नागौर. मानसून से पहले वन विभाग अपनी नर्सरियों में फलदार और छायादार पेड़ों की पौध तैयार करता है, ताकि बारिश के मौसम में ये पौधे लगाकर उन्हें पेड़ के रूप में बड़ा किया जा सके. इस साल मानसून से पहले वन विभाग की ओर से करीब 6 लाख पौधे तैयार किए गए थे. इनमें छायादार और फलदार पौधे शामिल हैं. वो विभाग ने जो पौधे तैयार किए थे, उनमें राजस्थान के राज्य पुष्प रोहिड़ा के पौधे भी शामिल हैं.
वहीं, रोहिड़ा के पेड़ को मारवाड़ का सागवान भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी लकड़ी काफी मजबूत होती है. नागौर जिले के किसानों के लिए वन विभाग की ओर से करीब 20 हजार रोहिड़ा के पौधे तैयार किए गए थे. जिन्हें खेतों की बाड़ पर लगाया जाना था, लेकिन किसानों ने इस बार अपने खेतों की बाड़ पर रोहिड़ा के पौधे लगाने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. इसके चलते वन विभाग ने रोहिड़ा के जो 20 हजार पौधे तैयार किए थे. उनमें आधे से ज्यादा अभी भी विभाग की नर्सरियों में पड़े हैं.
उपवन संरक्षक ज्ञानचंद मकवाना का कहना है कि मानसून सीजन से पहले वन विभाग ने किसानों के लिए रोहिड़ा के 20 हजार पौधे तैयार किए थे. ये पौधे किसानों को खेत की बाड़ पर लगाने के लिए दिए जाने थे, लेकिन अभी भी इनमें आधे से ज्यादा पौधे नर्सरियों में ही पड़े हैं. उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे वन विभाग की नर्सरियों से ले जाकर रोहिड़ा के ज्यादा से ज्यादा पौधे अपने खेतों की बाड़ पर लगाएं.
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने के लिए पद्मश्री से सम्मानित हिम्मताराम भांभू का कहना है कि रोहिड़ा किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त साधन बन सकता है. उन्होंने बताया कि रोहिड़ा के पुष्प को राजस्थान के राज्य पुष्प का दर्जा है और रोहिड़ा के पेड़ को मारवाड़ का सागवान भी कहा जाता है. इसकी लकड़ी मजबूती के लिए अलग पहचान रखती है और इमारती लकड़ी के रूप में काम में ली जाती है.
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ऐसे में आज यदि किसान रोहिड़ा का पौधा लगता है तो आने वाले समय में उसकी लकड़ी बेचकर लाखों रुपए कमा सकता है. उन्होंने भी किसानों से ज्यादा से ज्यादा रोहिड़ा के पौधे लगाने की अपील की है. हालांकि, जानकारों का ये भी कहना है कि रोहिड़ा के पौधे की बढ़वार धीमी होती है और उसे पौधे से पेड़ बनने में ज्यादा समय लगता है. शायद यही कारण है कि किसान इन पौधों को अपने खेत की बाड़ पर लगाने में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे हैं.