नागौर. शहर के गांधी चौक स्थित मदरसा सूफिया ह्नफिया के सामने की बेशकीमती जमीन एक बार से फिर चर्चा में आ गई है. पिछले दिनों कोर्ट के फैसले के बाद नगर परिषद ने इस जमीन को वक्फ बोर्ड को सुपुर्द किया था, लेकिन मामले में अब नया मोड़ सामने आया है. जहां नगर परिषद की नव निर्वाचित सभापति मीतू बोथरा, व्यक्तिगत रूप से हाईकोर्ट जाकर यथास्थिति का आदेश लेकर आ गई है.
यही नहीं सभापति ने कहा है कि ये जमीन नगर परिषद की है और हाईकोर्ट ने 6 सप्ताह का समय दिया है, हम हमारी इस बेशकीमती जमीन के लिए लड़ाई लड़ेंगे. बता दें कि नागौर के ह्रदय स्थल गांधी चौक के पास स्थित इस जमीन के बारे में कहा जाता रहा है कि ये सम्राट अकबर के नवरत्नों में से दो भाइयों अबुल फैजी और अबुल फजल का मकान था और इसी में, दोनों भाइयों के परिवार के वंशज सूफी चुटिया शाह का मजार भी यही है.
जानकारों के मुताबिक मदरसा हन्फिया सूफिया नागौर के सामने स्थित वक्फ संपत्ति दरगाह चुटिया शाह जिसका संपदा अधिकारी वक्फ जयपुर में साबिक सदर रमजान ठेकेदार की ओर से 1994 में दावा दायर किया था. जिसमें फैसला अक्टूबर 2019 को होने के पश्चात नगर परिषद नागौर की ओर से जिला सेशन जज मेड़ता के यहां अपील की गई थी, जो अपील खारिज होने पर अंदर मियाद आगामी अपील नहीं होने से फैसले के मुताबिक आयुक्त नगर पालिका की ओर से पिछले महीने, 22 फरवरी 2021 को पुलिस की मौजूदगी में बोर्ड के प्रतिनिधि को इस भवन का कब्जा सुपुर्द कर नगर परिषद आयुक्त मनीषा चौधरी की मौजूदगी में सभी सामान हटा लिया गया था.
वर्तमान सभापति नगर परिषद नागौर ने आयुक्त नगर परिषद के निर्णय के विरुद्ध इस संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं मानकर अपने नाम से सिविल रिट पेश कर यथास्थिति का उक्त आदेश प्राप्त कर लिया है, जबकि सभापति मीतू बोथरा को 8 मुस्लिम पार्षदों के समर्थन के बावजूद अपने स्तर पर रिट करना उनके समर्थक 8 मुस्लिम पार्षदों के अस्तित्व के लिए प्रश्न खड़ा कर दिया है. सवाल यह है कि आखिर 17 साल बाद कोर्ट के फैसले से जमीन वक्फ बोर्ड की साबित हुई तो फिर सभापति को क्यों व्यक्तिगत रूप से हाईकोर्ट जाना पड़ा है.
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चर्चाओं के दौर नागौर में चल पड़े है, जिसमें ये भी कहा जा रहा है कि क्या सभापति मीतू बोथरा किसी के इशारे पर चल रही है. जब 17 साल की कानूनी लड़ाई के बाद जमीन वक्फ बोर्ड को मिली, तो फिर सभापति क्यों फिर इस मुद्दे को उछालना चाह रही है. नागौर में दरगाहों से जुड़े प्रतिनिधियों का कहना है कि, इस मुद्दे के जरिए नागौर नगर परिषद के कंधे पर कोई बंदूक रखना चाहता है.