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जिम्मेदार कौन? कोटा के MBS अस्पताल में स्ट्रेचर पर तड़पती मां ने बेटों के सामने तोड़ा दम

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Published : May 17, 2020, 7:58 AM IST

कोटा शहर में एक बार फिर मानवता शर्मसार होने का मामला सामने आया है. एमबीएस अस्पताल परिसर में ही रेफर किए गए मरीज को नए अस्पताल तक ले जाने के लिए दो घंटे का इंतजार करना पड़ा. समय पर नए अस्पताल में रेफर नहीं होने के कारण रामपुरा निवासी 71 साल की बुजुर्ग महिला ने स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ दिया.

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लापरवाही के चलते महिला की मौत

कोटा. एमबीएस अस्पताल से मेडिकल कालेज अस्पताल में रेफर करने के दौरान दो घंटे तक एम्बुलेंस नहीं आने पर अस्पताल के बाहर स्ट्रेचर पर पड़ी रामपुरा निवासी 71 साल की शारदा देवी की मौत हो गई. बुजुर्ग महिला के बेटे प्रेमचंद गोयल और पंकज गोयल ने अपनी मां शारदा देवी को एमबीएस अस्पताल परिसर के रैन बसेरे में संचालित ओपीडी के बाहर अपनी आंखों के सामने स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ते हुए देखा.

लापरवाही के चलते महिला की मौत

मां को तड़पता देख उनकी आंखे नम हो गईं और चिकित्सकों व अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया. रामपुरा क्षेत्र में लापरवाही के चलते अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है. मृतका के बड़े बेटे प्रेमचंद गोयल ने जानकारी देते हुए बताया कि उनकी मां को सांस लेने में तकलीफ थी. शुक्रवार को तबियत खराब होने पर उन्होंने निजी अस्पताल में चिकित्सक को दिखाया था. वहां से चिकित्सक द्वारा लिखी दवाई से आराम मिल गया था. लेकिन, फिर शनिवार सुबह अचानक तबियत खराब हो गई. उन्होंने 108 एम्बुलेंस और 100 नम्बर पर डायल किया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया.

यह भी पढ़ेंः कोटा: 24 घंटे में कोरोना के 28 मामले, एक ही परिवार के 14 लोग संक्रमित

उसके बाद रामपुरा कोतवाली के बाहर भी जाकर देखा तो एम्बूलेंस नहीं मिली. इसके बाद वह अपने छोटे भाई के साथ स्कूटर पर जैसे-तैसे सुबह 9.30 बजे एमबीएस असपताल पहुंच गए. वहां, चिकित्सक को दिखाने के बाद उसे ईसीजी, एक्स-रे और अन्य जांचे लिख दी. करीब दो घंटे में जांचे करवा ली गई, रिपोर्ट को लेकर पहुंचे तो उन्होंने ब्लड की कमी होना बताया और नए अस्पताल में रेफर करने की बात कही. इस पर उन्होंने नए अस्पताल अपनी मां को ले जाने के लिए सहमति जताई.

निजी एम्बुलेंस को जाने के लिए किया मना...

प्रेमचंद गोयल ने बताया कि चिकित्सक ने रेफर करने की कहा, इस पर हम मां को नए अस्पताल ले जाने के लिए राजी हो गए. लेकिन, एम्बुलेंस की व्यवस्था जल्द करने को कहा. वह निजी एम्बुलेंस संचालक के पास भी गए. 800 रुपए में नए अस्पताल मरीज को ले जाने के लिए भी राजी हो गया. लेकिन, चिकित्सक और स्टॉफ ने स्वीकृत एम्बुलेंस से ही मरीज को ले जाने की बात कही.

पढ़ें :कोविड-19 : देश में 2,752 लोगों की मौत, संक्रमितों की संख्या 85,940 हुई

इसके बाद सरकारी स्वीकृत एम्बुलेंस का इंतजार करते रहे. लेकिन, दो घंटे तक भी एम्बुलेंस रैन बसेरे के यहां नहीं आई. वह बार-बार डॉक्टर, स्टाफ और पुलिसकर्मियों से विनती करते रहे, लेकिन समय पर एम्बुलेंस नहीं आने के कारण स्ट्रैक्चर पर ही मां ने दम तोड़ दिया. अपनी मां को स्ट्रेचर पर मरते देख, दोनों बेटों की आंखे नम हो गईं. उन्होंने बार-बार सरकारी असपताल की लचर व्यवस्था पर सवाल उठाए. उसके बाद शव को सौंपा गया.

गौरतलब है कि इसी इलाके के रामपुरा फतेहगढ़ी निवासी सतीश अग्रवाल की 29 अप्रैल को मौत हुई थी. कर्फ्यूग्रस्त क्षेत्र होने के कारण उसके लिए भी कोई एम्बुलेंस नहीं आई थी. आखिरकार उसका बेटा ठेले पर लेकर उसे दौड़ा था. उस समय भी मानवता तार-तार हुई थी. इसके बाद 4 मई को रामपुरा फतेहगढ़ी निवासी क्षेत्रपाल मीणा की भी एम्बुलेंस के अभाव में मौत हो चुकी है. लेकिन बावजूद जिला प्रशासन ने उस घटना से सबक नहीं लिया. इसके चलते एक और ऐसी ही घटना सामने आ गई. इसके बाद जिला प्रशासन ने यूडीएच मंत्री के निर्देश पर रामपुरा क्षेत्र में दो एम्बुलेंस खड़ी करने की व्यवस्था की थी. लेकिन शनिवार सुबह परिजनों को वह एम्बुलेंस भी नहीं मिली.

कोटा. एमबीएस अस्पताल से मेडिकल कालेज अस्पताल में रेफर करने के दौरान दो घंटे तक एम्बुलेंस नहीं आने पर अस्पताल के बाहर स्ट्रेचर पर पड़ी रामपुरा निवासी 71 साल की शारदा देवी की मौत हो गई. बुजुर्ग महिला के बेटे प्रेमचंद गोयल और पंकज गोयल ने अपनी मां शारदा देवी को एमबीएस अस्पताल परिसर के रैन बसेरे में संचालित ओपीडी के बाहर अपनी आंखों के सामने स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ते हुए देखा.

लापरवाही के चलते महिला की मौत

मां को तड़पता देख उनकी आंखे नम हो गईं और चिकित्सकों व अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया. रामपुरा क्षेत्र में लापरवाही के चलते अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है. मृतका के बड़े बेटे प्रेमचंद गोयल ने जानकारी देते हुए बताया कि उनकी मां को सांस लेने में तकलीफ थी. शुक्रवार को तबियत खराब होने पर उन्होंने निजी अस्पताल में चिकित्सक को दिखाया था. वहां से चिकित्सक द्वारा लिखी दवाई से आराम मिल गया था. लेकिन, फिर शनिवार सुबह अचानक तबियत खराब हो गई. उन्होंने 108 एम्बुलेंस और 100 नम्बर पर डायल किया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया.

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उसके बाद रामपुरा कोतवाली के बाहर भी जाकर देखा तो एम्बूलेंस नहीं मिली. इसके बाद वह अपने छोटे भाई के साथ स्कूटर पर जैसे-तैसे सुबह 9.30 बजे एमबीएस असपताल पहुंच गए. वहां, चिकित्सक को दिखाने के बाद उसे ईसीजी, एक्स-रे और अन्य जांचे लिख दी. करीब दो घंटे में जांचे करवा ली गई, रिपोर्ट को लेकर पहुंचे तो उन्होंने ब्लड की कमी होना बताया और नए अस्पताल में रेफर करने की बात कही. इस पर उन्होंने नए अस्पताल अपनी मां को ले जाने के लिए सहमति जताई.

निजी एम्बुलेंस को जाने के लिए किया मना...

प्रेमचंद गोयल ने बताया कि चिकित्सक ने रेफर करने की कहा, इस पर हम मां को नए अस्पताल ले जाने के लिए राजी हो गए. लेकिन, एम्बुलेंस की व्यवस्था जल्द करने को कहा. वह निजी एम्बुलेंस संचालक के पास भी गए. 800 रुपए में नए अस्पताल मरीज को ले जाने के लिए भी राजी हो गया. लेकिन, चिकित्सक और स्टॉफ ने स्वीकृत एम्बुलेंस से ही मरीज को ले जाने की बात कही.

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इसके बाद सरकारी स्वीकृत एम्बुलेंस का इंतजार करते रहे. लेकिन, दो घंटे तक भी एम्बुलेंस रैन बसेरे के यहां नहीं आई. वह बार-बार डॉक्टर, स्टाफ और पुलिसकर्मियों से विनती करते रहे, लेकिन समय पर एम्बुलेंस नहीं आने के कारण स्ट्रैक्चर पर ही मां ने दम तोड़ दिया. अपनी मां को स्ट्रेचर पर मरते देख, दोनों बेटों की आंखे नम हो गईं. उन्होंने बार-बार सरकारी असपताल की लचर व्यवस्था पर सवाल उठाए. उसके बाद शव को सौंपा गया.

गौरतलब है कि इसी इलाके के रामपुरा फतेहगढ़ी निवासी सतीश अग्रवाल की 29 अप्रैल को मौत हुई थी. कर्फ्यूग्रस्त क्षेत्र होने के कारण उसके लिए भी कोई एम्बुलेंस नहीं आई थी. आखिरकार उसका बेटा ठेले पर लेकर उसे दौड़ा था. उस समय भी मानवता तार-तार हुई थी. इसके बाद 4 मई को रामपुरा फतेहगढ़ी निवासी क्षेत्रपाल मीणा की भी एम्बुलेंस के अभाव में मौत हो चुकी है. लेकिन बावजूद जिला प्रशासन ने उस घटना से सबक नहीं लिया. इसके चलते एक और ऐसी ही घटना सामने आ गई. इसके बाद जिला प्रशासन ने यूडीएच मंत्री के निर्देश पर रामपुरा क्षेत्र में दो एम्बुलेंस खड़ी करने की व्यवस्था की थी. लेकिन शनिवार सुबह परिजनों को वह एम्बुलेंस भी नहीं मिली.

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