कोटा. कोरोना संक्रमण की दूसरी वेब ने कहर बरपाया है. जहां कई लोगों के काम धंधे छूटने से वह बेरोजगार हो गए हैं. जिससे उनकों अपने परिवारों का गुजर-बसर करने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसी ही कहानी घरों में झाड़ू पोछा करने वाली महिलाओं की है, जिनको घरों के मालिकों ने कोरोना फैलने के डर से काम से निकाल दिया है. जिससे उनके खाने-पीने तक की समस्याएं सताने लगी है. आस-पड़ोस से लेकर अपना और बच्चों का पेट भरने पर मजबूर हो रही है.
लॉकडाउन लगा हुआ है पुलिस जाने नहीं देती
घरों में काम करके अपने परिवार का गुजर-बसर कर रही गीताबाई ने बताया कि 4 साल से घरों में झाड़ू-पोछा कर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रही है. वहीं कोरोना संक्रमण के कारण लॉक डाउन लगा हुआ है. ऐसे में पुलिस जाने नहीं देती, पैदल भी चलें तो बहुत दूर पड़ता है. वहीं जहां झाड़ू पोछा करने जाते थे, उन्होंने भी अभी मना कर दिया है.
गीताबाई ने बताया कि पति बेलदारी का काम करते हैं, लेकिन उनको भी कभी काम मिलता है और कभी नहीं मिलता है. ऐसे में वह भी घरों में ही रह रहे हैं. गीताबाई के 4 बच्चे हैं, उनके खाने-पीने तक की चिंता सता रही है. गीता बाई ने कहा कि अभी तो आस-पड़ोस से पैसे उधार लेकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं, अगर यह लंबा चला तो भूखों मरने तक की नोबत आ जाएगी.
मंडी में आढ़त पर काम करने वाली बाई हुई बेरोजगार
रावतभाटा रोड स्थित नया गांव निवासी 35 वर्षीय महिला चंद्रकला ने बताया कि वह करीब 2 साल से फल सब्जी मंडी में आढ़त पर काम करती थी. जहां सरकार की ओर से लगाया लॉकडाउन में आने जाने में काफी दिक्कतें आ रही थी. इस पर उन्होंने भी काम के लिए मना कर दिया. अब 2 महीने से घर में बैठे हुए हैं.
चंद्रकला ने बताया कि उसके चार बेटे बेटी हैं. जिनका गुजर-बसर करना भारी पड़ रहा है. चंद्रकला ने बताया कि पिछले साल सरकार ने राशन सामग्री भी बांटी थी, लेकिन इस बार तो कोई आकर देख भी नहीं रहा. हालांकि अभी तो पड़ोसी-पड़ोसियों से मांग कर खा लेते हैं, लेकिन अगर यह है लंबा चला तो पड़ोसी भी देने से इंकार कर देंगे.
पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट की रोक : तीन साल तक की सजा मामले के आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं करने के आदेश पर रोक
राशन तक चालू नहीं, जिससे दो 2 किलो आटा लेकर खाना खाना पड़ रहा है
नया गांव में ही रहने वाली शबाना ने बताया कि पति से तलाक होने के बाद अपना और बच्चों का करीब 2 सालों से सालों से घरों में झाड़ू पोछा लगाकर अपना और अपने परिवार का गुजर-बसर कर रही है. ऐसे में कोरोना की दूसरी लहर के चलते घरों में काम धंधे भी खत्म हो गए, लोगों ने काम करवाने से मना कर दिया. अब दिन और रात यही सोचते हैं कि आगे क्या होगा, जितनी जमा पूंजी थी, वह भी धीरे-धीरे खत्म हो गई. शबाना ने बताया कि अभी वह फिलहाल उसकी मां के पास रहती है, जिसका भी स्वास्थ्य सही नहीं रहता बच्चों की पढ़ाई तक छूट चुकी है.