नागौर. कोरोना वायरस के खिलाफ देश दोहरी जंग लड़ रहा है. एक तरफ कोरोना वॉरियर्स लोगों को घातक महामारी COVID-19 के संक्रमण से बचाने में जुटे हैं. वहीं, प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती बन गई है. इसमें राजस्थान रोडवेज के चालक और कंडक्टर अहम भूमिका निभा रहे हैं.
ना दिन का पता और ना ही रात का. ना खाने का ठिकाना और ना ही सोने का. इस बीच उनके घर आने-जाने का कोई समय निश्चित नहीं है. यहां तक कि भोजन करने और सोने का भी कोई निश्चित समय और ठिकाना नहीं है. ऐसे में जहां और जब भोजन मिल जाए, ये चालक अपने पेट की आग बुझा लेते हैं. जब भी अपने काम से फुरसत मिल जाए, तो ये थोड़ा सुस्ता लेते हैं. जगह नहीं मिलने पर बस की सीट या छत पर खुले आसमान के नीचे ही सो जाते हैं.
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नागौर में फंसे दूसरे राज्यों के मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने में और दूसरे राज्यों में फंसे नागौर के लोगों को वापस लाने का काम ये कोरोना वॉरियर कर रहे हैं. इसके साथ ही जो प्रवासी मजदूर ट्रेन से आ या जा रहे हैं. उन्हें नागौर रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने और रेलवे स्टेशन से घर पहुंचाने में भी रोडवेज के चालक-परिचालक मुस्तैदी से ड्यूटी दे रहे हैं.
इन चालक-परिचालकों का कहना है कि वैसे तो सामान्य दिनों में भी उनका काम दूसरों से अलग ही होता है. दिन हो या रात, कोई भी मौसम हो या त्योहार, वे लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए सफर पर होते हैं. लेकिन आमतौर पर ड्यूटी का समय निश्चित होता है.
वहीं कोरोना काल में ड्यूटी का समय तय नहीं है. ऐसे में जब भी प्रशासन या उच्चाधिकारियों के निर्देश मिलते हैं. दिन हो या रात वे प्रवासियों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए बस लेकर निकल पड़ते हैं. इस बीच जहां समय मिलता है, भोजन कर लेते हैं और जहां जगह मिलती है, थोड़ा सुस्ता लेते हैं. किसी भी जगह बस को छोड़कर भी नहीं जा सकते. इसलिए बस के भीतर या बस की छत पर ही आराम कर लेते हैं.
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कोरोना के खिलाफ चल रही जंग के बीच प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के काम में लगे इन कोरोना वारियर्स का कहना है कि हर किसी को उनकी मंजिल तक पहुंचाने में जो सुकून मिलता है. वह शब्दों में बयां करना मुश्किल है. हालांकि, इन सबके बीच समय पर वेतन भत्ते नहीं मिलने और अब तक सातवें वेतनमान का लाभ नहीं मिलने की मायूसी भी बिना कहे ही इनके चेहरे पर अनायास ही उभर आती है.