तैनी रोजगार पर गहरा असर पड़ा है। दीपावली कारण ही उनका यह पुश्तैनी धंधा अब तक जीवित है। परिवार को कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं। महिलाओं को आवा जलाने व पके हुए बर्तनों को व्यवस्थित रखने का जिम्मा सौंपा गया है। कुम्भकारों को इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी क्योंकि तीन चार वर्षों से चाइना के बने सामना का लोग विरोध कर रहे हैं। पिछले साल भी सात से आठ हजार दीपक व अन्य सामग्री बेची थी। उम्मीद है कि दस हजार से अधिक दीपक बिक जाएं। उन्होंने बताया कि अब इस कार्य में फायदा नहीं है। क्योंकि महंगाई बढ़ती जा रही है। लोगों को लगता है कि दीपक के दाम भी पहले की तरह ही हो।
चाक से बनती हैं कई चीजें
कुम्भकार पूरण मल ने बताया कि करीब आठ से दस हजार रुपए में आने वाला चाक का पहिया बड़ी मेहनत से पत्थर के कारीगरों की ओर से तैयार किया जाता है। इस पर सारे मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। दीपक, घड़ा, मलिया, करवा, गमला, गुल्लक, गगरी, मटकी, नाद, देवी देवता, कनारी, बच्चों की चक्की सहित अन्य उपकरण बनाए जाते हैं। कुम्हारों ने बताया कि चाक का पानी व मिट्टी औषधि का काम करती है। मिट्टे के बर्तनों की ओर रूझान कम होने के चलते अनेक परिवार अपने परंपरागत धंधे से विमुख होते जा रहे हैं। दीपावली पर मिट्टी का सामान तैयार करना उनके लिए सीजनेबल धंधा बनकर रह गया है। हालात यह है कि यदि वे दूसरा धंधा नहीं करेंगे तो दो जून की रोटी जुटा पाना कठिन हो जाएगा। कुम्हारों का कहना है कि दीपावली व गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग जरूर बढ़ जाती है, लेकिन बाद के दिनों में वे मजदूरी करके ही परिवार का पेट पालते हैं।
महिलाएं भी बंटाती है हाथ- मिट्टी के बर्तन बनाने में परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं। बच्चे मिट्टी छानते व गूंथते है, तो बड़े गुथी हुई मिट्टी से वस्तुएं बनाते है। महिलाएं इनमें रंग भरने से लेकर सामग्री को उठाने रखने का काम करती है। साथ ही मिट्टी के तवे व बर्तन बनाने में पुरुषों का हाथ बंटाती है। दशहरे से दीपावली के बीच काम अधिक होने से कई बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो जाता है जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। अपने हाथों को चाक पर चलाकर अनगढ़ माटी को दीपक का रूप देने वाले कुंभकार अपनी कला से दीपोत्सव पर्व को रोशन कर देते हैं। साल में एक बार आने वाले इस त्योहारी सीजन को लेकर कुंभकार भी खासे उत्साहित हैं। पिछले तीन-चार वर्षों से चायनीज आइटम के विरोध के चलते बाजार में मिट्टी के दीपकों की मांग अब अधिक होने लगी है। दीपोत्सव को लेकर ग्रामीण क्षेत्र में दीपक बनाने वाले कुंभकारों में काफी उत्साह है। दरअसल, लम्बे समय से चायनीज लाइट्स की ब्रिकी होने से दीपकों की मांग कम हो गई थी, लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों से चायनीज उत्पाद के विरोध के बाद तो अब मिट्टी से बने दीपकों की मांग भी बढऩे लगी है। ऐसे में कुंभकार नए-नए डिजायनों में दीपकों का निर्माण करने लगे हैं।
इनका कहना है-
कुंभकार की मां करणी देवी ने बताया की बच्चों के पिता की मौत के बाद परिवार पर गुजर-बसर करने का संकट आ गया था बेटे को मिट्टी के बर्तन बनाने का काम सिखाया अब दीपावली पर ही मिट्टी के बर्तनों की थोड़ी बहुत मांग है जिससे परिवार का गुजर-बसर चल रहा है
महंगाई के इस दौर में अब पुश्तैनी धन्धे से जुड़े रहना मुश्किल हो रहा है, लेकिन पिछले तीन-चार साल से मिट्टी के दीपकों की मांग बढऩे से इस बार कुछ आस जगी है यही सोचकर दीपक तैयार किए जा रहे हैं। ------पूरण मल कुंभकार श्रीमाधोपुर
बाईट-1. कुंभकार पूरणमल
2. कुंभकार की मां श्रावणी देवीConclusion:कुंभकार की मां करणी देवी ने बताया की बच्चों के पिता की मौत के बाद परिवार पर गुजर-बसर करने का संकट आ गया था बेटे को मिट्टी के बर्तन बनाने का काम सिखाया अब दीपावली पर ही मिट्टी के बर्तनों की थोड़ी बहुत मांग है जिससे परिवार का गुजर-बसर चल रहा है
महंगाई के इस दौर में अब पुश्तैनी धन्धे से जुड़े रहना मुश्किल हो रहा है, लेकिन पिछले तीन-चार साल से मिट्टी के दीपकों की मांग बढऩे से इस बार कुछ आस जगी है यही सोचकर दीपक तैयार किए जा रहे हैं। ------पूरण मल कुंभकार श्रीमाधोपुर
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