अलवर : राजस्थान का अलवर जिला सरसों उत्पादन में प्रदेश ही नहीं, अन्य कई राज्यों में अव्वल रहा है. यही कारण है कि अलवर जिले के खेतों में सरसों फसल में फूल खिलने पर राजस्थान ही नहीं, बल्कि आसपास के प्रदेशों के मधुमक्खी पालक खेतों के पास डेरा डाल लेते हैं. खेतों में सरसों के फूल खिलते ही शहद उत्पादकों के चेहरे खिल उठते हैं, लेकिन सरसों उत्पादक किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं. किसानों की चिंता का कारण है सरसों के फूलों पर मधुमक्खी के बैठने को लेकर भ्रांति. किसानों का मानना है सरसों के पौधों पर मधुमक्ख्यिों के बैठने से फूल मुरझा जाते हैं, जिससे सरसों का उत्पादन घट जाता है. वहीं, विशेषज्ञों के अनुसार इससे सरसों की उपज घटने के बजाय उसमें करीब 15 प्रतिशत का इजाफा होता है.
अलवर जिले में इन दिनों खेतों में सरसों की फसल लहलहा रही है. चहुंओर खेत सरसों के पीले फूलों से लदे दिखाई पड़ते हैं. सरसों की फसल में फूल खिलने के कारण मधुमक्खी पालकों ने सरसों के खेतों के आसपास डेरा डालना शुरू कर दिया है. गांवों में सरसों के खेतों के आसपास बड़ी संख्या में बॉक्स रखे दिखाई देते हैं. वर्तमान में अलवर शहर के पास, रामगढ़, राजगढ़, रैणी, बडोदामेव, लक्ष्मणगढ़ क्षेत्रों में मधुमक्खी पालकों ने सरसों के खेतों के पास डेरा जमा लिया है. मधुमक्खी पालकों के आने से किसानों को भी लाभ होता है. कारण है कि मधुमक्खी पालक किसानों से लीज पर सरसों के खेत लेते हैं और इसके बदले किसानों को हजारों की रकम भी देते हैं. अलवर जिले में करीब 450 मधुमक्खी पालक हैं, वहीं 50 हजार से ज्यादा मधुमक्खी की कॉलोनियों हैं. उद्यान विभाग के अनुसार मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खी पालन से जुड़ने के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है.
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शहद निर्माण में सरसों की भूमिका अहम : सरसों मधुमक्खियों के लिए शहद निर्माण में अहम भूमिका निभाती है. हनुमानगढ़ के मधुमक्खी पालक अमीन खान ने बताया कि तीन माह तक यह व्यवसाय मधुमक्खी पालन करने वालाें के लिए आय का अच्छा स्रोत साबित होगा. मधुमक्खी पालक ने बताया कि जिले में सरसों के खेत के पास सड़कों के किनारे एक जगह को लीज पर लेकर वहां बॉक्स को रख देते हैं. जो व्यक्ति कई सालों से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, उनके पास 150 से 200 बॉक्स होते हैं. इन्हीं बॉक्सों में शहद पालक मधुमक्खियों के माध्यम से शहद को एकत्रित करते हैं. मधुमक्खी पालक शहद के लिए एक जगह से दूसरी जगह पर जाते रहते हैं.
किसानो का ये है कहना : जिले के नया गांव डांगरवाडा के किसान दयाशंकर शर्मा ने कहा कि इस समय खेतों में सरसों की फसल लहरा रही है. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने 10 बीघा खेत में सरसों की फसल की बुआई की है, इसमें करीब 5 लाख रुपए का खर्चा आया है. सरसों की फसल खेतों में लहराते ही मधुमक्खी पालको का रुख यहां होता है, जिससे मधुमक्खियां सरसों के फूलों पर बैठकर रस खींच लेती है. इससे उनके फूल सूख कर झड़ जाते हैं, इससे किसानों को नुकसान होता है. वहीं, जिले के धोलान किसान के रोहिताश्व शर्मा ने कहा कि उन्होंने अपने चार बीघा खेत में सरसों की फसल की बुवाई की है. अब उत्पादन मिलने का समय नजदीक है, लेकिन इससे पहले मधुमक्खी पालकों के आने से अब मधुमक्खियां सरसों के फूलों पर बैठकर रस चूस रही है. इससे उत्पादन में कमी होने की आशंका है.
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परागण ज्यादा होने से बढ़ जाता है उत्पादन : उद्यान विभाग के सहायक निदेशक मुकेश कुमार चौधरी ने बताया कि जिले के ज्यादातर क्षेत्र में लहरा रही पीले फूलों वाली सरसों की फसल मधुमक्खी पालकों के लिए अच्छी होती है. मधुमक्खी पालकों के लिए सरसों, सब्जियों पर लगे फूल, मूली आदि के फूलों में परागण होने से उत्पादन भी अधिक होता है. किसानों में यह भ्रांति है कि मधुमक्खी के सरसों के फूल सर्दी पर बैठने से फूल खराब हो जाता है, जिससे फसल का उत्पादन कम होता है, जबकि सरसों के परगना में मधुमक्खियां का बड़ा रोल रहता है. इससे उपज में करीब 15% तक की वृद्धि होती है. एक कॉलोनी से साल भर में करीब 40 किलो शहद मिलता है. शहद के रेट में बाजार में उतार-चढ़ाव रहता है इसके भाव 70 से 125 रुपए प्रति किलो तक रहते हैं. सर्दी की शुरुआत से ही उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों के मधुमक्खी पालक अलवर जिले का रुख करते हैं.