नागौर. देवी पूजा और उपासना के लिए नवरात्र का खास महत्व है. चैत्र और अश्विन माह में देशभर में नवरात्र श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाय़ा जाता है. दोनों नवरात्र में प्रतिपदा के दिन हर देवी मंदिर के साथ ही घर-घर मे घट स्थापना होती है और नौ दिन तक उपासना की जाती है. लेकिन नागौर जिले के मेड़ता रोड कस्बे स्थित ब्राह्मणी माता का मंदिर ऐसा है जहां घट स्थापना प्रतिपदा से एक दिन पहले यानी अमावस्या को ही हो जाती है.
अमावस्या को घट स्थापना के बाद देवी की आरती होती है. इस आरती के दौरान मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं में से जिन्हें माता का आदेश होता है. वह मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं. इसके बाद वे भक्त सप्तमी तक गर्भगृह में रहकर ब्राह्मणी माता की उपासना करते हैं. इस दौरान वे किसी भी तरह का आहार या भोजन नहीं करते. सात दिन तक वे सिर्फ चरणामृत लेकर माता की भक्ति में लीन रहते हैं. खास बात यह है कि अमावस्या से लेकर सप्तमी तक माता को भी भोग नहीं लगता है. सप्तमी के दिन माता को भोग लगता है और उसी दिन गर्भगृह में उपासना करने वाले माता के भक्त भी प्रसाद ग्रहण करते हैं.
नवरात्र के दौरान माता को सप्तमी का भोग किसके घर का लगेगा. इसका चयन का तरीका भी अनूठा है. दरसअल, नवरात्र की पंचमी को रात की आरती के समय मंदिर में उपासना कर रहे भक्त में से किसी एक भक्त द्वारा मंदिर के पुजारी परिवारों में से किसी एक परिवार का नाम पुकारा जाता है. उस परिवार के घर पर बना भोग सप्तमी को माता ब्राह्मणी को लगाया जाता है और उसी घर में वे भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं. जो नवरात्र के दौरान गर्भगृह में उपासना कर रहे होते हैं. जिस घर का भोग सप्तमी को माता को चढ़ता है. उस दिन उस घर में उत्सव जैसा माहौल होता है.
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मेड़ता रोड के ब्राह्मणी माता मंदिर में प्रतिपदा के बजाए अमावस्या को ही घट स्थापना क्यों होती है. इसके पीछे प्रमुख रूप से तीन कारण बताए जाते हैं. पहला कारण यह माना जाता है कि विदेशी आक्रमणकारियों के हमले से मंदिर को बचाने के प्रयास में मंदिर के पुजारी परिवार के लोगों ने प्राणों का बलिदान दिया था. उस दिन प्रतिपदा थी, इसलिए शोक के चलते आज भी इस मंदिर में प्रतिपदा के बजाए अमावस्या को हो घट स्थापना होती है.
दूसरा कारण यह बताया जाता है कि यह पुराने समय में यह मंदिर सुदूर ग्रामीण इलाके में पड़ता था. जिसके आसपास कोई इंसानी बस्ती नहीं थी. पुजारी भी करीब 6 किमी दूर गांव से यहां पूजा करने आते थे. पहले पुजारियों की आय का जरिया भी खेती ही होता था और किसान खेतों में अमावस्या को काम नहीं करते थे. इसलिए इस दिन छुट्टी होने के चलते अमावस्या को ही घट स्थापना की परंपरा बन गई.
तीसरा कारण बताया जाता है कि प्राचीन काल में पुजारियों ने ग्रह नक्षत्रों की गणना के आधार पर अमावस्या को घट स्थापना करना शुरू किया और अब साल दर साल यह परंपरा बन गई है. कारण चाहे जो भी हो. लेकिन अमावस्या को घट स्थापना इस मंदिर की अलग खासियत है और इसी के चलते आज देशभर में यह मंदिर अलग पहचान रखता है.
बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 1500 साल पुराना है. जिसे बाहरी आक्रमणकारियों ने दो बार ध्वस्त किया. दूसरी बार जब मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया. उसके बाद जोधपुर के राजा पड़िहार ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था. तब मंदिर के गर्भगृह के निर्माण में उन्हीं खंडित पत्थरों का निर्माण किया गया. इस मंदिर में गर्भगृह के ठीक सामने आज भी एक तोरण द्वार खड़ा है, जो उस समय की समृद्ध स्थापत्य कला का नमूना है.
बताया जाता है कि यह तोरण द्वार नौ चरण में बना था. जो चार युगों यानी सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कल युग का प्रतीक भी माना गया है. बताया जाता है कि शाम को माता की आरती के बाद इस तोरण द्वार के शिखर पर मशाल ज्योत रखी जाती थी. इस ज्योत के दर्शन जोधपुर किले से होते थे और राजा ज्योत के दर्शन के बाद ही शाम का भोजन करते थे.
अपनी परंपराओं, देवी के चमत्कारों और ऐतिहासिक महत्व के कारण मेड़ता रोड का ब्राह्मणी माता मंदिर देशभर में भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है. चैत्र और अश्विन के नवरात्र में खास तौर पर देशभर से श्रद्धालु यहां अपनी मनौती लेकर दर्शन के लिए पहुंचते हैं. हालांकि, इस बार महामारी कोविड-19 का असर यहां भी साफ देखा जा रहा है. मंदिर में पिछले सालों की तुलना में श्रद्धालुओं की संख्या कम है. वहीं, मंदिर ट्रस्ट की ओर से मास्क पहनकर आने वालों को ही प्रवेश दिया जा रहा है और शारीरिक दूरी संबंधी नियम की पालना करवाई जा रही है.