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ज्योति मिर्धा अकेली खड़ी हैं लेकिन...तगड़ी चुनौती देगी हनुमान बेनीवाल को - Jyoti Mirdha

लोकसभा चुनाव के सियासी जमीन पर भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच गठबंधन होने के बाद नागौर की सियासत सुर्ख हो गई है. इस सीट पर  बेनीवाल और कांग्रेस की ज्योति मिर्धा के बीच होने वाले राजनीतिक मुकाबले पर सभी की नजरें टिक गई है....

नागौर लोकसभा सीट पर हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच होगा कड़ा मुकाबला।
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Published : Apr 4, 2019, 3:29 PM IST

Updated : Apr 4, 2019, 4:43 PM IST

नागौर . लोकसभा के सियासी जमीन को साधने में जुटी भाजपा और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के बीच हुए गठबंधन ने राजस्थान में सियासी उबाल ला दिया है. इस बदली हुई राजनीतिक तस्वीर के बीच नागौर की सियासत सुर्ख हो गई है. इस सीट पर एक तरफ जहां भाजपा समर्थित बेनीवाल मैदान में हैं. वहीं दूसरी तरफ जाट राजनीति में खास पहचान रखने वाले मिर्धा परिवार की ज्योति मिर्धा हैं. हॉट सीट में बदली नागौर के समीकरणों के साथ ही बेनीवाल और मिर्धा के बीच होने वाले राजनीतिक मुकाबले पर हर किसी की निगाहें थम गई हैं.

खांटी जाट राजनीति का केंद्र रहा नागौर के जमीन पर होने जा रहे दो दिग्गजों के बीच के मुकाबले ने अभी से सियासी चर्चाओं का बाजार गरम कर दिया है. इस बार ये चर्चा इसलिए भी खास है क्योंकि, बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच सीधा मुकाबला होने के आसार बन गए हैं. लेकिन, यहां बेनीवाल के लिए मिर्धा परिवार का नाम और ज्योति मिर्धा के रूप में खड़ी मजबूत प्रत्याशी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं. इसे भेदना इतना आसान दिखाई नहीं देता है. 2009 में सांसद बनने के बाद ज्योति मिर्धा पिछले चुनाव में करीब 75 हजार वोट से हार गई थी. इस चुनाव के दौरान निर्दलीय मैदान में उतरे बेनीवाल ने 1 लाख 59 हजार वोट हासिल किए थे. चुनाव के बाद से ही मिर्धा इस हार के लिए बेनीवाल को ही जिम्मेदार मानती रही हैं.

भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच हुआ गठबंधन।

ऐसे में दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान काफी पुरानी है. जिसे देखते हुए यह माना जा रहा है कि नागौर सीट पर होने वाला चुनावी दंगल बेहद खास रहने वाला है. दो जाट नेताओं के बीच होने वाले इस जंग में कौन बाजी मारेगा, ये सवाल तो अभी भविष्य के गर्भ में है. लेकिन, इतना तय है कि बेनीवाल के लिए इस सीट पर जीत आसान नहीं है. इसके पीछे प्रमुख कारण जाट मतदाताओं के बीच मिर्धा परिवार का बड़ा नाम होना है. जाट राजनीति को शिखर पर पहुंचाने वाले स्व. नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा अपनी सियासी जमीन को खुद के मेहनत के साथ ही परिवार के नाम पर मजबूत बनाने में जुटी है. वैसे भी मिर्धा परिवार का नाम राजनीति के लिहाज से काफी बड़ा ब्रांड के रूप में रहा है. इस परिवार की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में आपातकाल के बाद जब कांग्रेस पूरे नॉर्थ इंडिया से साफ हो गई थी. तब भी मिर्धा परिवार ने राजस्थान के चुनाव में मारवाड़ की 42 में से 26 सीटें जीत ली थी.

इस परिवार का यहां की राजनीति पर रहे गहरे असर के बल पर ही ज्योति मिर्धा एक बार सांसद रह चुकी हैं. हालांकि, 2014 में मोदी लहर में वे हार गई थी. लेकिन, इस बार फिर उनके मैदान में उतरने के साथ ही मिर्धा परिवार का नाम चर्चा में आ गया है. राजनीति के जानकारों की मानें तो इस परिवार के नाम और कांग्रेस के काम के बल पर इस बार ज्योति अपने सियासी भंवर को पार करने में लगी हैं. वे सारे समीकरणों को बिठा रही हैं. हालांकि, उनके सामने मैदान में उतरे बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ भी कमजोर नहीं है. खींवसर विधानसभा सीट से लगातार तीन बार से विधायक बेनीवाल का भी यहां के जाट मतदाताओं के बीच गहरा असर रहा है. हाल में हुए राजस्थान चुनाव के दौरान बेनीवाल ने अपनी नई पार्टी बनाने के साथ ही राजनीतिक जमीन पर अलग पहचान बनाने की कोशिश की है. नागौर सीट पर बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ के बीच अब भाजपा का साथ मिलने से वे ज्यादा मजबूत हुए हैं.

नागौर . लोकसभा के सियासी जमीन को साधने में जुटी भाजपा और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के बीच हुए गठबंधन ने राजस्थान में सियासी उबाल ला दिया है. इस बदली हुई राजनीतिक तस्वीर के बीच नागौर की सियासत सुर्ख हो गई है. इस सीट पर एक तरफ जहां भाजपा समर्थित बेनीवाल मैदान में हैं. वहीं दूसरी तरफ जाट राजनीति में खास पहचान रखने वाले मिर्धा परिवार की ज्योति मिर्धा हैं. हॉट सीट में बदली नागौर के समीकरणों के साथ ही बेनीवाल और मिर्धा के बीच होने वाले राजनीतिक मुकाबले पर हर किसी की निगाहें थम गई हैं.

खांटी जाट राजनीति का केंद्र रहा नागौर के जमीन पर होने जा रहे दो दिग्गजों के बीच के मुकाबले ने अभी से सियासी चर्चाओं का बाजार गरम कर दिया है. इस बार ये चर्चा इसलिए भी खास है क्योंकि, बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच सीधा मुकाबला होने के आसार बन गए हैं. लेकिन, यहां बेनीवाल के लिए मिर्धा परिवार का नाम और ज्योति मिर्धा के रूप में खड़ी मजबूत प्रत्याशी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं. इसे भेदना इतना आसान दिखाई नहीं देता है. 2009 में सांसद बनने के बाद ज्योति मिर्धा पिछले चुनाव में करीब 75 हजार वोट से हार गई थी. इस चुनाव के दौरान निर्दलीय मैदान में उतरे बेनीवाल ने 1 लाख 59 हजार वोट हासिल किए थे. चुनाव के बाद से ही मिर्धा इस हार के लिए बेनीवाल को ही जिम्मेदार मानती रही हैं.

भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच हुआ गठबंधन।

ऐसे में दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान काफी पुरानी है. जिसे देखते हुए यह माना जा रहा है कि नागौर सीट पर होने वाला चुनावी दंगल बेहद खास रहने वाला है. दो जाट नेताओं के बीच होने वाले इस जंग में कौन बाजी मारेगा, ये सवाल तो अभी भविष्य के गर्भ में है. लेकिन, इतना तय है कि बेनीवाल के लिए इस सीट पर जीत आसान नहीं है. इसके पीछे प्रमुख कारण जाट मतदाताओं के बीच मिर्धा परिवार का बड़ा नाम होना है. जाट राजनीति को शिखर पर पहुंचाने वाले स्व. नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा अपनी सियासी जमीन को खुद के मेहनत के साथ ही परिवार के नाम पर मजबूत बनाने में जुटी है. वैसे भी मिर्धा परिवार का नाम राजनीति के लिहाज से काफी बड़ा ब्रांड के रूप में रहा है. इस परिवार की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में आपातकाल के बाद जब कांग्रेस पूरे नॉर्थ इंडिया से साफ हो गई थी. तब भी मिर्धा परिवार ने राजस्थान के चुनाव में मारवाड़ की 42 में से 26 सीटें जीत ली थी.

इस परिवार का यहां की राजनीति पर रहे गहरे असर के बल पर ही ज्योति मिर्धा एक बार सांसद रह चुकी हैं. हालांकि, 2014 में मोदी लहर में वे हार गई थी. लेकिन, इस बार फिर उनके मैदान में उतरने के साथ ही मिर्धा परिवार का नाम चर्चा में आ गया है. राजनीति के जानकारों की मानें तो इस परिवार के नाम और कांग्रेस के काम के बल पर इस बार ज्योति अपने सियासी भंवर को पार करने में लगी हैं. वे सारे समीकरणों को बिठा रही हैं. हालांकि, उनके सामने मैदान में उतरे बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ भी कमजोर नहीं है. खींवसर विधानसभा सीट से लगातार तीन बार से विधायक बेनीवाल का भी यहां के जाट मतदाताओं के बीच गहरा असर रहा है. हाल में हुए राजस्थान चुनाव के दौरान बेनीवाल ने अपनी नई पार्टी बनाने के साथ ही राजनीतिक जमीन पर अलग पहचान बनाने की कोशिश की है. नागौर सीट पर बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ के बीच अब भाजपा का साथ मिलने से वे ज्यादा मजबूत हुए हैं.

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ज्योति मिर्धा अकेली खड़ी हैं लेकिन...तगड़ी चुनौती देगी हनुमान बेनीवाल को



लोकसभा चुनाव के सियासी जमीन पर भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच गठबंधन होने के बाद नागौर की सियासत सुर्ख हो गई है. इस सीट पर  बेनीवाल और कांग्रेस की ज्योति मिर्धा के बीच होने वाले राजनीतिक मुकाबले पर सभी की नजरें टिक गई है....



नागौर . लोकसभा के सियासी जमीन को साधने में जुटी भाजपा और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के बीच हुए गठबंधन ने राजस्थान में सियासी उबाल ला दिया है. इस बदली हुई राजनीतिक तस्वीर के बीच नागौर की सियासत सुर्ख हो गई है. इस सीट पर एक तरफ जहां भाजपा समर्थित बेनीवाल मैदान में हैं. वहीं दूसरी तरफ जाट राजनीति में खास पहचान रखने वाले मिर्धा परिवार की ज्योति मिर्धा हैं. हॉट सीट में बदली नागौर के समीकरणों के साथ ही बेनीवाल और मिर्धा के बीच होने वाले राजनीतिक मुकाबले पर हर किसी की निगाहें थम गई हैं.

खांटी जाट राजनीति का केंद्र रहा नागौर के जमीन पर होने जा रहे दो दिग्गजों के बीच के मुकाबले ने अभी से सियासी चर्चाओं का बाजार गरम कर दिया है. इस बार ये चर्चा इसलिए भी खास है क्योंकि, बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच सीधा मुकाबला होने के आसार बन गए हैं. लेकिन, यहां बेनीवाल के लिए मिर्धा परिवार का नाम और ज्योति मिर्धा के रूप में खड़ी मजबूत प्रत्याशी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं. इसे भेदना इतना आसान दिखाई नहीं देता है. 2009 में सांसद बनने के बाद ज्योति मिर्धा पिछले चुनाव में करीब 75 हजार वोट से हार गई थी. इस चुनाव के दौरान निर्दलीय मैदान में उतरे बेनीवाल ने 1 लाख 59 हजार वोट हासिल किए थे. चुनाव के बाद से ही मिर्धा इस हार के लिए बेनीवाल को ही जिम्मेदार मानती रही हैं. ऐसे में दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान काफी पुरानी है. जिसे देखते हुए यह माना जा रहा है कि नागौर सीट पर होने वाला चुनावी दंगल बेहद खास रहने वाला है. दो जाट नेताओं के बीच होने वाले इस जंग में कौन बाजी मारेगा, ये सवाल तो अभी भविष्य के गर्भ में है. लेकिन, इतना तय है कि बेनीवाल के लिए इस सीट पर जीत आसान नहीं है. इसके पीछे प्रमुख कारण जाट मतदाताओं के बीच मिर्धा परिवार का बड़ा नाम होना है. जाट राजनीति को शिखर पर पहुंचाने वाले स्व. नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा अपनी सियासी जमीन को खुद के मेहनत के साथ ही परिवार के नाम पर मजबूत बनाने में जुटी है. वैसे भी मिर्धा परिवार का नाम राजनीति के लिहाज से काफी बड़ा ब्रांड के रूप में रहा है. इस परिवार की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इसी  से लगाया जा सकता है कि देश में आपातकाल के बाद जब कांग्रेस पूरे नॉर्थ इंडिया से साफ हो गई थी. तब भी मिर्धा परिवार ने राजस्थान के चुनाव में मारवाड़ की 42 में से 26 सीटें जीत ली थी. इस परिवार का यहां की राजनीति पर  रहे गहरे असर के बल पर ही ज्योति मिर्धा एक बार सांसद रह चुकी हैं. हालांकि, 2014 में मोदी लहर में वे हार गई थी. लेकिन, इस बार फिर उनके मैदान में उतरने के साथ ही मिर्धा परिवार का नाम चर्चा में आ गया है. राजनीति के जानकारों की मानें तो इस परिवार के नाम और कांग्रेस के काम के बल पर इस बार ज्योति अपने सियासी भंवर को पार करने में लगी हैं. वे सारे समीकरणों को बिठा रही हैं. हालांकि, उनके सामने मैदान में उतरे बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ भी कमजोर नहीं है. खींवसर विधानसभा सीट से लगातार तीन बार से विधायक बेनीवाल का भी यहां के जाट मतदाताओं के बीच गहरा असर रहा है. हाल में हुए राजस्थान चुनाव के दौरान बेनीवाल ने अपनी नई पार्टी बनाने के साथ ही राजनीतिक जमीन पर अलग पहचान बनाने की कोशिश की है. नागौर सीट पर बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ के बीच अब भाजपा का साथ मिलने से वे ज्यादा मजबूत हुए हैं.


Conclusion:
Last Updated : Apr 4, 2019, 4:43 PM IST
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